What is Gandhivad | Gandhiwad Kya Hai

20वीं शताब्दी के भौतिकवादी युग में गाँधीवाद एक नवीन प्रयोग था जिसका अर भारतीय संस्कृति के प्राचीन विचार- सत्य, अहिंसा, नैतिकता तथा मानवीय कल्याण गाँधीजी की यह अटूट आस्था थी कि सत्य एवं अहिंसा द्वारा ही ईश्वर अर्थात् भगवान क हासिल किया जा सकता है।

देश-विदेश में अपनी यात्राओं के दौरान गाँधीजी ने समय-समय पर जो राजनीतिक सामाजिक एवं आर्थिक विचार प्रकट किए, उन्हीं विचारों को उनके अनुगामी, प्रशंसक क आलोचकों ने अपनी पुस्तकों में संग्रहीत किया और इसे ‘गाँधीवाद‘ का नाम दिया। डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने गाँधीवाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “वस्तुतः उन सिद्धान्तों तथा नीतियों से मिलकर ही गाँधीजी का दर्शन बना है, गाँधीवाद से अभिप्राय उस दर्शन से है जिससे उनके जीवन एवं चरित्र,एवं सिद्धियों को उनके उपदेशों तथा शिक्षाओं को नया रंग प्रदान किया गया है। गाँधी दर्शन इतना विशाल एवं महान है कि इसमें संसार के विभिन्न सन्तों तथा मनीषियों की शिक्षाएँ सम्मिलित हो गई हैं। ”

गाँधीवाद सिर्फ एक राजनीतिक दर्शन न होकर असल में एक जीवन दर्शन है। गांधीजी की मान्यता है कि सत्य की सदैव जीत होती है। इस विशिष्ट जीवन दर्शन को हो गाँधोकाद की उपमा दी गई है। यद्यपि गाँधीजी अपने विचारों को किसी वाद का रूप नहीं देना चाहते थे। लेकिन 1931 में गाँधी-इरविन समझौते के बाद उन्होंने एक बार अचानक ही कह दिया था कि मर जाए, लेकिन गाँधीवाद सदैव जीवित रहेगा।”

असल में गाँधीवाद नाम की कोई वस्तु गाँधीजी के राजनीतिक दर्शन में नहीं पाई जाती है। यहाँ आचार्य कृपलानी का यह कथन उल्लेखनीय है कि “गाँधोवाद जैसा कोई बद नहीं है।” इस सम्बन्ध में गाँधीजी ने भी स्वयं कहा था कि “मेरा दर्शन जिसे यदि दर्शन कहा जाए, केवल इस सिद्धान्त पर आधारित है कि मैं गाँधीवाद में विश्वास नहीं रखता और नहीं मैंने किसी ‘वाद’ की स्थापना की कोशिश की है।”

गाँधीवाद एक सुव्यवस्थित राजनीतिक दर्शन नहीं है, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक प्रणाली का सहारा नहीं लिया गया है। अतः गांधीवाद की कोई निश्चित परिभाषा और आशय मष्ट करना सम्भव नहीं है। तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों में गाँधीजी ने सामाजिक, धार्मिक आर्थिक तथा राजनीतिक विषयों पर जो विचार व्यक्त किए, कालान्तर में उन्हें हो गांधीवाद कहा गया।

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