भारत सरकार की खाद्य नीति | Khadya Suraksha Yojana

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खाद्य नीति भारत में ( Rashtriya Khadya Suraksha Adhiniyam  ) 

 

Khadya Suraksha Kya Hai खाद्य नीति भारत में ( Food Policy in India ) स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत को खाद्य समस्या का सामना करना पड़ा । देश के अनेक भाग ऐसे थे जहाँ खाद्यान्नों का भारी अभाव था तथा अकाल पड़ते थे । पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर चौथी पंचवर्षीय योजना तक भारत की खाद्य नीति के प्रमुख अंग निम्न प्रकार थे

Rashtriya Khadya Suraksha Adhiniyam

  1. खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना ।
  2. खाद्यान्न के सुरक्षित भण्डारों का सृजन करना ।
  3. आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों को उनकी क्रय क्षमता के अनुसार रियायती मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना ।

Khadya Suraksha Yojana इन्हीं लक्ष्यों एवं प्राथमिकताओं को लेकर पहली एवं दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं में अधिक अन्न उपजाओ कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया । चौथी पंचवर्षीय योजना से ठीक दो वर्ष पूर्व हरित क्रान्ति कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया ।

Khadya Suraksha Yojana खाद्यान्नों के सुरक्षित भण्डारों के सृजन एवं रखरखाव हेतु 1965 में भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की गयी । कृषकों को उनकी उपज का पूरा मूल्य दिलाने के लिए 1965 में ही कृषि मूल्य आयोग का गठन किया गया जिसे कालान्तर में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के नाम से जाना गया । हरित क्रान्ति की बदौलत भारत खाद्यान्न उत्पादन के मामले में तो आत्मनिर्भर हो गया लेकिन देश के 35 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध नहीं हो सकी ।

भारत मेंं खाद्य सुरक्षा की समस्या | Suraksha In Hindi

National Food Of India In Hindi, खाद्य सुरक्षा की समस्या ( The Problem of Food Security )खाद्य सुरक्षा का अर्थ है सभी लोगों को सभी समयों पर पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न ( भोजन ) उपलब्ध कराना ताकि वे सक्रिय व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें । Suraksha In Hindi

Suraksha In Hindi

” जैसा कि पी . वी . श्रीनिवासन का कथन है इसके लिए यह आवश्यक है न केवल समग्र स्तर ( aggregate level ) पर खाद्यान्नों ( भोजन ) की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो बल्कि व्यक्तियों / परिवारों के पास उपयुक्त क्रय शक्ति भी हो ताकि वे आवश्यकता अनुसार खाद्यान्न ( भोजन ) खरीद सकें ।

National Food Of India In Hindi जहाँ तक ‘ पर्याप्त मात्रा ‘ का सम्बन्ध है , इसके दो पहलू हैं-

  • मात्रात्मक पहलू ( इस रूप में कि अर्थव्यवस्था में खाद्य उपलब्धि इतनी हो कि माँग की पूर्ति कर सके ) तथा
  • गुणात्मक पहलू [ इस रूप में कि जनसंख्या की पोषण आवश्यकताएँ ( nutritional requirements ) पूरी हो सकें।

Suraksha In Hindi जहाँ तक उपयुक्त क्रय – शक्ति का प्रश्न है , इसके लिए आवश्यक है कि रोजगार सृजन के कार्यक्रम शुरू किये जाएँ ताकि लोगों की आय एवं क्रय शक्ति में वृद्धि की जा सके । खाद्य सुरक्षा के मात्रात्मक एवं गुणात्मक पहलुओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने तीन खाद्य – आधारित सुरक्षा जाल ( food – based safety nets ) अपनाए हैं-

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  • समेकित बाल विकास सेवाएँ ( integrated child development services जिसे ICDS कहा जाता है ) तथा
  • दोपहर भोजन कार्यक्रम ( mid – day meals programme ) ।

Khadya Suraksha Kya Hai जहाँ तक लोगों की क्रय – शक्ति में वृद्धि का प्रश्न है , समय – समय पर रोजगार कार्यक्रम शुरू किये जाते रहे हैं । समस्या का स्वरूप ( Nature of the Problem ) मात्रात्मक पहलू ( The Quantitative Aspects ) – स्वतन्त्रता के बाद के वर्षों में खाद्यान्नों की अत्यधिक कमी के परिणामस्वरूप सरकार की खाद्य नीति का उद्देश्य खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्म – निर्भरता ( self sufficiency ) प्राप्त करना था ।

भारत में खाद्य भण्डारण ( Food Stocks in India)

Khadya Suraksha Kya Hai सरकार ने काफी बड़ी मात्रा में भारतीय खाद्य निगम ( Food Corporation of India ) की मदद से खाद्यान्नों के भण्डार जमा किए हैं और इन भण्डारों में से लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्नों की आपूर्ति की जाती है । हाल के कुछ वर्षों में तो ये भण्डार ( इन्हें बफर भण्डार या buffer stocks कहा जाता है ) न्यूनतम मानदण्डों ( minimum norms ) की तुलना में काफी अधिक थे जिससे अतिरिक्त भण्डार ( excess stocks ) की समस्या पैदा हो गई थी ।।

  • जनवरी , 2015 को सरकार के पास गेहूँ के 28.8 मिलियन टन तथा चावल के 31-5 मिलियन टन के भण्डार थे ।
  • खाद्यान्नों की उपलब्धता के सन्दर्भ में अब भारत में खाद्य समस्या नहीं है
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम , 2013 के तहत भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से देश की 75 % जनसंख्या को ₹ 1 प्रति किलो की दर से मोटा अनाज , ₹ 2 प्रति किलो की दर से गेहूँ तथा र 3 प्रति किलो की दर से चावल उपलब्ध करा रही है । 
  • इसके बावजूद देश के अनेक भागों में लोगों को उनकी दैनिक आवश्यकताओं के अनुरूप खाद्यान्न उपलब्ध नहीं हो पा रहा है ।
  • वर्ष 2018-19 में खाद्यान्नों का उत्पादन 284-95 मिलियन टन के स्तर पर पहुँच गया है ।
  • इसके साथ – साथ बागवानी उत्पादों – फल , सब्जियों , मसालों आदि का उत्पादन 2018-19 में 314 मिलियन टन से अधिक है किन्तु 0-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे कुपोषित हैं ।

इसी प्रकार गर्भवती माताएँ एवं दूध पिलाने वाली माताएँ कुपोषित हैं ।

गुणात्मक पहलू ( The Qualitative Aspect )

मात्रात्मक पहलू से भी अधिक गम्भीर गुणात्मक पहलू है । यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाएगी
  • विश्व भुखमरी सूचकांक 2016 ( Global Hunger Index 2016 ) के अनुसार कुल 118 विकासशील देशों में भारत का 97 वाँ स्थान है ।
  • चीन का चौथा तथा पाकिस्तान का 59 वाँ स्थान था ।
  • दक्षिण एशिया में केवल बंगलादेश ही भारत के नीचे है ।
  • नेपाल का 54 वाँ स्थान था और इस प्रकार वह भी भारत के ऊपर था ।
  • श्रीलंका का स्थान 36 वाँ था ।
  • प्रतिशत के अनुसार विश्व के 42 भूख से ग्रस्त लोग भारत में पाये जाते हैं ।
  1. विश्व खाद्यान्न कार्यक्रम ( World Food Programme )
  2. भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या ( 38 करोड़ से अधिक लोग ) खाद्य असुरक्षित ( food insecure ) हैं और न्यूनतम अनिवार्य ऊर्जा आवश्यकता ( minimum energy requirement ) का 73 प्रतिशत से कम प्राप्त कर पाती है ।
  3. 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच की प्रत्येक 10 गर्भवती स्त्रियों में से 7 कुपोषण ( malnourishment ) तथा खून की कमी या रक्तक्षीणता ( anaemia ) का शिकार हैं । माताओं की रक्तक्षीणता है ।
  4. जिन शिशुओं की मृत्यु हो जाती है उनमें से 22 प्रतिशत की मृत्यु का कारण उनकी
  5. 2016 में 5 वर्ष से कम आयु वाले 32 प्रतिशत बच्चे कुपोषित ( malnourished ) थे । पूरे दशक में इस दर में केवल 1 प्रतिशत का सुधार हुआ है परन्तु यह दर अब भी सबसे कम विकसित देशों की तुलना में ( जहाँ यह दर 35 प्रतिशत है ) अधिक है ।
  6. 2006 में विश्व में 5 वर्ष से कम आय वाले 97 लाख बच्चों की मृत्यु में भारत का हिस्सा 21 लाख था ( अर्थात् 21.6 प्रतिशत ) ।
  7. पाँच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु में 43 प्रतिशत की मृत्यु का कारण कुपोषण है।
  8. विकासशील देशों में 190 लाख शिशुओं का जन्म के समय वजन अत्यधिक कम था जिसमें से 83 लाख शिशु केवल भारत में थे ( इस प्रकार कम वजन शिशुओं का भारत में कुपोषण है । प्रतिशत 43.6 था ) ।
  9. कम वजन वाले बच्चों का एक – तिहाई भारत में है ( कुल 15-6 करोड़ में से 5-46 करोड़ ) । सबसे अधिक कम वजन वाले बच्चे मध्य प्रदेश , बिहार , झारखण्ड , गुजरात , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ , मेघालय तथा उत्तर प्रदेश में हैं ।
  10. 62 प्रतिशत बच्चे खून की कमी या रक्तक्षीणता के शिकार हैं । दूसरे शब्दों में भारत में हर चार बच्चों में से तीन बच्चों में खून की कमी है ।
  11. भारत में अवरुद्ध विकास वाले बच्चों ( stunted children ) का प्रतिशत 37 है अर्थात् हर तीन में से एक बच्चा अवरुद्ध विकास का शिकार है ।
  12. भारत में 2016-17 में 41.8 प्रतिशत बच्चे ( अर्थात् आधे बच्चे ) बीमारियों के खिलाफ पूरी तरह से प्रतिरक्षित ( immunised ) नहीं हैं ।

ये सब तथ्य इस बात का प्रमाण हैं कि देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा अंश निहायत दयनीय परिस्थितियों में जीवन – यापन कर रहा है और भुखमरी व कुपोषण से पीड़ित है ।

समस्या का समाधान ( Solution of the Food Problem )

Khadya Suraksha Yojana खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा निम्न – लिखित उपाय किये गये
  1. तीसरी पंचवर्षीय योजना में खाद्यान्नों की भारी कमी के चलते राशन की दुकानों से आयातित गेहूँ एवं आटा तथा अन्य खाद्य सामग्री के वितरण हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रारम्भ की गयी ।
  2. खाद्य सहायता के बढ़ते भार को कम करने तथा वास्तविक निर्धनों तथा खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 1 जून , 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रारम्भ की गयी ।
  3. 1975 में भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा एकीकृत बाल विकास सेवाएँ नामक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में बालकों एवं महिलाओं को पूरक पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जा सके ।
  4. प्राथमिक विद्यालयों तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना प्रारम्भ की गयी जिसका उद्देश्य बालकों एवं बालिकाओं को पौष्टिक भोजन मुहैया कराना है ।
  5. जून 2013 में भारत सरकार ने ‘ सबके लिए भोजन ‘ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश 2013 जारी किया है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों की 75 प्रतिशत जनसंख्या को प्रतिमाह रियायती दर पर गेहूँ / चावल उपलब्ध कराया जाएगा ।

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