अन्तर्राष्ट्रीय कानून क्या है ? इसके महत्व तथा कमजोरियाँ | What is International law? It’s Importance and Weaknesses in Hindi

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International Law In Hindi



इस विषय के अन्तर्गत हम इन चीजों को पढ़ेंगे-

अन्तर्राष्ट्रीय कानून का क्या अर्थ है ?

इसकी कमजोरियों तथा महत्व पर प्रकाश डालिए ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून का महत्व

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अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अर्थ एवं परिभाषाएँ

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‘अन्तर्राष्ट्रीय कानून’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1780 में राजनीतिक विचारक जेरेमी बेन्थम द्वारा किया गया । अन्तर्राष्ट्रीय कानून उन नियमों का संग्रह है जिनके अनुसार विश्व के समस्त राष्ट्र शान्तिकाल तथा युद्धकाल में एक – दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून राष्ट्रों के मध्य विवादों का निपटारा करता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून शब्द ‘राष्ट्रों का कानून ‘ का समानार्थी है ।

डॉ . सम्पूर्णानन्द ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अर्थ के सम्बन्ध में कहा है कि ” अन्तर्राष्ट्रीय विधान उन नियमों और प्रथाओं के समूह को कहते हैं जिनके अनुसार राज्य एक – दूसरे से प्रायः बर्ताव करते हैं ।

” अन्तर्राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता विश्व शान्ति , सुरक्षा एवं सहयोग के लिए है ।

इस विधि के प्रमुख स्रोत परम्पराएँ , रीति – रिवाज , प्रथाएँ , न्यायालय के निर्णय एवं संस्कृति के आधारभूत गुण , सन्धियाँ , समझौता आदि हैं ।  International Law In Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सफल संचालन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानून की महती आवश्यकता है । जिस प्रकार समाज के बिना व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता उसी प्रकार बिना नियमों , कानूनों के राज्य भी राज्यीय हितों की पूर्ति करने में अक्षम होते हैं । राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए उसे विदेशों व्यापार , लेन – देन एवं अनेक नौतियों का निर्धारण करना होता है , ऐसे में किसी व्यवधान के उत्पन्न होने पर अन्तर्राष्ट्रीय कानून ही राज्य की मदद करता है । International Law In Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय कानून राज्य के हित के लिए एक आवश्यक अंग है ।

 प्रो . ओपनहीम का मत है , ” अन्तर्राष्ट्रीय कानून उन प्रयोगों में आने वाले तथा सन्धियों में प्रयोग किए जाने वाले नियमों का नाम है जिनको सभ्य राज्य पारस्परिक व्यवहारों में प्रयोग करने के लिए बाध्य होता है ।

“हैन्स केल्सन के शब्दों में” राष्ट्रों की विधि अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विधि की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि वह नियमों और सिद्धान्तों का संकलन है जिसके अनुसार कार्य करना पारस्परिक व्यवहार में सभ्य राज्यों के लिए आवश्यक है ।

सर हेनरीमैन ने कहा है , ” राष्ट्रों की विधि भिन्न – भिन्न तत्वों की एक जटिल योजना है । उसमें अधिकारों तथा न्याय के साधारण सिद्धान्त निहित हैं । इनका प्रयोग समान रूप से राज्यों के व्यक्ति तथा राज्य पारस्परिक व्यवहारों में कर सकते हैं । यह एक निश्चित कानूनों की संहिता है , रीति – रिवाजों और विचारों का संकलन है जिनका प्रयोग पारस्परिक व्यवहार में राज्यों के बीच किया जा सकता है । what is international law hindi

” अन्तर्राष्ट्रीय कानून की कमजोरियाँ

अन्तराष्ट्रीय कानून में जो दोष ( कमजोरियाँ ) व्याप्त हैं , वे इस प्रकार हैं 

  1. व्यवस्थापिका सम्बन्धी कमजोरियाँ– संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा को कानून निर्मात्री संस्था की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून का निर्माण करने वाली अथवा संशोधित करने व्यवस्थापिका का अभाव है । International Law In Hindi
  2. कार्यपालिका सम्बन्धी कमजोरियाँमुसोलिनी ने अबीसीनिया पर आक्रमण किया , अमेरिका ने वियतनाम युद्ध में कानूनों को तोड़ा , चीन ने वियतनाम पर आक्रमण किया , किन्तु कोई समझने – सुनने वाला नहीं था । अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को कार्यान्वित करने वाले निकाय का अभाव है । अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को तोड़ने वाले राज्यों को दण्ड देने वाले निकाय के अभाव में यह कानून राज्यों की इच्छा पर निर्भर हो जाता है । शक्तिशाली राज्य कानूनों की अवहेलना करते रहते हैं , परन्तु उनको रोकने वाला कोई नहीं है ।
  3. न्यायपालिका सम्बन्धी कमजोरियाँ- राज्यों के मध्य विवादों का निपटारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय , अधिग्रहण न्यायालय तथा पंच फैसलों द्वारा होता है , किन्तु यदि ये फैसले राज्यों के हितों के प्रतिकूल हैं तो वे उनका पालन नहीं करते हैं । कानून भंग करने वालों को स्पष्ट दण्ड मिल पाना कठिन हो जाता है ।
  4. राष्ट्रों की सम्प्रभुता एवं अतिवादी राष्ट्रीयता- कोई भी राष्ट्र अपनी सम्प्रभुता को खोना नहीं चाहता । राष्ट्रीयता की अन्ध – भावना के परिणामस्वरूप वे अन्तर्राष्ट्रीय कानून की चिन्ता ही नहीं करते ।
  5. घरेलू मामलों का संयुक्त राष्ट्र चार्टर में प्रावधान- संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुसार राज्यों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करना अपवर्जित है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून को लागू करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं और कानून का उल्लंघन मूक दर्शक की भाँति देखती रहती हैं
  6. अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अस्पष्टता तथा अनिश्चितता- अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधिकांश नियम अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं । अभी तक इसका संकलन एक समस्या बनी हुई है । इसका आधार आज तक भी आपसी समझौता है

अन्तर्राष्ट्रीय कानून का महत्व

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के महत्व एवं आवश्यकता का अध्ययन निम्न प्रकार किया जा सकता है

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा व्यवस्था को बनाये रखना-

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों द्वारा राष्ट्रों के व्यवहारों के सामान्य नियमों का ‘ सार्वभौमिक ‘ निर्धारण किया जाता है । यदि विश्व के सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय कानून का समान भाव से आदर करने लग जाएँ तो राज्यों के बीच होने वाले मतभेदों एवं संघर्षों को टाला जा सकता है ।

समस्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु

प्रसिद्ध दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रसेल के विचारों के अनुसार , “ विश्व सरकार द्वारा ही विश्व शान्ति की स्थापना की जा सकती है । जब तक राष्ट्रों में उग्र राष्ट्रीयता एवं सम्प्रभुता की भावना विद्यमान रहेगी , विश्व सरकार का सपना भी बना रहेगा । किन्तु यदि अन्तर्राष्ट्रीय कानून की पर्याप्त रचना की जाए , विभिन्न राज्यों में इसके प्रयोग से लाभों का समुचित प्रसार किया जाए । तो राज्य सहज में इसका प्रयोग करने लग जाएँगे ।

अशान्ति एवं अराजकता से विश्व को मुक्त करने के लिए-

मनुस्मृति में कहा गया है कि ” मानव को पारस्परिक संगठन बनाने के लिए अथवा राष्ट्र के रूप में संगठित होने के लिए आपस में पारस्परिक व्यवहार के लिए कुछ नियमों का निर्माण करना पड़ता है और उन नियमों का पालन करना पड़ता है , अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती

राष्ट्रों के मध्य शक्ति संघर्ष को परिसीमित करना-

शक्ति संघर्ष की इस राजनीति में छोटे एवं बड़े राज्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए कार्यरत रहते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रतिबन्ध द्वारा सीमित दायरे में रखा जाता है ।

परमाण्वीय एवं संहारक शस्त्रों से सुरक्षा हेतु-

विश्व की महान् शक्तियों के मध्य संहारक शस्त्रों के निर्माण की भयानक प्रतिस्पर्द्धा चल रही है । आज अमेरिका , रूस , फ्रांस तथा चीन के पास आण्विक एवं हाइड्रोजन शस्त्रों का बड़ा भण्डार है ।

राष्ट्रों के मध्य आर्थिक , औद्योगिक क्रियाकलापों के संचालन में आवश्यकता-

आर्थिक, व्यापारिक, प्राविधि , शैक्षणिक, राजनीतिक आवश्यकताओं के कारण विभिन्न देशों के पारस्परिक सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ हो रहे हैं कि इस समय कोई भी सभ्य राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों से सर्वथा अलग या पृथक् रहकर न तो किसी प्रकार की उन्नति कर सकता है और न अपना चहुँमुखी विकास ही ।

राजनयिक गतिविधियों के सफल संचालन के लिए

विभिन्न राज्यों के आपसी सम्बन्धों का संचालन कूटनीतिक प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है । एक राज्य के राजनयिक प्रतिनिधियों का कार्य अत्यन्त दुष्कर राजनयिक प्रतिनिधि दूसरे राज्य में निवास करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अभाव में जाएगा । इनकी समस्त गतिविधियों निर्धारण वियना अभिसमय , 1961 ( जो अन्तर्राष्ट्रीय कानून का भाग है ) द्वारा किया जाता है ।

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