मगध साम्राज्य का उत्कर्ष | THE RISE OF THE MAGADHA EMPIRE | उत्कर्ष के कारण ( CAUSES OF THE RISE OF MAGADHA EMPIRE ) प्राचीन भारतीय इतिहास में मगध का विशेष स्थान है । प्राचीन काल में भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों की सत्ता थी । Magadha Empire In Hindi

Magadha Empire In Hindi

मगध के प्रतापी राजाओं ने इन राज्यों पर विजय प्राप्त कर भारत के एक बड़े भाग पर विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और इस प्रकार मगध के शासकों ने सर्वप्रथम अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को प्रदर्शित किया । 

मगध में मौर्य वंश की स्थापना से पूर्व भी अनेक शासकों ने अपने बाहुबल व वीरता से मगध साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया था ।  magadh samrajya in hindi 

जिनमें-

 महात्मा बुद्ध के समय में चार प्रमुख राजतन्त्र | Republic During The Time Of Mahatma Buddha

  1. मगध
  2. कोशल
  3. वत्स और 
  4. अवन्ति थे । 

उल्लेखनीय है कि इन चारों राजतन्त्रों में से मगध साम्राज्य का ही विकास हो सका , क्योंकि वीर , प्रतापी एवं योग्य शासकों के अतिरिक्त मगध को एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में उभरने में अनेक परिस्थितियों ने भी सहायता की

मगध उत्तर भारत के विशाल तटवर्ती मैदानों के ऊपरी एवं निचले भागों के मध्य अति सुरक्षित स्थान पर था । पाँच पहाड़ियों के मध्य एक दुर्गम स्थान पर स्थित होने के कारण वहाँ तक शत्रुओं का पहुंचना प्रायः असम्भव था । 

 magadh samrajya in hindi 
इसके साथ ही मगध के निकटवर्ती क्षेत्र में लोहे की खानों से भाँति – भाँति से अस्त्र – शस्त्र बनाकर आर्यों को जंगलों को साफ करने में सहायता मिली और नवीन उद्योग बन्यों को प्रोत्साहन मिला । गंगा नदी के कारण भी मगध में व्यापारिक सुविधाएँ बढ़ीं और आर्थिक दृष्टि से मगध के महत्व में वृद्धि हुई । मगध साम्राज्य की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी अतः आर्थिक दृष्टि से मगध एक सम्पन्न राज्य था । मगध के निकटवर्ती वनों में हाथियों बाहुल्य ने भी मगध साम्राज्य के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया । प्राचीनकाल में युद्धों में हाथियों की सेना प्रमुख भूमिका निभाती थी ।
चाणक्य ने लिखा है , ” राजाओं की विजय प्रधानतया हाथियों पर निर्भर करती है । शत्रुओं की छावनी , दुर्ग आदि को ध्वस्त करने में इन विशाल शरीर वाले हाथियों का विशेष महत्व है । मगध की हस्ति सेना अत्यधिक शक्तिशाली थी । प्राचीनकालीन लेखकों ने इस सेना की अत्यधिक प्रशंसा की है । 
किन्तु मात्र अच्छी सामरिक स्थिति तथा भौतिक समृद्धि ही किसी राष्ट्र के उत्कर्ष के लिए पर्याप्त नहीं है । तत्कालीन प्रजा का भी मगध के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण योगदान था ।

बर्क ने लिखा है

कि तत्कालीन प्रजा की यह विशेषता थी कि वह अपने सम्राटों को अपना जीवन व सर्वस्व अर्पित कर देती थी ।
इसके अतिरिक्त मगध के लोगों के व्यवहार में एक लचीलापन था । यह गुण अन्य समकालीन राजतन्त्रों में विद्यमान न था । मगध में ब्राह्मण लोग शूद्रों का सम्पर्क स्वीकार कर लेते थे तथा राजा भी अपने महलों में शूद्र कन्याओं को स्थान दे देते थे । राजा का सिंहासन एक साधारण नाई की भी पहुंच में होता था । मगध के राजा तथा मन्त्री अपने कार्यों में बहुत अधिक अनैतिक व मिथ्यावादी नहीं थे । वे किसी भी राज्य को नष्ट करने या उसे छिन्न – भिन्न करने में पाश्चात्य दार्शनिक मैकियावेली के समान नीतियों का ही अनुसरण करते थे । ये राजा और मन्त्री एक ऐसी व्यावहारिक प्रशासन पद्धति निकाल लिया करते थे , जिसमें राजा , मन्त्री व गाँवों के मुखियों का समान रूप से हिस्सा होता था ।
चौथी शताब्दी ई . पू . में भारत में आये विदेशी राजदूतों व यात्रियों ने तत्कालीन राजाओं की न्याय बुद्धि , आतिथ्य भावना , दानशीलता तथा जनहित की चिन्ता का उल्लेख किया है । तत्कालीन मगध के शासक एक सुसंगठित बृहत्तर भारत की कल्पना को साकार करने के लिए अनवरत प्रयास करते थे । वे सम्पूर्ण भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बाँधना चाहते थे तथा अपने इस उद्देश्य में वे सफल भी हुए ।
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

  1.  मौर्यों से पूर्व मगध साम्राज्य के उत्कर्ष का वर्णन कीजिए । 

औरजानिये। Aurjaniye

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