गुटनिरपेक्षता का क्या है ? |WHAT IS NON-ALIGNMENT IN HINDI |AURJANIY.COM

 

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 इस विषय के अन्तर्गत हम इन चीजों को पढ़ेंगे-

गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है ? 

इसके मूलभूत तत्वों अथवा विशेषताओं की विवेचना कीजिए । 

गुटनिरपेक्षता के अभ्युदय के उत्तरदायी कारण

गुट – निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण

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गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है ?

गुटनिरपेक्षता का अर्थ एवं परिभाषागुटनिरपेक्षता ‘ शब्द का विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया गया है । पश्चिमी देशों में साधारणतया ‘ तटस्थता ‘ शब्द प्रचलित है और इसकी सहायता से ही गुटनिरपेक्षता का अर्थ समझने का प्रयत्न किया जाता है । इसलिए वे गुटनिरपेक्षता को तटस्थता का ही एक प्रकार समझ लेने की भूल करते हैं । 

शीत युद्ध से पृथक्करण गुटनिरपेक्षता का सार तत्व है । 

यह नीति चुप्पी लगाकर बैठ जाने अथवा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से संन्यास लेने की नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत स्वतन्त्र राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में न्यायपूर्ण ढंग से सक्रिय भाग लिया जा सकता है ।

 

 गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रतिपादक पं . नेहरू ने सन् 1949 में अमेरिकी कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट में कहा था , ” जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो , न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो , तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे ।


जॉर्ज स्वार्जनबर्गर के अभिमत में
, ” गुटनिरपेक्षता मैत्री सन्धियों अथवा गुटों से बाहर रहने की नीति है । 

गुटनिरपेक्षता का अर्थ शक्तिमूलक राजनीति से पृथक रहना तथा सभी राज्यों के साथ शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व और सक्रिय अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग है , चाहे वे राष्ट्र गुटबद्ध हों या गुटनिरपेक्ष ।

श्री . एम . एस . राजन का कहना है कि ” विशेष रूप से तथा नकारात्मक रूप से निरपेक्षता का अर्थ सैनिक अथवा राजनीतिक गठबन्धनों को अस्वीकार करना है । 

सकारात्मक रूप में इसका अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर जब वे सामने आये गुण दोष के आधार पर तदर्थ निर्णय लेना है । 

डॉ . अप्पादोराय के शब्दों में , “ गुट निरपेक्षता को उत्तम रूप से इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि किसी देश के साथ विशेषकर पश्चिमी गुट अथवा साम्यवादी देशों के साथ सैनिक सन्धियाँ न की जायें । 

इसकी मूलभूत तत्व अथवा विशेषताऐं

 

गुटनिरपेक्षता का स्पष्ट आशय है , 

  • किसी भी देश के साथ सैनिक गुटबन्दी में सम्मिलित न होना 
  • पश्चिमी अथवा पूर्वी गुटों के किसी भी विशेष देश के साथ सैनिक दृष्टि से न बँधना 
  • आक्रामक सन्धियों से दूर रहना 
  • शीत युद्ध से अलग रहना और राष्ट्रीय हित का ध्यान रखते हुए न्यायोचित पक्ष में अपनी विदेश नीति का संचालन करना । 

 सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित असंलग्न देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में निरपेक्षता के तीन कर्णधारों – 

  1. नेहरू 
  2. नासिर और 
  3. टीटो ने 

इस नीति के निम्नलिखित पाँच आधार स्वीकार किये 

  1. सम्बद्ध देश स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो 
  2. सदस्य देश उपनिवेशवाद का विरोध करता हो 
  3. वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो 
  4. उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौता नहीं किया हो 
  5. सदस्य देश ने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने को स्वीकृति न दी हो ।

इस प्रकार वे ही देश गुटनिरपेक्ष माने जा सकते हैं जो स्वतन्त्र विदेश नीति का पालन करते हों , राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का समर्थन करते हों , शक्ति अथवा सैनिक गुटों के सदस्य नहीं हों । 

संक्षेप में कहा जा सकता है कि गुटनिरपेक्षता से अभिप्राय शान्ति , न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित स्वतन्त्र रीति – नीति का अवलम्बन है गुटों से अलग रहने से प्रत्येक प्रश्न के औचित्य – अनौचित्य को आँका जा सकता है । 

गुट निरपेक्षता की नीति के प्रेरक तत्व 1945 के बाद से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्षता को प्रोत्साहन मिल रहा है । 

गुटनिरपेक्षता के अभ्युदय के उत्तरदायी कारण

गुटनिरपेक्षता के अभ्युदय के उत्तरदायी कारणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है 

  1. शीत युद्ध – द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरिका और सोवियत संघ जैसी महाशक्तियों के बीच मतभेदों की एक ऐसी खाई उत्पन्न हो गयी थी और दोनों गुट एक – दूसरे के विरोध में इस प्रकार सक्रिय थे कि इसे शीत युद्ध का नाम दिया गया । शीत युद्ध के इस वातावरण में एशिया और अफ्रीका के नवस्वतन्त्र राष्ट्रों ने किसी भी पक्ष का समर्थन न करक पृथक् रहने का निर्णय लिया । शीत युद्ध से पृथक् रहने की नीति ही आगे चलकर गुट निरपेक्षता के नाम से पुकारी जाने लगी । 
  2. सैनिक गुटों से पृथक् रहना- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में दो गुटों का उदय हो चुका था और इसी समय एशिया – अफ्रीका के अनेक राष्ट्र स्वतन्त्र हुए जो संभलने के लिए समय चाहते थे अतः इन देशों ने निर्णय लिया कि किसी भी गुट द्वारा संचालित सैनिक गठबन्धन का सदस्य होने पर वे उनके चक्रव्यूह में फँस जायेंगे और उनको समस्याएँ सुलझाने का पूर्ण अवसर नहीं मिल सकेगा । उनकी इस भावना ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के लिए प्रेरित किया । 
  3. मनोवैज्ञानिक विवशता- गुट – निरपेक्षता की नीति अपनाने का कारण नवोदित राष्ट्रों में एक भावात्मक मनोवैज्ञानिक विवशता थी और वह यह कि मात्र औपचारिक अ स्वतन्त्र न हों वरन् महाशक्तियों के प्रभुत्व या प्रभाव के अवशेषों से एकदम मुक्त  हों । नव स्वतन्त्र देशों ने यह अनुभव किया कि वे गुटनिरपेक्षता में अपनी आस्था की उद्घोषणा कर महाशक्तियों के प्रभाव से बच सकते हैं ।
  4. आर्थिक कारक- गुट निरपेक्षता की अवधारणा के विकास में आर्थिक कारण भी उत्तरदायी रहा है । नवोदित राज्य अस्त्र – शस्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर अपने देश का आर्थिक पुनर्निर्माण करना चाहते हैं । आर्थिक पुनर्निर्माण तीव्र गति से हो सके , इसके लिए विकसित राष्ट्रों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है । अतः इन देशों ने अपनी वैदेशिक अर्थनीतियों को ऐसा मोड़ दिया कि वे विश्व के किसी देश से ‘ बिना शर्त ‘ आर्थिक सहायता ले सकते हैं । उन्होंने यह भी अनुभव किया कि गुटनिरपेक्ष रहकर ही दोनों महाशक्तियों से वे आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं । 
  5. अपने पृथक् अस्तित्व की अभिलाषा- विश्व के नवोदित राष्ट्रों को ऐसा लगा कि गुटनिरपेक्षता उनके लिए अपने पृथक् और विशिष्ट वैचारिक स्वरूप को अक्षुण्ण बनाये रखने का साधन है । वे अपनी राजनीतिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं के पृथक् स्वरूप को बनाये रखना चाहते थे । वे यह नहीं चाहते थे कि राष्ट्रों के किसी बड़े समूह में जहाँ किसी – न – किसी सर्वोच्च शक्ति का बोलबाला हो , उनकी अपनी कोई पहचान ही न रह जाये । 
  6. ऐतिहासिक अनुभव- असंलग्न राष्ट्रों का ऐतिहासिक अनुभव उपनिवेशवादियों और साम्राज्यवादियों द्वारा उनकी सम्प्रभुता एवं स्वतन्त्रता को कुचलकर अपने – अपने हित में उनके शोषण की कटु स्मृति से जुड़ा है । एशिया और अफ्रीका के नवोदित राज्य यह अनुभव करते हैं कि यदि वे बड़े राष्ट्रों के साथ सैनिक सन्धियों में आबद्ध हो गये तो शोषण और शोषित राज्यों के सम्बन्धों का वही प्राचीन इतिहास दोहराया जायेगा । 
  7. स्वतन्त्र विदेश नीति के संचालन की इच्छा – नवोदित एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्र गुटनिरपेक्षता की नीति के माध्यम से अपने को स्वतन्त्र शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते थे । गुटनिरपेक्षता की विदेश नीति के परिणामस्वरूप आज ये किसी बड़ी शक्ति के उपग्रह मात्र की स्थिति में नहीं हैं और न दूसरों के संकेतों पर नाचने के लिए लाचार हैं । उपर्युक्त कारणों से प्रभावित होकर एशिया और अफ्रीका के देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाना उचित समझा । 

गुट – निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण

गुट निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं 

  1. सकारात्मक तथा गतिशील दृष्टिकोण असंलग्नता की प्रमुख विशेषता उसका सकारात्मक , गतिशील एवं विश्व समस्याओं पर परतन्त्र ढंग से व्यवहार करने की सुस्पष्ट नीति है । यह एक स्थिर नीति नहीं बल्कि निरन्तर विकासशील नीति है जिसे अपनाते हुए सम्बद्ध राज्य द्वारा राष्ट्रीय हित और विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने दृष्टिकोण एवं कार्य – पद्धति में परिवर्तन किया जा सकता है ।
  2. स्वतन्त्र विदेश नीति- गुट – निरपेक्षता का अभिप्राय यह है कि सम्बद्ध देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट के साथ बंधा हुआ नहीं है अपितु उसका स्वतन्त्र पथ है जो 
  • न्याय 
  • सत्य 
  • शान्ति और 
  • औचित्य पर आश्रित है । 

जिन देशों ने गुट निरपेक्षता का मार्ग चुना है वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में न किसी के पिछलग्गू हैं एवं स्वयं अपनी दिशा का निर्धारण करने की क्षमता रखते हैं । 

 

अल्जीरिया के प्रधानमन्त्री बिन बिल्लाह ने स्पष्ट किया  ” था , ” हम किसी से बँधे नहीं……..गुट निरपेक्षता से भी नहीं । 

3 उपनिवेशवाद का विरोध – गुट निरपेक्षता उपनिवेशवाद , नव – उपनिवेशवाद , साम्राज्यवाद , शोषण , रंगभेद आदि नीतियों की प्रबल विरोधी है । गुट निरपेक्षता विभिन्न राज्यों के पारस्परिक व्यवहार में राष्ट्रीय प्रभुसत्ता , स्वतन्त्रता और समानता में विश्वास करती है । 

4 शान्ति – नीति का विस्तार – गुट – निरपेक्षता का उदय विश्व शान्ति की आकांक्षा और उद्देश्य से हुआ है । यह शान्ति के उद्देश्यों और संकल्पों की अभिव्यक्ति है । इसका मुख्य लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तनाव की बढ़ती प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति स्थापित करना।

5 सैनिक गुटबन्दियों से पृथक् रहना – गुट – निरपेक्षता का मुख्य लक्षण है शक्ति गुटों से अलग रहने की नीति का पालन करना । इसमें यह तथ्य भी निहित है कि गुट निरपेक्ष देश किसी भी महाशक्ति सैनिक के साथ समझौता नहीं करेगा । गुट – निरपेक्षता का मूल विचार है कि  है कि विश्व के देशों को परस्पर विरोधी गुटों में विभक्त करने के प्रयासों ने विश्व में तनाव की स्थिति को जन्म दिया है और गुट – निरपेक्षता का उद्देश्य इन शक्ति गुटों से पृथक् रहते हुए तनाव की स्थिति को निर्बल बनाना है । 

6 गुट – निरपेक्ष एक आन्दोलन है , गुट नहीं – गुट – निरपेक्षता एक गुट नहीं वरन् एक आन्दोलन है , एक ऐसा आन्दोलन जो विश्व के राष्ट्रों के बीच स्वैच्छिक सहयोग चाहता है , उनमें प्रतिद्वन्द्विता या टकराव नहीं ।

 7 गुट निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र का सहायक है , विकल्प नहीं – गुट निरपेक्षता का विश्वास है कि “ संयुक्त राष्ट्र संघ के अभाव में वर्तमान विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती । गुट निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र संघ का विकल्प या उसका प्रतिद्वन्द्वी नहीं बल्कि इस संगठन की सहायक प्रवृत्ति है जिसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ को उचित मार्ग पर आगे बढ़ाते हुए उसे शक्तिशाली बनाना है । 

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