Vishnu Ji Ke 108 Naam– महाभारत के अनुशासन पर्व मे भीष्म, युधिष्ठिर को भगवान विष्णू के 1000 नामों का वर्णन करते हुए वे कहते हैं हे युधिष्ठिर! ब्रह्मादि देवोंके देव , देश , काल और वस्तुसे अपरिच्छिन्न , क्षर – अक्षरसे श्रेष्ठ पुरुषोत्तमका सहस्र नामोंके द्वारा निरन्तर तत्पर रहकर गुण – संकीर्तन करनेसे पुरुष सब दुःखोंसे पार विनाशरहित पुरुषका सब समय भक्तिसे युक्त होकर पूजन करनेसे , उसीका ध्यान करनेसे तथा पूर्वोक्त प्रकारसे सहस्रनामोंके द्वारा स्तवन एवं नमस्कार पूजा करनेवाला सब दुःखोंसे छूट जाता है ।
उस जन्म – मृत्यु आदि छ : भावविकारोंसे रहित , सर्वव्यापक , सम्पूर्ण लोकोंके महेश्वर , लोकाध्यक्ष देवकी निरन्तर स्तुति करनेसे मनुष्य सब दुःखोंसे पार हो जाता है । जगत्की रचना करनेवाले ब्रह्माके तथा ब्राह्मण , तप और श्रुतिके हितकारी , सब धर्मोंको जाननेवाले , प्राणियोंकी कीर्तिको ( उनमें अपनी शक्तिसे प्रविष्ट होकर ) बढ़ानेवाले , सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी , समस्त भूतोंके उत्पत्ति – स्थान एवं संसारके कारणरूप परमेश्वरका स्तवन करनेसे मनुष्य सब दुःखोंसे छूट जाता है ।
Vishnu Ji Ke 108 Naam | विष्णूसह्त्राम
Bhagwan Vishnu Ke Naam -पृथ्वीपते ! जो पवित्र करनेवाले तीर्थादिकोंमें परम पवित्र है , मंगलोंका मंगल है , देवोंका देव है तथा जो भूत – प्राणियोंका अविनाशी पिता है , कल्पके आदिमें जिससे सम्पूर्ण भूत उत्पन्न होते हैं और फिर युगका क्षय होनेपर महाप्रलयमें जिसमें वे विलीन हो जाते हैं , उस लोकप्रधान , संसारके स्वामी , भगवान् विष्णुके पाप और संसारभयको दूर करनेवाले हजार नामोंको मुझसे सुन । Vishnu Ji Ke 108 Naam जो नाम गुणके कारण प्रवृत्त हुए हैं , उनमेंसे जो – जो प्रसिद्ध हैं और मन्त्रद्रष्टा मुनियों द्वारा जो जहाँ – तहाँ सर्वत्र भगवत्कथाओंमें गाये गये हैं |
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उस अचिन्त्यप्रभाव महात्माके उन समस्त नामोंको पुरुषार्थ – सिद्धिके लिये वर्णन करता हूँ । Vishnu Ji Ke 108 Naam
ॐ सच्चिदानन्दस्वरूप ,
- विश्वम्– समस्त जगत के कारणरूप
- विष्णुः – सर्वव्यापी
- वषट्कारः – जिनके उद्देश्यसे यज्ञमें वषट् क्रिया की जाती है , ऐसे यज्ञस्वरूप
- भूतभव्यभवत्प्रभुः – भूत , भविष्यत् और वर्तमानके स्वामी
- भूतकृत:- रजोगुणका आश्रय लेकर ब्रह्मारूपसे सम्पूर्ण भूतोंकी रचना करनेवाले
- भूतभृत् – सत्त्वगुणका आश्रय लेकर सम्पूर्ण भूतोंका पालन – पोषण करनेवाले
- भाव : – नित्यस्वरूप होते हुए भी स्वतः उत्पन्न होनेवाले Vishnu Ji Ke 108 Naam
- भूतात्मा– सम्पूर्ण भूतोंके आत्मा अर्थात् अन्तर्यामी
- भूतभावनः – भूतोंकी उत्पत्ति और वृद्धि करनेवाले ।
- पूतात्मा – पवित्रात्मा
- परमात्मा :-परमश्रेष्ठ नित्य – शुद्ध – बुद्ध – मुक्तस्वभाव
- मुक्तानां परमा गतिः – मुक्त पुरुषोंकी सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप
- अव्ययः – कभी विनाशको प्राप्त न होनेवाले
- पुरुष : – पुर अर्थात् शरीरमें शयन करनेवाले
- साक्षी – बिना किसी व्यवधानके सब कुछ देखनेवाले
- क्षेत्रज्ञः – क्षेत्र अर्थात् समस्त प्रकृतिरूप शरीरको पूर्णतया जाननेवाले
- अक्षरः – कभी क्षीण न होनेवाले ।
- योगः – मनसहित सम्पूर्ण ज्ञानेन्द्रियोंके निरोधरूप योगसे प्राप्त होनेवाले
- योगविदां नेता – योगको जाननेवाले भक्तोंके योगक्षेमादिका निर्वाह करनेमें अग्रसर रहनेवाले
- प्रधानपुरुषेश्वरः – प्रकृति और पुरुषके स्वामी
- नारसिंहवपुः – मनुष्य और सिंह दोनोंके – जैसा शरीर धारण करनेवाले , नरसिंहरूप
- श्रीमान्– वक्षःस्थलमें सदा श्रीको धारण करनेवाले Vishnu Ji Ke 108 Naam
- केशव- (क) ब्रह्मा, (अ) विष्णू और (ईश) महादेव इस प्रकार त्रिमूर्ति स्वरूप
- पुरुषोत्तम : -क्षर और अक्षर इन दोनों में सर्वथा उत्तम ।
- सर्वः – असत् और सत् – सबकी उत्पत्ति स्थिति और प्रलयके स्थान
- शर्वः – सारी प्रजाका प्रलयकालमें संहार करनेवाले
- शिवः – तीनों गुणोंसे परे कल्याणस्वरूप
- स्थाणुः – स्थिर
- भूतादिः – भूतोंके आदि कारण
- निधिरव्ययः– प्रलयकालमें सब प्राणियोंके लीन होनेके अविनाशी स्थानरूप
- सम्भवः – अपनी इच्छासे भली प्रकार प्रकट होनेवाले
- भावन : समस्त भोक्ताओंके फलोंको उत्पन्न करनेवाले
- भर्ता- सबका भरण करनेवाले
- प्रभवः – उत्कृष्ट ( दिव्य ) जन्मवाले
- प्रभुः – सबके स्वामी Vishnu Ji Ke 108 Naam
- ईश्वरः – उपाधिरहित ऐश्वर्यवाले ।
- स्वयम्भूः – स्वयं उत्पन्न होनेवाले
- शम्भुः – भक्तोंके लिये सुख उत्पन्न करनेवाले
- आदित्यः – द्वादश आदित्योंमें विष्णुनामक आदित्य
- पुष्कराक्षः – कमलके समान नेत्रवाले
- महास्वनः – वेदरूप अत्यन्त महान् घोषवाले
- धाता : विश्वको धारण करनेवाले
- विधाता – कर्म और उसके फलोंकी रचना करनेवाले
- धातुरुत्तमः – कार्यकारणरूप सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेवाले एवं सर्वश्रेष्ठ
- अप्रमेयः – प्रमाणादिसे जाननेमें न आ सकनेवाले
- हृषीकेशः – इन्द्रियोंके स्वामी
- पद्मनाभः – जगत्के कारणरूप कमलको अपनी नाभिमें स्थान देनेवाले
- अमरप्रभुः – देवताओंके स्वामी
- विश्वकर्मा– सारे जगत्की रचना करनेवाले
- मनुः – प्रजापति मनुरूप
- त्वष्टा– संहारके समय सम्पूर्ण प्राणियोंको क्षीण करनेवाले
- स्थविरो ध्रुवः – अति प्राचीन , एवं अत्यन्त स्थिर
- अग्राह्यः – मनसे ग्रहण न किये जा सकनेवाले
- शाश्वतः – सब कालमें स्थित रहनेवाले Vishnu Ji Ke 108 Naam
- कृष्णः- सबके चित्तको बलात् अपनी ओर आकर्षित करनेवाले श्यामसुन्दर सच्चिदानन्दमय भगवान् श्रीकृष्ण
- लोहिताक्षः – लाल नेत्रोंवाले
- प्रतदनः – प्रलयकालमें प्राणियोंका संहार करनेवाले
- प्रभूतः – ज्ञान , ऐश्वर्य आदि गुणोंसे सम्पन्न
- त्रिककुब्धाम- ऊपर – नीचे और मध्यभेदवाली पवित्र करनेवाले तीनों दिशाअकि आश्रयरूप
- मङ्गल परम : परम मंगल ।
- पवित्रम् – सबको पवित्र करनेवाले
- ईशानः – सर्वभूतक नियन्ता
- प्राण : – सबको जीवित रखनेवाले प्राणस्वरूप
- श्रेष्ठ : – सबमें उत्कृष्ट होनेसे परम श्रेष्ठ
- प्रजापतिः – ईश्वररूपसे सारी प्रजाओंके मालिक
- हिरण्यगर्भः – ब्रह्माण्ड रूप हिरण्यमय अण्डके भीतर ब्रह्मारूपसे व्याप्त होनेवाले
- भूगर्भः – पृथ्वीको गर्भमें रखनेवाले
- माधवः – लक्ष्मीके पति
- मधुसूदनः- मधुनामक दैत्यको मारनेवाले ।
- ईश्वरः – सर्वशक्तिमान् ईश्वर
- विक्रमी – शूरवीरतासे युक्त
- धन्वी – शार्ङ्गधनुष रखनेवाले
- मेधावी – अतिशय बुद्धिमान्
- विक्रमः – गरुड पक्षीद्वारा गमन करनेवाले
- क्रमः – क्रम विस्तारके कारण
- दुराधर्षः– किसीसे भी तिरस्कृत न हो सकनेवाले
- कृतज्ञः – अपने निमित्तसे थोड़ा – सा भी त्याग किये जानेपर उसे बहुत माननेवाले यानी पत्र – पुष्पादि थोड़ी – सी वस्तु समर्पण करनेवालोंको भी मोक्ष दे देनेवाले
- आत्मवान् – अपनी ही महिमामें स्थित
- सुरेशः – देवताओंके स्वामी
- शरणम् दीन – दुःखियोंके परम आश्रय
- शर्णम – परमानन्दस्वरूप
- विश्वरेताः – विश्वके कारण
- प्रजाभवः – सारी प्रजाको उत्पन्न करनेवाले
- संवत्सरः – कालस्वरूपसे स्थित
- व्यालः – सर्पके समान ग्रहण करनेमें न आ सकनेवाले
- प्रत्ययः – उत्तम बुद्धिसे जाननेमें आनेवाले
- सर्वदर्शन : – सबके द्रष्टा Stumpe
- अजः – जन्मरहित
- सर्वेश्वरः – समस्त ईश्वरोंके भी ईश्वर
- सिद्धः – नित्य सिद्ध
- सिद्धिः – सबके फलरूप
- सर्वादिः – सब भूतोंके आदि कारण
- अच्युतः – अपनी स्वरूप – स्थितिसे कभी त्रिकालमें भी च्युत न होनेवाले
- वृषाकपिः– धर्म और वराहरूप
- सर्वयोग विनिःसृतः – नाना प्रकारके शास्त्रोक्त साधनों में आनेवाले ।
- वसुः – सब भूतोंके वासस्थान तथा सब भूतोंमें बसनेवाले
- वसुमनाः – उदार मनवाले
- सत्यः – सत्यस्वरूप
- असम्मितः – समस्त पदार्थोंसे मापे न जा सकनेवाले
- पुण्डरीकाक्षः – कमलके समान नेत्रोंवाले
- वृषकर्मा – धर्ममय कर्म करनेवाले
- वृषाकृतिः – धर्मकी स्थापना करनेके लिये ने विग्रह धारण करनेवाले
- रुद्रः – दुःख या दुःखके कारणको सी दूर भगा देनेवाले
- विश्वयोनिः – विश्वको उत्पन्न करनेवाले
- अमृतः— कभी न मरनेवाले
- शाश्वतस्थाणुः – नित्य सदा एकरस रहनेवाले एवं स्थिर
- सर्वगः – कारणरूपसे सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले
- सर्वविद्भानुः – सब कुछ जाननेवाले तथा प्रकाशरूप , १२५ विष्वक्सेनः- युद्धके लिये की हुई तैयारीमात्रसे ही दैत्य- सेनाको तितर – बितर ण , ले , पसे न नेमें
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