ऋग्वैदिक सभ्यता भारत की और विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में आती है, प्राचीन होने के बावजूद भी यह सभ्यता अपने समय की उच्चतम ज्ञान(ऋग्वैद इसी काल में लिखा गया) और जीवन शैली के लिये जग प्रसिद्ध है। वैदिक सभ्यता अपने सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति में भी उन्नत थी, तथा निम्नलिखित लेख में हम Vedic Civilization & Early Vedic Period/ economy की बात करेंगे।

ऋग्वैदिककालीन आर्थिक स्थिति ECONOMIC SITUATION IN RIGVADIK AGE

ऋग्वैदिककालीन vedic age आर्थिक स्थिति पर ऋग्वेद से व्यापक प्रकाश पड़ता है , जिसका वर्णन निम्नवत् है :
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  1. कृषि ( Agriculture ) — ऋग्वैदिककालीन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि थी । सम्भवतः यह आर्यों की प्राचीन वृत्ति थी । हल तथा बैलों का प्रयोग खेती के लिए किया जाता था । ऋग्वेद में साँड़ द्वारा हल खींचने , हल से बनी नालियों में बीज बोने , दराँती से फसल काटने आदि का उल्लेख मिलता है । भूमि की उर्वरकता बढ़ाने के उद्देश्य से खाद का भी प्रयोग किया जाता था तथा भूमि की सिंचाई की जाती थी । विभिन्न फसलों के लिए अलग – अलग ऋतुएँ निर्धारित थीं । प्रमुखतया एक वर्ष में दो फसलें उगाई जाती थी । vedic age
  2. पशुपालन ( Breeding of Animals ) – पशुपालन आर्यों की विशिष्ट वृत्ति थी । कृषि के लिए भी पशुपालन में रुचि आवश्यक थी । ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर पशु – धन की वृद्धि के लिए देवताओं की आराधना की गयी है । पशुओं में गाय का विशिष्ट महत्व था तथा उसकी देखभाल की जाती थी । पशुओं के कानों पर निशान अंकित किया जाता था ताकि उसके स्वामी द्वारा उसकी पहचान की जा सके ।
  3. आखेट ( Hunting ) ऋग्वैदिककालीन लोग जीवन निर्वाह व अपने पशुओं की रक्षा करने के लिए शिकार भी करते थे । शिकार के लिए धनुष – बाण का ही मुख्यतः प्रयोग किया जाता था । ऋग्वेद में निधापति ( चिड़ीमार ) का भी उल्लेख मिलता है जो जाल व फन्दों का प्रयोग करता था । सिंह आदि पकड़ने के लिए भूमि में गड्ढे खोदे जाते थे । दासों एवं सेवकों के लिए मछली पकड़ना अथवा शिकार खेलना निषिद्ध था ।
  4. लघु – उद्योग ( Cottage Industry ) — ऋग्वैदिक समाज में अनेक लघु उद्योग उन्नत स्थिति में थे । कलाकौशल एवं दस्तकारी का भी आर्थिक व्यवस्था में प्रमुख योगदान था । बढ़ईगीरी तत्कालीन समाज में एक सम्मानित दृष्टि से देखी जाती थी क्योंकि बढ़ई युद्ध एवं दौड़ों के लिए रथ व परिवहन के प्रमुख साधन बैलगाड़ी का निर्माण करता था । ऋग्वेद में लुहार का भी उल्लेख मिलता है जो अस्त्र – शस्त्र , हल – फलक व घरेलू बर्तनों को बनाता था । ऋग्वेद में चर्मकार का भी उल्लेख है जो चमड़े को साफ करके धनुष की डोरियाँ , गोफिये , चर्मरज्जुएँ आदि बनाता था । स्त्रियाँ भी इस युग में अनेक कार्य करती थीं । स्त्रियों के द्वारा किये जाने वाले प्रमुख व्यवसायों में कपड़ा बुनना , सिलाई करना व घास से चटाई आदि बनाना उल्लेखनीय है । तत्कालीन समाज की उल्लेखनीय बात यह है कि उपरोक्त किसी भी व्यवसाय को हीन नहीं समझा जाता था ।
  5. व्यापार एवं वाणिज्य ( Trade and Commerce ) — ऋग्वैदिक काल में स्वदेशी एवं विदेशी दोनों प्रकार के व्यापार होते थे यद्यपि सौदा पटाने में बड़ी नापतौल होती थी , किन्तु एक बार सौदा तय हो जाने पर उसका निर्वाह किया जाता था । अधिक लाभ के लिए अन्य देशों से व्यापार करने का भी ऋग्वेद में वर्णन में  है । अन्य देशों से व्यापार करने का भी ऋग्वेद में वर्णन है । विदेशों से व्यापार करने के लिए व्यापारी समूह जहाज में जाते थे ।
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