Aarti Kunj Bihari Ki Lyrics – कुंज बिहारी जी की आरती गाने की महिमा असीम है और इसके गुणगान करने से आनंद और समृद्धि की अनुभूति होती है। यह आरती समस्त भक्तों को धार्मिकता, आध्यात्मिकता और सामर्थ्य की अनुभूति कराती है। यहां कुछ महत्वपूर्ण मान्यताएं हैं जो कुंज बिहारी जी की आरती की महिमा को व्यक्त करती हैं:

दिव्य रूप: कुंज बिहारी जी की आरती उनके दिव्य और मोहन रूप की महिमा को प्रकट करती है। इस आरती के द्वारा भक्त उनके सम्पूर्ण रूप का आनंद और भक्ति से मोहित होते हैं।

लीलामय विभूति: आरती गाने के द्वारा कुंज बिहारी जी की लीलामय विभूति और अद्भुत कार्यों की महिमा प्रकट होती है। यह आरती उनकी खुशी, सुख, विजय और संचार की भावना को प्रकट करती है।

प्रेम की भावना: कुंज बिहारी जी की आरती उनके प्रेम की भावना को व्यक्त करती है। इस आरती के द्वारा भक्त प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की भावना को बढ़ाते हैं। aarti kunj bihari ki lyrics

Kunj Bihari Ji Ki Arti In Hindi | कुंज बिहारी जी की आरती

कुंज बिहारी जी की आरती गाने के फायदे हिंदी में: Aarti kunj bihari ki lyrics in hindi 

  1. मन की शांति: कुंज बिहारी जी की आरती गाने से मन में शांति की अनुभूति होती है। इसके द्वारा मन की चंचलता कम होती है और मन शांत होता है। krishna bhagwan ki aarti
  2. भक्ति की भावना: कुंज बिहारी जी की आरती गाने से भक्ति की भावना में वृद्धि होती है। इसके द्वारा भक्त अपने इष्टदेव की ओर अपनी पूरी भावना और समर्पण दिखा सकता है।
  3. मनोवैज्ञानिक लाभ: कुंज बिहारी जी की आरती गाने से मनोवैज्ञानिक रूप से भी फायदा मिलता है। इसके द्वारा सतत ध्यान और धारणा बढ़ती है, जिससे मन कम विचलित होता है और ध्यान केंद्रित होता है। anuradha paudwal aarti kunj bihari ki lyrics
  4. आध्यात्मिक संवाद: कुंज बिहारी जी की आरती गाने से आध्यात्मिक संवाद में वृद्धि होती है। इसके द्वारा भक्त और देवी-देवताओं के बीच संवाद करने की भावना मजबूत होती है और उनके साथ संवाद करने का अनुभव होता है।
  5. श्रद्धा का विकास: कुंज बिहारी जी की आरती गाने से श्रृद्धा का विकास होता है। aarti kunj bihari ki lyrics in hindi

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Aarti Kunj Bihari Ki Lyrics श्री कुंज बिहारी जी की आरती

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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