आर्थिक सुधार कार्यक्रम क्या है ? भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रम के उपाय बताइए । आर्थिक उदारीकरण 

आर्थिक सुधार कार्यक्रम financial improvement programme

आर्थिक सुधार कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें देश में चल रही औद्योगिक गतिविधियों पर लगाये गये अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष नियन्त्रणों में धीमे – धीमे कमी की जाती है । उद्योगों को स्वतन्त्रता दी जाती है तथा विस्तार हेतु खुला वातावरण तैयार किया जाता है । 

अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधार बाजार से परिमाणात्मक नियन्त्रण हटाने की प्रक्रिया है । इसके तीन प्रमुख अंग हैं

  • उदारीकरण ( Liberalization )
  • भूमण्डलीकरण ( Globalization )
  • निजीकरण ( Privatization )

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उदारीकरण ( Liberalization ) –

उदारीकरण में उद्योगों पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्ध सरकार द्वारा हटा लिये जाते हैं अर्थात् उद्योगों के विकास हेतु उन्हें विकसित होने के खुले अवसर प्रदान किये जाते हैं । इसके अन्तर्गत सरकार द्वारा मूलतः विभिन्न नीतियाँ जो उद्योगों को नियन्त्रित करती हैं में समय – समय पर ऐसे सुधार किये जाते हैं जो उद्योग जगत् के हित में होते हैं ।

भूमण्डलीकरण ( Globalization ) –

भूमण्डलीकरण का शाब्दिक अर्थ अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने से लगाया जाता है । यह वस्तुतः खुली अर्थव्यवस्था की विचारधारा पर आधारित है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के मध्य व्यापारिक दृष्टिकोण से सार्वजनिक सीमाओं को कोई अधिक महत्व नहीं दिया जाता है बल्कि व्यापारिक लेन – देन तो स्वतन्त्र रूप से या सीमित नियन्त्रण के अधीन चलते रहते हैं ।

भूमण्डलीकरण के मूल उद्देश्य–

  • विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि करने हेतु विदेशी निवेश तथा विदेशी व्यापार को बढ़ाना
  • विनिमय दरों में परिवर्तनों को कम करना
  • भुगतान सन्तुलन को ठीक करना
  • देश में औद्योगिक विकास करने हेतु विदेशी निवेशकों एवं करना आदि हैं । विदेशी संस्थाओं को देश में व्यापार करने की अनुमति प्रदान करना
  • उत्पादन में वृद्धि

निजीकरण ( Privatization ) –

निजीकरण के अन्तर्गत देश में निजी क्षेत्र के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है । सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित क्षेत्रों को निजी क्षेत्र हेतु खोला जाता है तथा सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार द्वारा अनिवेश कार्यक्रम चलाया जाता है । इस प्रकार निजीकरण का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के कार्य क्षेत्र को सीमित करना तथा निजी क्षेत्र का विस्तार करना होता है ।

भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रम ( Economic Reforms Programmes in India ) –

सरकार द्वारा 1985 के पश्चात् कुछ सुधार कार्यक्रम सरकार द्वारा शुरू भी किये गये किन्तु वर्ष 1990-91 के अन्त तक यह अनुभव किया गया कि अर्थव्यवस्था की स्थिति अत्यन्त चिन्ता का विषय है ।

इसी परिप्रेक्ष्य में डॉ . मनमोहन सिंह तत्कालीन वित्तमन्त्री ने प्रधानमन्त्री श्री पी . वी . नरसिम्हा राव के कार्यकाल में आर्थिक सुधारों का कार्यक्रम शुरू किया । इसे आर्थिक सुधार कार्यक्रम ( 1991 ) कहा गया । 

इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे

  • आर्थिक विकास की दर में तेजी लाना । 
  • अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र का विस्तार करना । 
  • रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना । 
  • प्रतियोगिता में वृद्धि करना तथा निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना । 
  • विश्व स्तर की तकनीक को आयात करना तथा विकसित करना । 
  • विदेशी विनियोग कार्यक्रम को बढ़ावा देना । 
  • विश्व स्तरीय प्रबन्ध कुशलता को विकसित करना

आर्थिक सुधारों के प्रमुख अंग ( Main Components of Economic Reforms ) –

1991 में किये गये आर्थिक सुधारों में निम्नलिखित सुधार महत्वपूर्ण हैं

  • रुपये की परिवर्तनशीलता को क्रमबद्ध तरीके से स्वतन्त्र करना पहले सन् 1992 93 में 60 % तथा 1993-94 में 100 % परिवर्तनशीलता की अनुमति प्रदान करना । अन्य कोई भी निर्यात अर्जनों से प्राप्त विदेशी मुद्रा को अधिकृत एजेण्ट से भारतीय मुद्रा में परिवर्तित करा सकता है । वर्तमान में भारतीय रुपया चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनीय है । पूँजी खाते पर रुपए को अभी पूर्ण परिवर्तनीय नहीं बनाया गया है तथापि पूँजी खाते के अन्तर्राष्ट्रीय लेन देनों में अनेक उदारवादी नीतियाँ अपनायी गयी हैं ।
  • विदेशी व्यापार नीति में सुधार करना । विश्व व्यापार संगठन WTO के प्रति वचनबद्धताओं को पूरा करते हुए आयातों पर से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लिए गए हैं । आयात शुल्कों की दरों को काफी निचले स्तर पर ले आया गया है । निर्यातकों को अनेक प्रकार की रियायतें तो दी गई हैं लेकिन उन्हें मुक्त व्यापार प्रणाली के तहत स्वयं को एक मजबूत प्रतिस्पर्धी बनने के लिए मार्ग भी खुला छोड़ दिया गया है ।
  • औद्योगिक नीति में आमूल – चूल परिवर्तन किए गए हैं । सार्वजनिक क्षेत्रक के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या मात्र तीन
  • ( i ) परमाणु ऊर्जा , ( ii ) रेल परिवहन तथा ( iii ) परमाणु ऊर्जा विभाग की अधिसूचना सं . 50 212 ( E ) के तहत् विहित उत्पाद ) ] और अनिवार्य लाइसेंसिंग के अन्तर्गत उद्योगों की संख्या अब केवल पाँच रह गयी है (

( i ) अल्कोहलयुक्त पेय , शराब आदि ।

( ii ) तम्बाकू और उसके उत्पाद – सिगरेट, सिगार आदि ।

( iii ) इलैक्ट्रॉनिक एयरो स्पेस तथा रक्षा उपकरण ।

( iv ) विस्फोटक सामग्री ।

( v ) खतरनाक रसायन ।

  • विदेशी निवेश कार्यक्रम  तथा सहयोग कार्यक्रम ( Collaboration ) को अधिक सरल बनाया गया है तथा व्यापारिक घरानों में 51 % तक विदेशी पूँजी की अनुमति प्रदान की गई है ।
  • आयातों को कम करने तथा निर्यातों में वृद्धि करने हेतु 1991 में रुपये का अवमूल्यन किया गया ।
  • देश की कर नीति में समय – समय पर सुधार किया जाना और अप्रत्यक्ष कर से प्रत्यक्ष कर की ओर भार बढ़ाया जाना ।
  • बैंकिंग क्षेत्र सम्बन्धी सुधारों में मूलत : नकद आरक्षित अनुपात , वैधानिक तरल अनुपात तथा बैंक दर में कटौती करना । इसके अतिरिक्त बैंकिंग क्षेत्र में निजी तथा विदेशी बैंकों को प्रवेश देने के साथ – साथ बैंकों की लाभदायकता बढ़ाने हेतु अधिक स्वायत्तता दिया जाना ।
  • सार्वजनिक उपक्रमों से सम्बन्धित सुधारों में सार्वजनिक क्षेत्र को सीमित करना तथा अविनियोग नीति को अपनाया जाना प्रमुख है ।
  • उद्योगों हेतु लाइसेन्सिंग प्रणाली में सुधार करना तथा लाइसेन्स की अनिवार्यता को समाप्त करना अब केवल 5 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य है ।
  • एम.आर. टी. पी. अधिनियम में संशोधन करना । अब कम्पनियों द्वारा रखी जाने वाली सम्पत्तियों की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है । इसी प्रकार फेरा ( FERA ) को संशोधित करके FEMA बना दिया गया है ।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को ( यदि सम्पूर्ण निर्यातोन्मुख इकाई हो तो ) 100 % पूँजी विनियोग की अनुमति प्रदान करना ।

उदारीकरण के कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाये जाने के उपाय ( Suggestions to Make Liberalisation Programme More Effective )

भारत में आर्थिक उदारीकरण के परिणाम काफी उत्साहवर्द्धक रहे हैं । इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं

  1. औद्योगिक उत्पादन दर में वृद्धि ।
  2. मुद्रास्फीति दर में कमी ।
  3. निर्यातों में वृद्धि तथा भुगतान सन्तुलन में सुधार ।
  4. विदेशी निवेश से विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि तथा देश में पूँजी की पर्याप्तता । 
  5. भारतीय व्यापारियों तथा उद्योगपतियों में प्रतियोगिता की भावना तथा विकास की चाहत का विकास ।
  6. विनिमय दर में उच्चावचनों में कमी ।
  7. तकनीकी का विकास तथा अधिक उत्पादों की उपलब्धि ।

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