नन्द वंश ( NANDA DYNASTY ) | THE RISE OF THE MAGADHA EMPIRE IN HIN 

 Nanda Dynasty – मगध साम्राज्य का उत्कर्ष | THE RISE OF THE MAGADHA EMPIRE | उत्कर्ष के कारण ( CAUSES OF THE RISE OF MAGADHA EMPIRE ) प्राचीन भारतीय इतिहास में मगध का विशेष स्थान है । प्राचीन काल में भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों की सत्ता थी । 

मगध के प्रतापी राजाओं ने इन राज्यों पर विजय प्राप्त कर भारत के एक बड़े भाग पर विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और इस प्रकार मगध के शासकों ने सर्वप्रथम अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को प्रदर्शित किया । 

मगध में मौर्य वंश की स्थापना से पूर्व भी अनेक शासकों ने अपने बाहुबल व वीरता से मगध साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया था । 

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जिनमें-

और आज हम बात करेंगे नन्द वंश ( NANDA DYNASTY ) के बारे में

नन्द वंश ( NANDA DYNASTY IN HINDI) 

शिशुनाग वंश के पतन के पश्चात् मगध में नन्द वंश की स्थापना हुई । 

nanda dynasty

Founder Of Nanda Dynasty – पुराणों के अनुसार नन्द वंश का प्रथम शासक ( संस्थापक ) महापद्म था, जिसका अर्थ ‘ असीम सेना ‘ अथवा ‘ अपार धन का स्वामी ‘ होता है । मगध में नन्द वंश की स्थापना से एक नवीन युग का आविर्भाव हुआ । इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई , जिसकी सीमाएँ गंगा के मैदानों को लाँघ गयीं । 

नन्द वंश द्वारा स्थापित साम्राज्य वस्तुतः स्वतन्त्र राज्यों या ऐसे सामन्तों का शिथिल संघ न था जो कि शक्तिशाली राजा के बल के सम्मुख नतमस्तक होते हैं अपितु एक सम्राट की छत्रछाया में एक अखण्ड राजतन्त्र था जिसके पास अपार धन बल और जन – वल था । इसी समय से भारतीय इतिहास में क्षत्रिय रक्त पर अभिमान करने वाले राजवंशों की अखण्ड परम्परा का अन्त हो गया , क्योंकि नन्दवंशीय शासक उच्च कुल के न थे । 

महापद्म नन्द (FOUNDER OF NANDA DYANASTY)

महापद्म नन्द नन्द वंश का संस्थापक था । महावाधिवंश के अनुसार उसका वास्तविक नाम उग्रसन था । पुराणों में महापद्म को शिशुनाग वंश के अन्तिम राजा का शुद्र स्त्री से उत्पन्न पुत्र बताया गया है । जैन साहित्य उसे गणिका से उत्पन्न नाई का पुत्र बताता है । 

यूनानी साहित्य से भी महापद्म नन्द की निम्न उत्पत्ति की । होती है । कर्टियस ने लिखा है , “ वास्तव में नन्द वंश का संस्थापक नाई था जो दिन भर की कमाई से किसी तरह पेट भरता था । पर अपने आकर्षक रूप के कारण वह रानी का कृपापात्र बन गया था और रानी के प्रभाव से ही राजा का विश्वासपात्र बन गया । परन्तु बाद में उसने छल से राजा की निर्मम हत्या कर दी और फिर राजकुमारों के संरक्षक के बहाने सारी सत्ता अपने अधिकार में ले ली और कालान्तर में राजकुमारों को मौत के घाट उतार कर राजा बन बैठा । ”

महापद्म नन्द का इतिहास | History Of Mahapadama Nanda

 इतिहासकारों का विचार है कि उसने शिशुनाग वंश के जिस राजा की हत्या की वह कालाशोक था तथा उसके पुत्रों का संरक्षक बनने के बहाने नन्द राजा ने उनका राज्य हड़प लिया । महापद्म अत्यन्त शक्तिशाली शासक था । अपनी शक्ति द्वारा ही उसने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया । पुराणों के अनुसार वह ‘ अनुलंधित ‘ शासन वाला था , जिसने दिग्विजय से एक छत्र राज्य की स्थापना की थी । 

उसने अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उन्मूलन किया था । इसी कारण उसे ‘अखिलक्षत्रान्तकारी और ‘ क्षत्रविनाशकृता ‘ कहा गया । कथासरित्सागर से ज्ञात होता है कि उसके शासनकाल में इक्ष्वाकुवंशियों का कोशल राज्य मगध का अंग बन गया था । 

पश्चिम में कुरु और पंचाल पर उसके आधिपत्य की पुष्टि यूनानी लेखकों स होती है । महापद्यम ने हैह्यों को पराजित कर महिष्मती का क्षेत्र भी मगध में मिला लिया खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि नन्द राजा का कलिंग पर भी अधिकार था । नन्द राजा ने वैशाली के समीप स्थित मिथिला राज्य को भी मगध का अंग बना लिया था । मथुरा के निकटवर्ती क्षेत्रों को भी उसने अपने अधीन किया । मैसूर के अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है दक्षिण भारत के भी अनेक भागों पर नन्द राजा का अधिकार था । इस प्रकार स्पष्ट है कि 

अपने शासनकाल में महापद्म नन्द ने मगध साम्राज्य को अखिल भारतीय रूप प्रदान किया तथा भारत में राजनीतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया । अतः पुराणों में उसके लिए महाबलि , एकछत्र , एकराट , विरुदों का प्रयोग किया जाना तर्कसंगत ही है । 

महापद्म नन्द के उत्तराधिकारी 

पुराणों के अनुसार महापद्म नन्द के उत्तराधिकारी नन्द राजाओं की संख्या आठ मिलती है जो कि महापद्म के पुत्र थे । बौद्ध साहित्य में भी कुल 9 नन्द राजाओं का उल्लेख मिलता है , जिसके नाम इस प्रकार हैं – 

  • उग्रसेन ( महापद्म नन्द ) 
    • पण्डुक
    • पण्डुगति
    • भूतपाल 
    • राष्ट्रपाल 
    • गीविषाणक 
    • दशसिद्धक 
    • कैवर्त और 
    • धननन्द महापद्म के इन आठ पुत्रों ने 322 ई . पू . तक राज्य किया ।  
    • इनमें नन्द वंश का अन्तिम शासक धननन्द ही सबसे प्रतापी प्रमाणित हुआ ।

Greatest Ruler Of Nanda Dynasty | धननन्द (DHANANANDA)

धननन्द धन एकत्र करने की अपार लालसा के कारण उनका नाम धननन्द पड़ा । उसके पास अस्सीकोटि की सम्पदा थी । तमिल स्रोतों से ज्ञात होता है कि उसने अपने धन को छिपाने के लिए गंगा के तट की एक चट्टान में खुदाई करायी थी । ह्येनसांग ने भी नन्द राजा के पाँच खजानों का उल्लेख किया है ।

 नन्द राजा के धन का एक कारण सम्भवतः  एकत्र करने के लिए प्रजा से बलपूर्वक कर वसूल करता था । प्रजा द्वारा नन्द राजा से घृणा किये जाने का एक कारण उनसे बलपूर्वक धन वसूल किया जाना भी रहा होगा ।

सिकन्दर के भारतीय अभियान के समय मगध का शासक नन्द ही था । 

धननन्द की सेना अत्यधिक शक्तिशाली थी । कर्टियस के अनुसार नन्द राजा की सेना में “ बीस हजार घुड़सवार , दो लाख पैदल , दो हजार रथ तथा तीन हजार हाथी थे । ” इसी कारण सिकन्दर की सेना भी धननन्द की सैन्य शक्ति से भयभीत हो गयी । 

किन्तु 322 ई . पू . में मौर्यवंशीय चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से धननन्द को परास्त कर मगध में नन्द वंश मौर्य साम्राज्य की नींव डाली ।

नन्द वंश के पतन के कारण ( CAUSES OF THE DOWNFALL OF THE NAND DYNASTY ) 

नन्दवंशीय शासक यद्यपि अत्यन्त शक्तिशाली थे , किन्तु वे अधिक समय तक मगध साम्राज्य पर शासन न कर सके । उनके पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे

जिनमें प्रमुख निम्नलिखित थे :

  • निम्नवंशीय उत्पत्ति नन्दवंशीय शासक शुद्र थे । तत्कालीन सामाजिक संरचना में शूद्रों का स्थान सबसे नीचा था ।
  • अतः उच्चवर्गीय लोगों में नन्द शासकों के प्रति श्रद्धा व स्नेह न था । इसक धर्म के अनुसार अपना राज्याभिषेक भी नहीं कराया ।
  • अतः ब्राह्मण वर्ग उनसे अप्रसन्न था । “अतिरिक्त नन्द राजाओं ने धार्मिक व सामाजिक रीति – रिवाजों का उल्लंघन किया ।
  • क्षत्रिय राज्यों का उन्मूलन मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए नन्द शासकों ने क्षत्रिय राज्यों का उन्मूलन किया , जिससे क्षत्रिय उनसे अप्रसन्न थे । 
  • अत्यधिक कर वसूलना नन्द शासकों ने जनता से अत्यधिक कर वसूल किया । विशेषरूप से धननन्द अत्यन्त लोभी था । उसने जानवरों की खाल , गोंद और पत्थरों तक
  • उसने ब्रह्णाणों पर भी कर लगाया । उसकी इस नीति से जनता में अत्यधिक रोष उत्पन्न हुआ । 
  • चाणक्य का अपमान नन्द राजा द्वारा चाणक्य का अपमान करना उसकी भारी भूल थी ।
  • चाणक्य अत्यन्त योग्य व्यक्ति था । उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए चन्द्रगुप्त की सहायता की और नन्दों का उन्मूलन किया ।

 इस प्रकार नन्द राजाओं की निम्न उत्पत्ति , उग्र सैनिक नीति व अधिक करों के कारण जनता में व्याप्त असन्तोष का लाभ उठाते हुए चाणक्य व चन्द्रगुप्त ने 322 ई . पू . नन्द वंश का पतन कर दिया ।

Conclusion | Nanda Dynasty In Hindi

  • नन्द शासकों एवं नन्द वंश के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए । 
  • नन्द वंश के पतन के क्या कारण थे ? विवेचना कीजिए ।

 मूल्यांकन सामाजिक दृष्टि से नन्दवंशीय शासन एक क्रान्तिकारी घटना थी । नन्दों के शीर्षस्थ पद तक उत्थान को निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है । नन्द राजवंशीय शासकों को भारत का प्रथम साम्राज्य निर्माता कहा जाता है । उन्हें मगध का विशाल साम्राज्य विरासत में मिला था , किन्तु वे उतने से ही सन्तुष्ट न हुए । एक शक्तिशाली सेना ( जिसकी प्रशंसा यूनानी लेखकों ने भी की है ) तैयार करके उन्होंने सम्पूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास किया , जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे । 

भारत में विशाल भू – भाग को मगध साम्राज्य के छत्र के नीचे लाकर उन्होंने भारत में राजनीतिक एकता स्थापित करने का सराहनीय प्रयास किया । इस विषय में स्मिथ ने लिखा है , ” उन्होंने परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वे आपसी उखाड़ – पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों में सौंप दें । उन्होंने ऐसी सेना तैयार की कि जिसका उपयोग मगध के परवर्ती शासकों ने विदेशी आक्रमणकारियों के हमले को रोकने में और बिम्बिसार तथा अजातशत्रु के द्वारा प्रवर्तित भारतीय सीमा में अपने राज्य का विस्तार करने की नीति को कार्यान्वित करने में किया । ‘

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