ऋग्वैदिक काल | RIGVEDIC AGE

वैदिक- युग ( Vedic Age )

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भारतीय संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान अत्यन्त गौरवपूर्ण है । वेद भारत की संस्कृति की अमूल्य सम्पदा है । आयों के प्राचीनतम ग्रन्थ भी वेद ही हैं ।

Vedic Age Meaning In Hindi

  • हिन्दुओं के आचार – विचार , रहन – सहन , धर्म कर्म , की विस्तृत जानकारी इन्हीं वेदों से ही प्राप्त होती है , जिस प्रकार लौकिक वस्तुओं को देखने के लिए नेत्रों की आवश्यकता होती है , उसी प्रकार अलौकिक तथ्यों को जानने के लिए वेद की उपादेयता है ।
  • यही कारण है कि मनु ने लिखा कि ‘ आस्तिक ‘ वह है जो वेद की प्रामाणिकता में विश्वास रखे व ‘ नास्तिक ‘ वह है जो वेद की निन्दा करे । इससे हिन्दू संस्कृति में वेदों का महत्व स्वतः स्पष्ट हो जाता है ।
  • वेदों की रचना 
  • ऋग्वेद की रचना सम्भवतः 1500 ई. पू. से 1000 ई . पू . के मध्य की गयी होगी । अन्य वेदों व वैदिक साहित्य की रचना ऋग्वेद के पश्चात् की गयी ।
  • इस प्रकार सम्पूर्ण वैदिक साहित्य का सृजन सम्भवतः 1500 ई . पू . से 200 ई . पू . के मध्य किया गया ।
  • इसी युग ( 1500 ई. पू. से 200 ई. पू. ) को ‘ वैदिक युग ‘ के नाम से जाना जाता है ।

वेदों की संख्या चार है :

  1. ऋग्वेद 
  2. यजुर्वेद 
  3. सामवेद 
  4. अथर्ववेद

इन वेदों में ऋग्वेद प्राचीनतम है व अथर्ववेद की रचना सबसे बाद में की गयी ।

जिस युग में ऋग्वेद रचना की गयी उसे ऋग्वैदिक काल अथवा पूर्व वैदिक काल ( Rigvedic Age or Early Vedic Age ) हैं ।

शेष तीनों वेदों के रचना काल को उत्तर वैदिक युग ( Later Vedic Age ) कहते हैं । 

ऋग्वैदिक सभ्यता ( RIGVEDIC CIVILIZATION )

  • आर्यों का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद है ।
  • यह ग्रन्थ 1017 सूक्तों की संहिता है तथा 11 बालाखिल्य सूक्तों को मिलाने पर इसमें कुल 1028 सूक्त हैं ।
  • यह संहिता दस मण्डलों में विभक्त है ।
  • ऋग्वेद से आर्यों की तत्कालीन सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं पर व्यापक प्रकाश पड़ता है ।

सामाजिक स्थिति SOCIAL SITUATION IN RIGVADIC AGE

वर्णन निम्नवत् है :

ऋग्वेद से तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था ( Social Organization ) पर व्यापक प्रकाश पड़ता है , Vedic Age Meaning In Hindi

  1. पारिवारिक जीवन ( Family Life ) — आर्यों के समाज की आधारभूत इकाई परिवार थी । ऋग्वेदकालीन परिवार पितृसत्तात्मक ( Patriarchal ) परिवार का मुखिया उस परिवार का सर्वाधिक आयु वाला पुरुष होता था । वह पितामह, पिता, अर्थात् किसी चाचा, बड़ा पुत्र में से कोई भी हो सकता था । परिवार के मुखिया का सम्पूर्ण का सम्पूर्ण परिवार पर पूर्ण अधिकार होता था तथा अन्य सदस्यों को उसकी आज्ञा का पालन करना आवश्यक था । परिवार में गृह – पत्नी का विशिष्ट महत्व एवं आदर था । ‘ गृह – पत्नी पर घरेलू कार्यों का सम्पूर्ण का सम्पूर्ण परिवार पर पूर्ण अधिकार होता था तथा अन्य सदस्यों को उसकी आज्ञा का पालन करना आवश्यक था । तत्कालीन समाज में जन व धन की सुरक्षा-  उत्तरदायित्व होता था । पुत्र न होने पर गोद लेने की प्रथा का भी प्रचलन था । परिवार में कभी – कभी सास ( Mother – in – law ) के रहने का भी उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है । अतिथि का अत्यधिक आदर – सत्कार करने की प्रथा थी । Vedic Age Meaning In Hindi
  2. मनोरंजन ( Amusement ) – जीवन के प्रति आर्यों का स्वस्थ एवं आशाबादी दृष्टिकोण था । वे जीवन को अधिक से अधिक सुखद तरीके से व्यतीत करना चाहते थे । मनोरंजन के प्रमुख साधन संगीत , नृत्य , जुआ , शिकार , रथ – दौड़ तथा छूत ( dicing ) थे । संगीत के ऋग्वेदकालीन लोग विशेष रूप से प्रेमी थे । vedic period notesvedic and post vedic period

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  3. भोजन ( Food and Drink ) – ऋग्वेदकालीन व्यक्तियों के भोजन में दूध का विशेष महत्व था । दूध तथा उससे बनने वाली अन्य वस्तुओं ( घी , पनीर ) का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता था । अनाज को पीसकर उसमें घी अथवा मक्खन मिलाकर केक की तरह प्रयोग में लाया जाता था । सब्जियों एवं फलों को भी खाया जाता था । भोजन मात्र शाकाहारी ही नहीं माँसाहारी भी होता था । प्रायः भेड़, बकरी व बैल का गोश्त भूनकर ही लोग खाते थे । गाय को पवित्र मानकर उसका गोश्त नहीं खाया जाता था । ऋग्वेद में यद्यपि मदिरा – पान को ‘ अधार्मिकता एवं अपराध – प्रेरक ‘ ( Leading people to crime and godlessness ) बताया गया है, परन्तु मदिरा – पान का अत्यधिक प्रचलन था ।
  4. वेश – भूषा एवं प्रसाधन ( Dress and Decoration ) — ऋग्वैदिक आर्यों की वेश – भूषा साधारण थी । आर्य सूती, ऊनी व रंग – बिरंगे कपड़े पहनते थे । मृगछाल का भी प्रयोग किया जाता था । आर्यों की पोशाक में प्रारम्भ में प्रमुख दो वस्त्र होते थे । ‘ वास ‘ ( Vasa ) जो शरीर के नीचे के भाग पर पहना जाता था, दूसरे शब्दों में वास की एक प्रकार से धोती से तुलना की जा सकती है । दूसरा वस्त्र अधिवास ‘ ( Adhivasa ) होता था जो शरीर के ऊपरी भाग पर पहना जाता था । बाद में एक अन्य वस्त्र ‘ नीवी ‘ ( Nivi ) का भी प्रयोग होने लगा था । नीवी को ‘ वास ‘ के नीचे पहनते थे । विवाह के अवसर पर वधू एक विशेष वस्त्र धारण करती थी जिसे ‘ वधूय ‘ ( Vadhuya ) कहते थे । आभूषण स्त्री व पुरुष समान रूप से धारण करते थे ।
  5. औषधियों का ज्ञान ( Knowledge of Medicine ) — ऋग्वेद में चिकित्सकों का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था । ऋग्वेद में प्रमुख बीमारी का नाम यक्ष्मा ( Yakshma ) बताया गया है । जड़ी – बूटियों का ही प्रमुखतया औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता था । शल्य – चिकित्सा ( Surgery ) का भी ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है । vedic age king was called as, vedic age kings, vedic age kya hai, vedic age 16 kingdoms, vedic age is also known as
  6. शिक्षा ( Education ) – ऋग्वेद में उपनयन संस्कार का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता यद्यपि इस संस्कार का उत्तर वैदिक काल में अत्यधिक महत्व था । विद्यार्थियों को गुरु के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा जाता था । शिक्षा का मुख्य उद्देश्य धार्मिक एवं साहित्यिक शिक्षा प्रदान करना था जिसके द्वारा आर्य संस्कृति का प्रचार हो सके । ऋग्वैदिक काल में लोगों को लिखने का ज्ञान था अथवा नहीं , यह सन्देहास्पद है । अधिकांश विद्वानों का मत है कि ऋग्वैदिक लोगों को लिखने ( writing ) का ज्ञान नहीं था ।
  7. जाति प्रथा ( Caste System ) — ऋग्वैदिक समाज में वर्ण व्यवस्था का अस्तित्व था अथवा नहीं , इसमें विद्वानों में परस्पर मतभेद है । परन्तु ऋग्वेद में कहीं भी वैश्य एवं शूद्र शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है । जहाँ तक ब्राह्मण एवं क्षत्रिय शब्दों का प्रश्न है सम्भवतः इसका तात्पर्य मात्र यह था कि जो युद्धों में भाग लेते थे , उन्हें क्षत्रिय व पूजा – पाठ में लीन रहने वाले लोगों को ब्राह्मण कहा गया । अतः यदि यह मान भी लें कि ऋग्वैदिक काल में जाति – प्रथा थी तो निश्चित रूप से यह जन्म पर नहीं वरन् कर्म पर आधारित थी ।
  8. विवाह एवं स्त्रियों की दशा ( Marriage and the Status of women )– ऋग्वैदिक युग में बाल – विवाह का प्रचलन नहीं था । तत्कालीन समाज में बहिन व भाई, पिता एवं पुत्री तथा माँ व पुत्र का परस्पर विवाह निषेध था । ऋग्वेद में एक स्थान पर वर्णित है कि यमी अपने भाई यम से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए कहती है तो यम निम्न शब्दों में उसे समझाता है— “यमी , तुम किसी अन्य पुरुष का आलिंगन करो ।  जैसे लता वृक्ष का वेष्ठन करती है उसी प्रकार अन्य पुरुष तुम्हें आलिंगन करे । उसी के मन का तुम हरण करो इसी में मंगल होगा । ऋग्वैदिक समाज में विवाह एक धार्मिक एवं पवित्र कार्य समझा जाता था । विवाह के बिना जीवन अपूर्ण माना जाता था । यज्ञ के समय पति एवं पत्नी दोनों का उपस्थित होना आवश्यक था । लड़कों व लड़कियों को अपने लिए पति अथवा पति चुनने की पूर्ण अनुमति थी । यद्यपि ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों का स्थान सम्माननीय था, तथापि वे अपने पति पर आजीवन आश्रित रहती थी तथा कन्या का जन्म अशुभ माना जाता था । उस समय पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती थी । पितृ – प्रधान समाज में ऐसा होना स्वाभाविक ही है । क्योंकि पुत्र ही पिता का दाह संस्कार करता है तथा वही परिवार की वंश – परम्परा को जीवित रखता है । Vedic Age Meaning In Hindi

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