Subramanya Ashtakam – “सुब्रमण्य अष्टकम” भगवान सुब्रमण्य (जिन्हें कार्तिकेय या मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है) हिंदू धर्म में, विशेष रूप से दक्षिण भारत में एक प्रमुख देवता हैं। “सुब्रमण्यम अष्टकम” एक भक्ति भजन है जिसमें भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित आठ छंद शामिल हैं। ये श्लोक उनके विभिन्न गुणों, रूपों और विशेषताओं की प्रशंसा करते हैं। Subramanyam Ashtakam In Hindi | Subramanya Ashtakam in Hindi

अष्टकम” शब्द का अर्थ आठ छंदों वाली रचना है। भक्त भगवान सुब्रमण्यम से आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन पाने के लिए सुब्रमण्य अष्टकम का पाठ या गायन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह भजन उनकी दिव्य उपस्थिति का आह्वान करता है और उनके प्रति भक्ति और प्रशंसा व्यक्त करता है।

Subramanya Ashtakam

सुब्रमण्य अष्टकम की सटीक सामग्री अलग-अलग संस्करणों के आधार पर थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन आम तौर पर, इसमें छंद शामिल होते हैं जो भगवान सुब्रमण्यम की वीरता, बुरी ताकतों के विनाशक के रूप में उनकी भूमिका, उनके दिव्य रूप और हिंदू पौराणिक कथाओं में उनके महत्व को उजागर करते हैं।

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श्री सुब्रह्मण्य अष्टाकम | Subramanya Ashtakam

Subramanya Ashtakam Lyrics

हे स्वामिनाथ करुणाकर दीनबन्धो, श्रीपार्वतीशमुखपङ्कज पद्मबन्धो ।
श्रीशादिदेवगणपूजितपादपद्म, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥१॥

देवादिदेवनुत देवगणाधिनाथ, देवेन्द्रवन्द्य मृदुपङ्कजमञ्जुपाद ।
देवर्षिनारदमुनीन्द्रसुगीतकीर्ते, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥२॥

नित्यान्नदान निरताखिल रोगहारिन्, तस्मात्प्रदान परिपूरितभक्तकाम ।
शृत्यागमप्रणववाच्यनिजस्वरूप, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥३॥

क्रौञ्चासुरेन्द्र परिखण्डन शक्तिशूल, पाशादिशस्त्रपरिमण्डितदिव्यपाणे ।
श्रीकुण्डलीश धृततुण्ड शिखीन्द्रवाह,वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥४॥

देवादिदेव रथमण्डल मध्य वेद्य, देवेन्द्र पीठनगरं दृढचापहस्तम् ।
शूरं निहत्य सुरकोटिभिरीड्यमान, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥५॥

हारादिरत्नमणियुक्तकिरीटहार, केयूरकुण्डललसत्कवचाभिराम ।
हे वीर तारक जयाज़्मरबृन्दवन्द्य, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥६॥

पञ्चाक्षरादिमनुमन्त्रित गाङ्गतोयैः, पञ्चामृतैः प्रमुदितेन्द्रमुखैर्मुनीन्द्रैः ।
पट्टाभिषिक्त हरियुक्त परासनाथ, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥७॥

श्रीकार्तिकेय करुणामृतपूर्णदृष्ट्या, कामादिरोगकलुषीकृतदुष्टचित्तम् ।
भक्त्वा तु मामवकलाधर कान्तिकान्त्या, वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम् ॥८॥

सुब्रह्मण्य करावलम्बं पुण्यं ये पठन्ति द्विजोत्तमाः । ते सर्वे मुक्ति मायान्ति सुब्रह्मण्य प्रसादतः ।
सुब्रह्मण्य करावलम्बमिदं प्रातरुत्थाय यः पठेत् । कोटिजन्मकृतं पापं तत्‍क्षणादेव नश्यति ॥

Subrahmanya Ashtakam Telugu

సుబ్రహ్మణ్యాష్టకమ్

ప్రతిదినము భక్తికించి పాడుచుంది సంకరుడవు శుద్ధ జటాజూట విభూషణుడవు శూలపాణివు

జయ జయ శరవణ భవ కుమార గుప్తనయ గంగాధర శైలసుత గణేశ సుత శరణం

కరుణాకరా దృష్టి చుచుంబుక విలోచనా కరుణాకరా దయాసిన్ధో జగద్గురు

కమనీయకాంతి రత్న కీర్తనా కాంతితాతంత్రయ కలాకలాపప మూర్తయే కల్యాణ గుణాలయ

శ్రీవత్సాఙ్కదభాల ప్రభావపూజితాయ సనాతనాయ భువనేశ్వరాయ సనాతనాయ

కృపాసగర సుతాయ కృపాకటాక్ష కృపాకరాయ కృపావరాయ వికుంఠనాథాయ

చిదానంద సన్దోహ మోదకాయ మనస్తాపహరాయ

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