Vishnu Sahasranamam Lyrics In Hindi– विष्णुसहस्त्रनाम वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरने सम्पूर्ण विधिरूप धर्म तथा पापका क्षय करनेवाले धर्मरहस्योंको सब प्रकार सुनकर शान्तनुपुत्र भीष्मसे फिर पूछा । युधिष्ठिर बोले- समस्त जगत्में एक ही देव कौन हैं ? तथा इस लोकमें एक ही परम आश्रयस्थान कौन है ? जिसका साक्षात्कार कर लेनेपर जीवकी अविद्यारूप हृदयग्रन्थि टूट जाती है , सब संशय नष्ट हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण कर्म क्षीण हो जाते हैं । किस देवकी स्तुति – गुण – कीर्तन करनेसे तथा किस देवका नाना प्रकारसे बाह्य और आन्तरिक पूजन करनेसे मनुष्य कल्याणकी प्राप्ति कर सकते हैं ?
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आप | समस्त धर्मोंमें पूर्वोक्त लक्षणोंसे युक्त किस धर्मको परम श्रेष्ठ मानते हैं ? तथा किसका जप करनेसे जननधर्मा जीव जन्ममरणरूप संसार – बन्धनसे मुक्त हो जाता है । 2 भीष्मजीने कहा – स्थावर जंगमरूप संसारके स्वामी , ब्रह्मादि देवोंके देव , देश , काल और वस्तुसे अपरिच्छिन्न , क्षर – अक्षरसे श्रेष्ठ पुरुषोत्तमका सहस्र नामोंके द्वारा निरन्तर तत्पर रहकर गुण – संकीर्तन करनेसे पुरुष सब दुःखोंसे पार विनाशरहित पुरुषका सब समय भक्तिसे युक्त होकर पूजन करनेसे , उसीका ध्यान करनेसे तथा पूर्वोक्त प्रकारसे सहस्रनामोंके द्वारा स्तवन एवं नमस्कार पूजा करनेवाला सब दुःखोंसे छूट जाता है ।
उस जन्म – मृत्यु आदि छ : भावविकारोंसे रहित , सर्वव्यापक , सम्पूर्ण लोकोंके महेश्वर , लोकाध्यक्ष देवकी निरन्तर स्तुति करनेसे मनुष्य सब दुःखोंसे पार हो जाता है । जगत्की रचना करनेवाले ब्रह्माके तथा ब्राह्मण , तप और श्रुतिके हितकारी , सब धर्मोंको जाननेवाले , प्राणियोंकी कीर्तिको ( उनमें अपनी शक्तिसे प्रविष्ट होकर ) बढ़ानेवाले , सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी , समस्त भूतोंके उत्पत्ति – स्थान एवं संसारके कारणरूप परमेश्वरका स्तवन करनेसे मनुष्य सब दुःखोंसे छूट जाता है ।
विधिरूप सम्पूर्ण धर्मोंमें मैं इसी धर्मको सबसे बड़ा मानता हूँ कि मनुष्य अपने हृदयकमलमें विराजमान कमलनयन भगवान् वासुदेवका भक्तिपूर्वक तत्परतासहित गुण – संकीर्तनरूप स्तुतियोंसे सदा अर्चन करे । जो देव परम तेज , परम तप , परम ब्रह्म और परम परायण है , वही समस्त प्राणियोंकी परम गति है ।
पृथ्वीपते ! जो पवित्र करनेवाले तीर्थादिकोंमें परम पवित्र है , मंगलोंका मंगल है , देवोंका देव है तथा जो भूत – प्राणियोंका अविनाशी पिता है , कल्पके आदिमें जिससे सम्पूर्ण भूत उत्पन्न होते हैं और फिर युगका क्षय होनेपर महाप्रलयमें जिसमें वे विलीन हो जाते हैं , उस लोकप्रधान , संसारके स्वामी , भगवान् विष्णुके पाप और संसारभयको दूर करनेवाले हजार नामोंको मुझसे सुन । जो नाम गुणके कारण प्रवृत्त हुए हैं , उनमेंसे जो – जो प्रसिद्ध हैं और मन्त्रद्रष्टा मुनियों द्वारा जो जहाँ – तहाँ सर्वत्र भगवत्कथाओंमें गाये गये हैं |
उस अचिन्त्यप्रभाव महात्माके उन समस्त नामोंको पुरुषार्थ – सिद्धिके लिये वर्णन करता हूँ ।
Vishnu Sahasranamam pdf
ॐ सच्चिदानन्दस्वरूप
- विश्वम्– समस्त
- विष्णुः – सर्वव्यापी , जगत्के कारणरूप
- वषट्कारः – जिनके उद्देश्यसे यज्ञमें वषट् क्रिया की जाती है , ऐसे यज्ञस्वरूप
- भूतभव्यभवत्प्रभुः – भूत , भविष्यत् और वर्तमानके स्वामी
- भूतकृत्– इ रजोगुणका आश्रय लेकर ब्रह्मारूपसे सम्पूर्ण भूतोंकी रचना करनेवाले
- भूतभृत् – सत्त्वगुणका आश्रय लेकर सम्पूर्ण भूतोंका पालन – पोषण करनेवाले
- भाव : – नित्यस्वरूप होते हुए भी स्वतः उत्पन्न होनेवाले
- भूतात्मा– सम्पूर्ण भूतोंके आत्मा अर्थात् अन्तर्यामी
- भूतभावनः – भूतोंकी उत्पत्ति और वृद्धि करनेवाले ।
- पूतात्मा – पवित्रात्मा
- परमात्मा परमश्रेष्ठ नित्य – शुद्ध – बुद्ध – मुक्तस्वभाव
- मुक्तानां परमा गतिः – मुक्त पुरुषोंकी सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप
- अव्ययः – कभी विनाशको प्राप्त न होनेवाले
- पुरुष : – पुर अर्थात् शरीरमें शयन करनेवाले
- साक्षी – बिना किसी व्यवधानके सब कुछ देखनेवाले
- क्षेत्रज्ञः – क्षेत्र अर्थात् समस्त प्रकृतिरूप शरीरको पूर्णतया जाननेवाले
- अक्षरः – कभी क्षीण न होनेवाले ।
- योगः – मनसहित सम्पूर्ण ज्ञानेन्द्रियोंके निरोधरूप योगसे प्राप्त होनेवाले
- योगविदां नेता: योगको जाननेवाले भक्तोंके योगक्षेमादिका निर्वाह करनेमें अग्रसर रहनेवाले
- प्रधानपुरुषेश्वरः – प्रकृति और पुरुषके स्वामी
- नारसिंहवपुः – मनुष्य और सिंह दोनोंके – जैसा शरीर धारण करनेवाले , नरसिंहरूप
- श्रीमान्– वक्षःस्थलमें सदा श्रीको धारण करनेवाले
- केशवः – ( क ) ब्रह्मा , ( अ ) विष्णु और ( ईश ) महादेव – इस प्रकार त्रिमूर्ति स्वरूप
- पुरुषोत्तम : -क्षर और अक्षर इन दोनों में सर्वथा उत्तम ।
- सर्वः – असत् और सत् – सबकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलयके स्थान
- शर्वः – सारी प्रजाका प्रलयकालमें संहार करनेवाले
- शिवः – तीनों गुणोंसे परे कल्याणस्वरूप
- स्थाणुः – स्थिर ,
- भूतादिः – भूतोंके आदि कारण
- निधिरव्ययः– प्रलयकालमें सब प्राणियोंके लीन होनेके अविनाशी स्थानरूप
- सम्भवः – अपनी इच्छासे भली प्रकार प्रकट होनेवाले
- भावन : समस्त भोक्ताओंके फलोंको उत्पन्न करनेवाले
- भर्ता– सबका भरण करनेवाले , ३४ प्रभवः – उत्कृष्ट ( दिव्य ) जन्मवाले
- प्रभुः – सबके स्वामी
- ईश्वरः – उपाधिरहित ऐश्वर्यवाले ।
- स्वयम्भूः – स्वयं उत्पन्न होनेवाले
- शम्भुः – भक्तोंके लिये सुख उत्पन्न करनेवाले
- आदित्यः – द्वादश आदित्योंमें विष्णुनामक आदित्य
- पुष्कराक्षः – कमलके समान नेत्रवाले
- महास्वनः – वेदरूप अत्यन्त महान् घोषवाले
- अनादिनिधनः– जन्म – मृत्युसे रहित
- धाता: विश्वको धारण करनेवाले
- विधाता – कर्म और उसके फलोंकी रचना करनेवाले
- धातुरुत्तमः – कार्यकारणरूप सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेवाले एवं सर्वश्रेष्ठ ।
- अप्रमेयः – प्रमाणादिसे जाननेमें न आ सकनेवाले
- हृषीकेशः – इन्द्रियोंके स्वामी
- पद्मनाभः – जगत्के कारणरूप कमलको अपनी नाभिमें स्थान देनेवाले
- अमरप्रभुः – देवताओंके स्वामी
- विश्वकर्मा– सारे जगत्की रचना करनेवाले
- मनुः – प्रजापति मनुरूप
- त्वष्टा: संहारके समय सम्पूर्ण प्राणियोंको क्षीण करनेवाले
- स्थविष्ठः – अत्यन्त स्थूल
- स्थविरो ध्रुवः – अति प्राचीन , एवं अत्यन्त स्थिर
- अग्राह्यः – मनसे ग्रहण न किये जा सकनेवाले
- शाश्वतः – सब कालमें स्थित रहनेवाले
- कृष्णः– सबके चित्तको बलात् अपनी ओर आकर्षित करनेवाले श्यामसुन्दर सच्चिदानन्दमय भगवान् श्रीकृष्ण
- लोहिताक्षः – लाल नेत्रोंवाले
- प्रतदनः – प्रलयकालमें प्राणियोंका संहार करनेवाले
- प्रभूतः – ज्ञान , ऐश्वर्य आदि गुणोंसे सम्पन्न
- त्रिककुब्धाम– ऊपर – नीचे और मध्यभेदवाली
- पवित्रम् – सबको पवित्र करनेवाले
- मङ्गल: परम्परम मंगल तीनों दिशाअकि आश्रयरूप
- ईशानः – सर्वभूतक नियन्ता
- प्राणदः – सबको प्राण देनेवाले
- प्राण : – सबको जीवित रखनेवाले प्राणस्वरूप
- ज्येष्ठ : – सबके कारण होनेसे सबसे बड़े
- श्रेष्ठ : – सबमें उत्कृष्ट होनेसे परम श्रेष्ठ
- प्रजापतिः – ईश्वररूपसे सारी प्रजाओंके मालिक
- हिरण्यगर्भः – ब्रह्माण्ड रूप हिरण्यमय अण्डके भीतर ब्रह्मारूपसे व्याप्त होनेवाले
- भूगर्भः – पृथ्वीको गर्भमें रखनेवाले
- माधवः – लक्ष्मीके पति
- मधुसूदनः– मधुनामक दैत्यको मारनेवाले ।
- ईश्वरः – सर्वशक्तिमान् ईश्वर
- विक्रमी – शूरवीरतासे युक्त
- धन्वी – शार्ङ्गधनुष रखनेवाले
- मेधावी – अतिशय बुद्धिमान्
- विक्रमः – गरुड पक्षीद्वारा गमन करनेवाले
- क्रमः – क्रम विस्तारके कारण
- अनुत्तमः – सर्वोत्कृष्ट
- दुराधर्षः– किसीसे भी तिरस्कृत न हो सकनेवाले
- कृतज्ञः – अपने निमित्तसे थोड़ा – सा भी त्याग किये जानेपर उसे बहुत माननेवाले यानी पत्र – पुष्पादि थोड़ी – सी वस्तु समर्पण करनेवालोंको भी मोक्ष दे देनेवाले
- कृतिः– पुरुष प्रयत्नके आधाररूप
- आत्मवान् – अपनी ही महिमामें स्थित ।
- सुरेशः – देवताओंके स्वामी
- शरणम् दीन – दुःखियोंके परम आश्रय
- शर्म – परमानन्दस्वरूप
- विश्वरेताः – विश्वके कारण
- प्रजाभवः – सारी प्रजाको उत्पन्न करनेवाले
- अहः – प्रकाशरूप
- संवत्सरः – कालस्वरूपसे स्थित
- व्यालः – सर्पके समान ग्रहण करनेमें न आ सकनेवाले
- प्रत्ययः – उत्तम बुद्धिसे जाननेमें आनेवाले
- सर्वदर्शन : – सबके द्रष्टा
- अजः – जन्मरहित
- सर्वेश्वरः – समस्त ईश्वरोंके भी ईश्वर
- सिद्धः – नित्य सिद्ध
- सिद्धिः – सबके फलरूप
- सर्वादिः – सब भूतोंके आदि कारण
- अच्युतः – अपनी स्वरूप – स्थितिसे कभी त्रिकालमें भी च्युत न होनेवाले
- वृषाकपिः– धर्म और वराहरूप
- अमेयात्मा – अप्रमेयस्वरूप
- सर्वयोग विनिःसृतः – नाना प्रकारके शास्त्रोक्त साधनोंसे ट जाननेमें आनेवाले
- वसुः – सब भूतोंके वासस्थान तथा सब भूतोंमें बसनेवाले
- वसुमनाः – उदार मनवाले
- सत्यः – सत्यस्वरूप
- समात्मा – ने सम्पूर्ण प्राणियोंमें एक आत्मारूपसे विराजनेवाले
- असम्मितः – समस्त पदार्थोंसे मापे न जा सकनेवाले
- समः – सब समय समस्त विकारोंसे रहित
- अमोघः – भक्तोंके द्वारा पूजन , स्तवन अथवा स्मरण किये जानेपर उन्हें वृथा न य करके पूर्णरूपसे उनका फल प्रदान करनेवाले
- पुण्डरीकाक्षः – कमलके समान नेत्रोंवाले
- वृषकर्मा – धर्ममय कर्म करनेवाले
- वृषाकृतिः – धर्मकी स्थापना करनेके लिये ने विग्रह धारण करनेवाले ।
- रुद्रः – दुःख या दुःखके कारणको सी दूर भगा देनेवाले
- बहुशिरा : – बहुत से सिरोंवाले
- बभ्रुः – लोकोंका भरण करनेवाले
- विश्वयोनिः – विश्वको उत्पन्न करनेवाले
- शुचिश्रवाः – पवित्र कीर्तिवाले
- अमृतः— कभी न मरनेवाले
- शाश्वतस्थाणुः – नित्य सदा एकरस रहनेवाले एवं स्थिर
- वरारोह : आरूढ़ होनेके लिये परम उत्तम अपुनरावृत्तिस्थानरूप
- महातपाः– प्रताप ( प्रभाव ) रूप महान् तपवाले ।
- सर्वगः – कारणरूपसे सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले
- सर्वविद्भानुः – सब कुछ जाननेवाले तथा प्रकाशरूप
- विष्वक्सेनः– युद्धके लिये की हुई तैयारीमात्रसे ही दैत्य- सेनाको तितर – बितर कर डालनेवाले
- जनार्दनः – भक्तोंके द्वारा अभ्युदय- निः श्रेयसरूप परम पुरुषार्थकी याचना किये जानेवाले
- वेदः – वेदरूप
- वेदवित्: वेद तथा वेदके अर्थको यथावत् जाननेवाले
- अव्यङ्गः– ज्ञानादिसे परिपूर्ण अर्थात् किसी प्रकार अधूरे न रहनेवाले सर्वांगपूर्ण
- वेदाङ्गः – वेदरूप अंगोंवाले
- वेदवित्– वेदोंको विचारनेवाले
- कविः – सर्वज्ञ
- लोकाध्यक्षः – समस्त लोकोंके अधिपति
- सुराध्यक्षः – देवताओंके अध्यक्ष
- धर्माध्यक्ष : -अनुरूप फल देनेके लिये धर्म और अधर्मका निर्णय करनेवाले
- कृताकृतः – कार्यरूपसे कृत और कारणरूपसे अकृत
- चतुरात्मा – सृष्टिकी उत्पत्ति आदिके लिये चार पृथक् मूर्तियोंवाले
- चतुर्व्यूहः– उत्पत्ति, स्थिति, नाश और रक्षारूप चार व्यूहवाले
- चतुर्दंष्ट्र : – चार दाढोंवाले नरसिंहरूप
- चतुर्भुजः – चार भुजाओंवाले वैकुण्ठवासी भगवान् विष्णु ।
- भ्राजिष्णुः – एकरस, प्रकाशस्वरूप
- भोजनम् – ज्ञानियोंद्वारा भोगनेयोग्य अमृतस्वरूप
- भोक्ता – पुरुषरूपसे भोक्ता
- सहिष्णुः – सहनशील
- जगदादिजः – जगत्के आदिमें हिरण्यगर्भरूपसे स्वयं उत्पन्न होनेवाले
- अनघः – पापरहित
- विजय : – ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य आदि गुणोंमें सबसे बढ़कर
- जेता– स्वभावसे ही समस्त भूतोंको जीतनेवाले
- विश्वयोनिः – विश्वके कारण
- पुनर्वसुः – पुनः पुनः शरीरों में आत्मरूपसे बसनेवाले ।
- उपेन्द्रः – इन्द्रको अनुजरूपसे प्राप्त होनेवाले
- वामनः– वामनरूपसे अवतार लेनेवाले
- प्रांशुः – तीनों लोकोंको लाँघनेके लिये त्रिविक्रमरूपसे ऊँचे होनेवाले
- अमोघः – अव्यर्थ चेष्टावाले
- शुचिः – स्मरण , स्तुति और पूजन करनेवालोंको पवित्र कर देनेवाले
- ऊर्जितः – अत्यन्त बलशाली
- अतीन्द्रः–स्वयंसिद्ध ज्ञान – ऐश्वर्यादिके कारण इन्द्रसे भी बढ़े – चढ़े हुए
- संग्रहः – प्रलयके समय सबको समेट लेनेवाले
- सर्गः – सृष्टिके कारणरूप
- धृतात्मा – जन्मादिसे रहित रहकर स्वेच्छासे स्वरूप धारण करनेवाले
- नियमः – प्रजाको अपने – अपने अधिकारोंमें नियमित करनेवाले
- यमः – अन्तःकरणमें स्थित होकर नियमन करनेवाले ।
- वेद्यः – कल्याणकी इच्छावालोंके द्वारा जाननेयोग्य
- वैद्यः – सब विद्याओंके जाननेवाले
- सदायोगी– सदा योगमें स्थित रहनेवाले
- वीरहा– धर्मकी रक्षाके लिये असुर योद्धाओंको मार डालनेवाले
- माधवः – विद्याके स्वामी
- मधुः – अमृतकी तरह सबको प्रसन्न करनेवाले ,
- अतीन्द्रियः – इन्द्रियोंसे सर्वथा अतीत
- महामायः – मायावियोंपर भी माया डालनेवाले महान् मायावी
- महोत्साहः – जगत्की उत्पत्ति , स्थिति और प्रलयके लिये तत्पर रहनेवाले परम उत्साही
- महाबलः – महान् बलशाली ।
- स्वभावसे – शरीरोंमें प्राप्त लेनेवाले , लिये – स्तुति
- महाबुद्धिः – महान् बुद्धिमान्
- महावीर्यः – महान् पराक्रमी
- महाशक्तिः – महान् सामर्थ्यवान्
- महाद्युतिः – महान् कान्तिमान्
- अनिर्देश्यवपुः – अनिर्देश्य विग्रहवाले
- श्रीमान्– ऐश्वर्यवान्
- अमेयात्मा: जिसका अनुमान न किया जा सके ऐसे आत्मा वाले
- महाद्रिधृक् – अमृतमन्थन और गोरक्षणके समय मन्दराचल और गोवर्धन नामक महान् पर्वतोंको धारण करनेवाले ।
- महेष्वासः – महान् धनुषवाले
- महीभर्ता– पृथ्वीको धारण करनेवाले
- श्रीनिवासः – अपने वक्षःस्थलमें श्रीको निवास देनेवाले
- सतां गतिः – सत्पुरुषोंके आश्रयरूप
- अनिरुद्धः – सच्ची भक्तिके बिना किसीके भी द्वारा न रुकनेवाले
- सुरानन्दः – देवताओंको आनन्दित करनेवाले
- गोविन्दः – वेदवाणीके द्वारा अपनेको प्राप्त करा देनेवाले
- गोविदां पतिः – वेदवाणीको जाननेवालोंके स्वामी ।
- मरीचिः – तेजस्वियोंके भी परम तेजरूप
- दमनः – प्रमाद करनेवाली प्रजाको यम आदिके रूपसे दमन करनेवाले
- हंसः पितामह ब्रह्माको वेदका ज्ञान करानेके लिये हंसरूप धारण करनेवाले
- सुपर्ण : – सुन्दर पंखवाले गरुड- करानेवाले स्वरूप ,
- भुजगोत्तमः – सर्पोंमें श्रेष्ठ शेषनागरूप
- हिरण्यनाभः– हितकारी और रमणीय नाभिवाले
- सुतपाः – बदरिकाश्रममें नर – नारायणरूपसे सुन्दर तप करनेवाले
- पद्मनाभः – कमलके समान सुन्दर नाभिवाले
- प्रजापतिः – सम्पूर्ण प्रजाओं के स्वामी ।
- अमृत्युः – मृत्युसे रहित
- सर्वदृक्– सब कुछ देखनेवाले
- सिंह : – दुष्टोंका विनाश करनेवाले
- सन्धाता – पुरुषोंको उनके कर्मोंके फलोंसे संयुक्त करनेवाले
- सन्धिमान्– सम्पूर्ण यज्ञ और तपोंको भोगनेवाले
- स्थिरः – सदा एकरूप
- अजः – भक्तोंके हृदयोंमें जानेवाले तथा दुर्गुणोंको दूर हटा देनेवाले
- दुर्मर्षण : – किसीसे भी सहन नहीं किये जा सकनेवाले
- शास्ता – सबपर शासन करनेवाले
- विश्रुतात्मा – वेद – शास्त्रों में विशेषरूपसे प्रसिद्ध स्वरूपवाले
- सुरारिहा— देवताओंके शत्रुओंको मारनेवाले
- गुरुः – सब विद्याओंका उपदेश करनेवाले
- गुरुतमः – ब्रह्मा आदिको भी ब्रह्मविद्या प्रदान करनेवाले
- धाम- सम्पूर्ण प्राणियोंकी कामनाओंके आश्रय
- सत्यः – सत्यस्वरूप
- सत्यपराक्रमः – अमोघ पराक्रमवाले
- निमिषः– योगनिद्रासे मुदे हुए नेत्रोंवाले
- अनिमिषः – मत्स्यरूपसे अवतार लेनेवाले
- स्त्रग्वी– वैजयन्ती माला धारण करनेवाले
- वाचस्पतिरुदारधीः– सारे पदार्थोंको प्रत्यक्ष करनेवाली बुद्धिसे युक्त समस्त विद्याओंके पति ।
- विष्णूसहस्त्रनाम अग्रणीः – मुमुक्षुओंको उत्तम पदपर ले जानेवाले
- ग्रामणी : – भूतसमुदायके नेता
- श्रीमान्– सबसे बढ़ी – चढ़ी कान्तिवाले
- न्यायः -प्रमाणोंके आश्रयभूत तर्ककी मूर्ति
- नेता – जगत्रूप यन्त्रको चलानेवाले
- समीरणः – श्वासरूपसे प्राणियोंसे चेष्टा करानेवाले
- सहस्त्रमूर्धा – -हजार सिरवाले
- विश्वात्मा – विश्वके आत्मा
- सहस्त्राक्षः – हजार आँखोंवाले
- सहस्रपात्– हजार पैरोंवाले ।
- आवर्तनः – संसारचक्रको चलानेके स्वभाववाले
- निवृत्तात्मा– संसारबन्धनसे मुक्त आत्मस्वरूप
- संवृतः – अपनी योगमायासे ढके हुए
- सम्प्रमर्दनः – अपने रुद्र आदि स्वरूपसे सबका मर्दन करनेवाले
- अहःसंवर्तकः सूर्यरूपसे सम्यक्तया दिनके प्रवर्तक
- वह्निः के हविको वहन करनेवाले अग्निदेव
- अनिलः – चूर्ण प्राणरूपसे वायुस्वरूप
- धरणीधरः – वराह और शेषरूपसे पृथ्वीको धारण करनेवाले ।
- सुप्रसादः – शिशुपालादि अपराधियोंपर भी कृपा करनेवाले
- प्रसन्नात्मा– प्रसन्न स्वभाववाले ले, अर्थात् करुणा करनेवाले
- विश्वधृक् – जगत्को धारण करनेवाले
- विश्वभुक् – विश्वको भोगनेवाले अर्थात् विश्वका पालन करनेवाले
- विभुः – सर्वव्यापक
- सत्कर्ता– भक्तोंका सत्कार करनेवाले
- सत्कृतः– पूजितोंसे भी पूजित
- साधुः – भक्तोंके कार्य साधनेवाले
- जह्रुः – संहारके समय जीवोंका लय करनेवाले
- नारायणः – जलमें शयन करनेवाले
- नरः भक्तोंको परम धाममें ले जानेवाले ।
- असंख्येयः – नाम और गुणोंकी संख्यासे ले , शून्य ,
- अप्रमेयात्मा- किसीसे भी मापे न ले जा सकनेवाले
- विशिष्ट : – सबसे उत्कृष्ट
- शिष्टकृत् – शासन करनेवाले
- शुचिः यक्ष | परम शुद्ध
- सिद्धार्थ : – इच्छित अर्थको सर्वथा सिद्ध कर चुकनेवाले
- सिद्धसंकल्पः – संक्षिप्त महा सत्य संकल्पवाले
- सिद्धिदः – कर्म करने वालोंको उनके अधिकारके अनुसार फल देनेवाले
- सिद्धिसाधनः – सिद्धिरूप क्रियाके साधक ।
- वृषाही– द्वादशाहादि यज्ञोंको अपनेमें ख स्थित रखनेवाले
- वृषभ : – भक्तोंके लिये इच्छित प्र वस्तुओंकी वर्षा करनेवाले
- विष्णुः – शुद्ध ई सत्त्वमूर्ति
- वृषपर्वा – परम धाममें आरूढ़ होनेकी इच्छावालोंके लिये धर्मरूप सीढ़ियोंवाले
- वृषोदरः – अपने उदरमें धर्मको धारण करने वाले
- वर्धनः – भक्तोंको बढ़ानेवाले
- वर्धमानः – संसाररूपसे बढ़नेवाले
- विविक्तः – संसारसे पृथक् रहनेवाले
- श्रुतिसागरः – वेदरूप जलके समुद्र ।
- सुभुजः – जगत्की रक्षा करनेवाली अति सुन्दर भुजाओंवाले
- दुर्धरः– दूसरोंसे धारण न किये जा सकनेवाले पृथ्वी आदि लोकधारक पदार्थोंको भी धारण करनेवाले और स्वयं किसीसे धारण न किये जा सकनेवाले
- वाग्मी: वेदमयी वाणीको उत्पन्न करनेवाले
- महेन्द्रः ईश्वरोंके भी ईश्वर
- वसुदः – धन देनेवाले
- वसुः – धनरूप
- नैकरूपः अनेक रूपधारी
- बृहद्रूपः – विश्वरूपधारी
- शिपिविष्टः– सूर्यकिरणोंमें स्थित रहनेवाले
- प्रकाशनः – सबको प्रकाशित करनेवाले ।
- ओजस्तेजोद्युतिधरः – प्राण बल, शूरवीरता आदि गुण तथा ज्ञानकी दीप्तिको धारण करनेवाले
- प्रकाशात्मा – प्रकाशरूप विग्रहवाले
- प्रतापनः– सूर्य आदि अपनी और विभूतियोंसे विश्वको तृप्त करनेवाले
- ऋद्धः – धर्म , ज्ञान और वैराग्यादिसे सम्पन्न
- स्पष्टाक्षरः – ओंकाररूप स्पष्ट अक्षरवाले
- मन्त्रः – ऋक् , साम और यजुरूप मन्त्रोंसे जाननेयोग्य
- चन्द्रांशुः – संसारतापसे संतप्तचित्त पुरुषोंको चन्द्रमाकी किरणोंके समान आह्लादित करनेवाले
- भास्करद्युतिः – सूर्यके समान प्रकाशस्वरूप ।
- अमृतांशूद्भवः – समुद्रमन्थन करते समय चन्द्रमाको उत्पन्न करनेवाले समुद्ररूप
- भानुः – भासनेवाले
- शशबिन्दु : खरगोशके समान चिह्नवाले चन्द्रमाकी तरह सम्पूर्ण प्रजाका पोषण करनेवाले
- सुरेश्वरः– देवताओंके ईश्वर
- औषधम् – संसाररोगको मिटानेके लिये औषधरूप
- जगतः सेतुः – संसारसागरको पार करानेके लिये सेतुरूप
- सत्यधर्मपराक्रमः सत्यस्वरूप धर्म और पराक्रमवाले ।
- भूतभव्यभवन्नाथः – भूत , भविष्य और वर्तमान सभी प्राणियोंके स्वामी
- पवन : वायुरूप
- पावनः – दृष्टिमात्रसे जगत्को पवित्र करनेवाले
- अनलः – अग्निस्वरूप
- कामहा – अपने भक्तजनोंके सकामभावको नष्ट करनेवाले
- कामकृत्– भक्तोंकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाले
- कान्तः – कमनीयरूप
- कामः – ( क ) ब्रह्मा , ( अ ) विष्णु , ( म ) महादेव- इस प्रकार त्रिदेवरूप
- कामप्रदः – भक्तोंको उनकी कामना की हुई वस्तुएँ प्रदान करनेवाले
- प्रभुः – सर्वोत्कृष्ट सर्वसामर्थ्यवान् स्वामी । अति धारण लोकधारक किसीसे
- युगादिकृत् – युगादिका आरम्भ करने वाले
- युगावर्तः – चारों युगोंको चक्रके समान घुमानेवाले
- नैकमायः – अनेकों मायाओंको धारण करनेवाले
- महाशनः– कल्पके अन्तमें सबको ग्रसन करनेवाले
- अदृश्यः – समस्त ज्ञानेन्द्रियोंके अविषय
- व्यक्तरूपः– स्थूलरूपसे व्यक्त स्वरूपवाले
- सहस्त्रजित् – युद्धमें हजारों देवशत्रुओंको जीतनेवाले
- अनन्तजित्: युद्ध और क्रीडा आदिमें सर्वत्र समस्त भूतोंको जीतनेवाले
- इष्ट : – परमानन्दरूप होनेसे सर्वप्रिय
- अविशिष्ट– सम्पूर्ण विशेषणोंसे रहित सर्वश्रेष्ठ
- शिष्टेष्ट : – शिष्ट पुरुषोंके इष्टदेव
- शिखण्डी – मयूरपिच्छको अपना पूर्ण शिरोभूषण बना लेनेवाले
- नहुषः – भूतोंको मायासे बाँधनेवाले
- वृषः – कामनाओंको करनेवाले
- क्रोधकृत्कर्ता– दुष्टोंपर क्रोध करनेवाले
- क्रोधहा– क्रोधका नाश करनेवाले और जगत्को उनके कर्मोंके अनुसार रचनेवाले
- विश्वबाहुः – सब ओर बाहुओंवाले
- महीधरः – पृथ्वीको धारण करनेवाले ।
- अच्युतः – छ : भावविकारोंसे रहित
- प्रथितः – जगत्की उत्पत्ति आदि कर्मोंके कारण
- प्राणः – हिरण्यगर्भरूपसे प्रजाको जीवित रखनेवाले
- प्राणदः – सबको प्राण देनेवाले
- वासवानुजः – वामनावतारमें कश्यपजीद्वारा अदितिसे इन्द्रके अनुजरूपमें उत्पन्न होनेवाले
- अपां निधिः – जलको एकत्रित रखनेवाले समुद्ररूप
- अधिष्ठानम् – उपादानकारणरूपसे सब भूतोंके आश्रय
- अप्रमत्तः – अधिकारियोंको उनके कर्मानुसार फल देनेमें कभी प्रमाद न करनेवाले
- प्रतिष्ठितः – अपनी महिमामें स्थित ।
- स्कन्दः – स्वामिकार्तिकेयरूप ,
- स्कन्दधरः – धर्मपथको धारण करनेवाले
- धुर्यः – समस्त भूतोंके जन्मादिरूप धुरको धारण करनेवाले
- वरदः – इच्छित वर देनेवाले
- वायुवाहनः – सारे वायुभेदोंको चलानेवाले
- वासुदेवः – समस्त प्राणियोंको अपनेमें बसानेवाले तथा सब भूतोंमें सर्वात्मारूपसे बसनेवाले , दिव्यस्वरूप
- बृहद्धानुः – महान् किरणोंसे युक्त एवं सम्पूर्ण जगत्को प्रकाशित करनेवाले
- आदिदेव : सबके आदि कारण देव
- पुरन्दरः – असुरों के संहारक
- अशोकः – सब प्रकारके शोकसे रहित
- तारण : – संसारसागरसे तारनेवाले
- तारः – जन्म – जरा मृत्युरूप भयसे तारनेवाले
- शूरः – पराक्रमी
- शौरिः – शूरवीर श्रीवसुदेवजीके पुत्र
- जनेश्वरः – समस्त जीवोंके स्वामी
- अनुकूलः – आत्मारूप होनेसे अनुकूल
- शतावर्तः– धर्मरक्षाके लिये सैकड़ों अवतार लेनेवाले
- पद्मी – अपने हाथमें कमल को धारण करनेवाले
- पद्मनिभेक्षणः– कमलके समान कोमल दृष्टिवाले । र ले कमलको अपनी नाभिमें
- अरविन्दाक्षः– कमलके समान आँखोंवाले पद्मगर्भः – हृदयकमलमें ध्यान करनेयोग्य
- शरीरभृत् – अन्नरूपसे सबके शरीरोंका के भरण करनेवाले
- महद्भिः – महान् विभूतिवाले
- ऋद्धः – सबमें बढ़े – चढ़े
- वृद्धात्मा – ले पुरातन आत्मवान्
- महाक्षः – विशाल नेत्रोंवाले
- गरुडध्वजः – गरुडके चिह्नसे युक्त ध्वजावाले । ३५५ अतुल : – तुलनारहित , ३५६ शरभः – ले शरीरोंको प्रत्यगात्मरूपसे प्रकाशित करनेवाले , को प्ले , नसे ३५७ भीमः – जिससे पापियोंको भय हो ऐसे भयानक , ३५८ समयज्ञः – समभावरूप यज्ञसे प्राप्त होनेवाले , ३५ ९ हविर्हरिः – यज्ञोंमें हविर्भागको और अपना स्मरण करनेवालोंके पापोंको हरण करनेवाले , ३६० सर्वलक्षणलक्षण्यः – समस्त लक्षणोंसे लक्षित ले होनेवाले , ३६१ लक्ष्मीवान् – अपने वक्षःस्थलमें को लक्ष्मीजीको सदा बसानेवाले , ३६२ समितिञ्जयः – संग्रामविजयी । रूप , ले , ले , बाले ३४६ पद्मनाभः स्थित रखनेवाले , ३४७ रूप , पूर्ण के कसे ले ले ३६३ विक्षरः – नाशरहित , ३६४ रोहितः – मत्स्यविशेषका स्वरूप धारण करके अवतार लेनेवाले , ३६५ मार्गः – परमानन्द प्राप्तिके साधन – स्वरूप , ३६६ हेतुः- संसारके निमित्त और उपादान कारण , ३६७ दामोदरः – यशोदाजीद्वारा रस्सीसे बँधे हुए उदरवाले , ३६८ सहः – भक्तजनोंके अपराधको सहन करनेवाले , ३६ ९ महीधरः- पर्वतरूपसे पृथ्वीको धारण करनेवाले , ३७० महाभागः – महान् भाग्यशाली , ३७१ वेगवान्– तीव्रगतिवाले , ३७२ अमिताशनः सारे विश्वको भक्षण करनेवाले । वीर ३७३ उद्भवः – जगत्की उत्पत्तिके उपादानकारण , वोंके ३७४ क्षोभण : – जगत्की उत्पत्तिके समय प्रकृति के और पुरुषमें प्रविष्ट होकर उन्हें क्षुब्ध करनेवाले , 0100
३७५ देवः – प्रकाशस्वरूप , ३७६ श्रीगर्भः – सम्पूर्ण ऐश्वर्यको अपने उदरगर्भमें रखनेवाले , ३७७ परमेश्वरः – सर्वश्रेष्ठ शासन करनेवाले , ३७८ करणम् – संसारकी उत्पत्तिके सबसे बड़े साधन , ३७ ९ कारणम् जगत्के उपादान और निमित्तकारण , ३८० कर्ता सब प्रकारसे स्वतन्त्र , ३८१ विकर्ता – विचित्र भुवनोंकी रचना करनेवाले , ३८२ गहनः – अपने विलक्षण स्वरूप , सामर्थ्य और लीलादिके कारण पहचाने न जा सकनेवाले , ३८३ गुहः – मायासे अपने स्वरूपको ढक लेनेवाले । ७५२ ३८४ व्यवसाय : – ज्ञानमात्रस्वरूप , ३८५ व्यवस्थानः – लोकपालादिकोंको , समस्त जीवोंको , चारों वर्णाश्रमोंको एवं उनके धर्मोको व्यवस्थापूर्वक रचनेवाले , ३८६ संस्थानः – प्रलयके सम्यक् स्थान , ३८७ स्थानदः – ध्रुवादि भक्तोंको स्थान देनेवाले , ३८८ ध्रुवः – अविनाशी , ३८ ९ परद्धिः – श्रेष्ठ विभूतिवाले , ३ ९ ० परमस्पष्ट : – ज्ञानस्वरूप होनेसे परम स्पष्टरूप , अवतार – विग्रहमें सबके सामने प्रत्यक्ष प्रकट होनेवाले , ३ ९ १ तुष्टः – एकमात्र परमानन्दस्वरूप , ३ ९ २ पुष्ट : – सर्वत्र परिपूर्ण , ३ ९ ३ शुभेक्षण : दर्शनमात्रसे कल्याण करनेवाले । ३ ९ ४ रामः – योगिजनोंके रमण करनेके लिये नित्यानन्दस्वरूप , ३ ९ ५ विरामः- प्रलयके समय प्राणियोंको अपनेमें विराम देनेवाले , ३ ९ ६ विरतः = रजोगुण तथा तमोगुणसे सर्वथा शून्य , ३ ९ ७ मार्गः – मुमुक्षुजनोंके अमर होनेके साधनस्वरूप , ३ ९ ८ नेयः – उत्तम ज्ञानसे ग्रहण करनेयोग्य , ३ ९९ नयः – सबको नियममें रखनेवाले , ४०० अनयः – स्वतन्त्र , ४०१ वीरः – पराक्रमशाली , ४०२ शक्तिमतां श्रेष्ठः शक्तिमानों में भी अतिशय शक्तिमान् ४०३ धर्मः – श्रुतिस्मृति – रूप धर्म , ४०४ धर्मविदुत्तमः – समस्त धर्मवेत्ताओंमें उत्तम । ४०५ वैकुण्ठः परमधामस्वरूप , ४०६ पुरुषः – विश्वरूप शरीरमें शयन करनेवाले , ४०७ प्राणः – प्राणवायुरूपसे चेष्टा करनेवाले , ४०८ प्राणदः
ॐ कारस्वरूप ४१० सम्पूर्ण सर्गके आदिमें प्राण प्रदान करनेवाले , ४० ९ प्रणवः – पृथुः – 1 -विराट् – रूपसे कार्योंको विस्तृत होनेवाले , ४११ हिरण्यगर्भः – ब्रह्मारूपसे प्रकट होनेवाले , ४१२ शत्रुघ्नः – शत्रुओंको मारनेवाले ४१३ व्याप्तः – कारणरूपसे सब करनेवाले ४१४ वायुः – पवनरूप , ४१५ अधोक्षजः अपने स्वरूपसे क्षीण न होनेवाले । व्याप्त [ अनुशासनपर्व , , श्रेष्ठ होनेसे प्रत्यक्ष , ४१६ ऋतुः – कालरूपसे लक्षित होनेवाले ४१७ सुदर्शन : – भक्तोंको सुगमतासे ही दर्शन दे देनेवाले , ४१८ कालः– सबकी गणना करनेवाले , ४१ ९ परमेष्ठी – अपनी प्रकृष्ट महिमामें स्थित रहने के स्वभाववाले , ४२० परिग्रहः – शरणार्थियों द्वारा सब ओरसे ग्रहण किये जानेवाले , ४२१ उग्रः सूर्यादिके भी भयके कारण , ४२२ संवत्सरः – सम्पूर्ण भूतोंके वासस्थान , ४२३ दक्ष : – सब कार्योंको बड़ी कुशलतासे करनेवाले , ४२४ विश्रामः विश्रामकी इच्छावाले मुमुक्षुओंको मोक्ष देनेवाले ४२५ विश्वदक्षिणः – बलिके यज्ञमें समस्त विश्वको दक्षिणारूपमें प्राप्त करनेवाले । ४२६ विस्तारः – समस्त लोकोंके विस्तारके कारण ४२७ स्थावरस्थाणुः – स्वयं स्थितिशील रहकर पृथ्वी आदि स्थितिशील पदार्थोंको अपने में स्थित रखनेवाले , ४२८ प्रमाणम्- ज्ञानस्वरूप होनेके कारण स्वयं प्रमाणरूप , ४२ ९ बीजमव्ययम् – संसार अविनाशी कारण , ४३० अर्थ : -सुखस्वरूप होनेके कारण सबके द्वारा प्रार्थनीय , ४३१ अनर्थः – – पूर्णकाम होनेके कारण प्रयोजनरहित , ४३२ महाकोशः – बड़े महाभोगः – सुखरूप महान् श्रेष्ठः- भोगवाले , ४३४ महाधन – यथार्थ और अतिशय धनस्वरूप । खजानेवाले , ४३३ ४३५ अनिर्विण्णः – उकताहटरूप विकारसे रहित , ४३६ स्थविष्ठः – विरारूपसे स्थित , ४३७ अभू : – अजन्मा , ४३८ धर्मयुपः – धर्मके स्तम्भरूप , ४३ ९ महामख : – अर्पित किये हुए यज्ञोको निर्वाणरूप महान् फलदायक बना देनेवाले ,
अनुशासनपर्व ४४० नक्षत्रनेमिः – समस्त नक्षत्रोंके केन्द्रस्वरूप ४४१ नक्षत्री- चन्द्ररूप , ४४२ क्षमः- समस्त कार्योंमें जानेपर परमात्मभावसे स्थित , ४४४ समीहन : समर्थ , ४४३ क्षामः – समस्त विकारोंके क्षीण हो • सृष्टि आदिके लिये भलीभाँति चेष्टा करनेवाले । ४४५ यज्ञः – सर्वयज्ञस्वरूप , ४४६ इज्य : – पूजनीय ४४७ महेज्य : —सबसे अधिक उपासनीय , ४४८ क्रतुः – यूपसंयुक्त यज्ञस्वरूप , ४४ ९ सत्रम् सत्पुरुषोंकी रक्षा करनेवाले , ४५० सतां गतिः – सत्पुरुषोंके परम प्रापणीय स्थान , ४५१ सर्वदर्शी समस्त प्राणियोंको और उनके कार्योंको देखनेवाले ४५२ विमुक्तात्मा – सांसारिक बन्धनसे रहित आत्मस्वरूप ४५३ सर्वज्ञः – सबको जाननेवाले , ४५४ ज्ञानमुत्तमम् – सर्वोत्कृष्ट ज्ञानस्वरूप । ४५५ सुव्रतः – प्रणतपालनादि श्रेष्ठ व्रतोंवाले ४५६ सुमुखः – सुन्दर और प्रसन्न मुखवाले ४५७ सूक्ष्मः – अणुसे भी अणु ४५८ सुघोष : – सुन्दर और गंभीर वाणी बोलनेवाले ४५ ९ सुखदः – अपने भक्तोंको सब प्रकारसे सुख देनेवाले , ४६० सुहृत् – प्राणिमात्रपर अहैतुकी दया करनेवाले परम मित्र , ४६१ मनोहर : – अपने रूपलावण्य और मधुर भाषणादिसे सबके मनको हरनेवाले ४६२ जितक्रोधः – क्रोधपर विजय करनेवाले अर्थात् अपने साथ अत्यन्त अनुचित व्यवहार करनेवालेपर भी क्रोध न करनेवाले , ४६३ वीरबाहुः – अत्यन्त पराक्रमशील भुजाओंसे युक्त , ४६४ विदारणः अधर्मियोंको नष्ट करनेवाले । १४६५ स्वापन : – प्रलयकालमें समस्त प्राणियोंको • अज्ञाननिद्रामें शयन करानेवाले , ४६६ स्ववश : – स्वतन्त्र , ४६७ व्यापी आकाशकी भाँति सर्वव्यापी , ४६८ नैकात्मा- प्रत्येक युगमें लोकोद्धारके लिये अनेक रूप धारण करनेवाले , ४६ ९ नैककर्मकृत्- जगत्की उत्पत्ति , स्थिति और प्रलयरूप तथा भिन्न- भिन्न अवतारोंमें मनोहर लीलारूप अनेक कर्म करनेवाले , ४७० वत्सरः – सबके निवासस्थान , ४७१ वत्सलः –
VISHNU BHAGWAN KE 1000 NAAM, 1000 NAAM