चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास | Chandragupt Maurya Ka Itihaas

Chandragupt Maurya ki kahani मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त भारत के बहुत अच्छे शासक माने जाते है, जिन्होंने बहुत सालों तक शासन किया। Chandragupt Maurya एक ऐसे शासक थे जो पुरे भारत को एकीकृत करने में सफल रहे थे, उन्होंने अपने अकेले के दम पर पुरे भारत पर शासन किया. उनसे पहले पुरे देश में छोटे छोटे शासक हुआ करते थे, जो यहाँ वहां अलग शासन चलाते थे, देश में एकजुटता नहीं थी. 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना शासन कश्मीर से लेकर दक्षिण के डेक्कन तक, पूर्व के असम से पश्चिम के अफगानिस्तान तक फैलाया था. भारत देश के अलावा चन्द्रगुप्त मौर्य आस पास के देशों में भी शासन किया करते थे।

 

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चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रारम्भिक जीवन | Chandragupta Maurya History In Hindi

Chandragupt maurya kaun tha, चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन के बारे में कोई ज्यादा नहीं जानता है. कहा जाता है वे मगध के वंशज थे. चन्द्रगुप्त मौर्य जवानी से ही तेज बुद्धिमानी थे, उनमें सफल सच्चे शासक की पूरी गुणवत्ता थी, जो चाणक्य ने पहचानी और उन्हें राजनीती व सामाजिक शिक्षा दी।

चन्द्रगुप्त मौर्य के परिवार की कही भी बहुत सही जानकारी नहीं मिलती है, कहा जाता है वे राजा नंदा व उनकी पत्नी मुरा के बेटे थे. कुछ लोग कहते है वे मौर्य शासक के परिवार के थे, जो क्षत्रीय थे।

Chandragupta Maurya Wife

Chandragupt maurya kaun the, कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य के दादा की दो पत्नियाँ थी, एक से उन्हें 9 बेटे थे, जिन्हें नवनादास कहते थे, दूसरी पत्नी से उन्हें चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता बस थे, जिन्हें नंदा कहते थे। नवनादास अपने सौतले भाई से जलते थे, जिसके चलते वे नंदा को मारने की कोशिश करते थे, नंदा के चन्द्रगुप्त मौर्य मिला कर 100 पुत्र थे, जिन्हें नवनादास मार डालते है बस चन्द्रगुप्त मौर्य किसी तरह बच जाते है और मगध के साम्राज्य में रहने लगते है.

Chandragupt Maurya यही पर उनकी मुलाकात चाणक्य से हुई, इसके बाद से उनका जीवन बदल गया. चाणक्य ने उनके गुणों को पहचाना और तक्षशिला विद्यालय ले गए, जहाँ वे पढ़ाया करते थे। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने अनुसार सारी शिक्षा दी, उन्हें ज्ञानी, बुद्धिमानी, समझदार महापुरुष बनाया, उन्हें एक शासक के सारे गुण सिखाये। Chandragupt Maurya

चन्द्रगुप्त के सिंहासनारोहण की तिथि

इस विषय में काफी मतभेद हैं परन्तु अधिकांश विद्वान चन्द्रगुप्त का सिंहासनारोहण 322 ई.पू. में हुआ मानते हैं,क्योंकि वैदेशिक एवं भारतीय तथा बौद्ध एवं जैन धर्म से भी यही संकेत मिलते हैं।

Chandragupt Maurya Kaun Tha | Chandragupt Maurya Kaun The

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे उन्हें बिंदुसार नाम का बेटा हुआ, इसके अलावा दूसरी पत्नी देवी हेलना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम के पुत्र हुआ।  कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य की दुश्मन से रक्षा करने के लिए आचार्य चाणक्य उन्हें रोज खाने में थोडा थोडा जहर मिलाकर देते थे, जिससे उनके शरीर मे प्रतिरोधक छमता बढ़ जाये और उनके शत्रु उन्हें किसी तरह का जहर न दे पाए, यह खाना चन्द्रगुप्त अपनी पत्नी के साथ दुर्धरा बाटते थे ,

chandragupta maurya in hindi लेकिन एक दिन उनके शत्रु ने वही जहर ज्यादा मात्रा मे उनके खाने मे मिला दिया, उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी, दुर्धरा इसे सहन नहीं कर पाती है और मर जाती है, लेकिन चाणक्य समय पर पहुँच कर उनके बेटे को बचा लेते है. बिंदुसार  को आज भी उनके बेटे अशोका के लिए याद किया जाता है, जो एक महान राजा था.

मौर्य साम्राज्य खड़े होने का पूरा श्रेय चाणक्य को जाता है।

Chandragupta Maurya In Hindi

चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से वादा किया था, कि वे उसे उसका हक दिला कर रहेंगें, उसे नवदास की राजगद्दी पर बैठाएंगे. चाणक्य जब तक्षशिला में टीचर थे, तब अलेक्सेंडर भारत में हमला करने की तैयारी में था. तब तकशिला के राजा, व गन्धारा दोनों ने अलेक्सेंडर के सामने घुटने टेक दिए, चाणक्य ने देश के अलग अलग राजाओं से मदद मांगी. पंजाब के राजा पर्वेतेश्वर ने अलेक्सेंडर को युद्ध के लिए ललकारा. परन्तु पंजाब के राजा को हार का सामना करना पढ़ा, ​  जिसके बाद चाणक्य ने धनानंद, नंदा साम्राज्य के शासक से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इस घटना के बाद चाणक्य ने तय किया कि वे एक अपना नया साम्राज्य खड़ा करेंगे जो विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करे, और साम्राज्य उनके अनुसार नीति से चले,  जिसके लिए उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना, चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री कहे जाते थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य की जीत –

इसके बाद Chandragupt Maurya एक ताकतवर शासक के रूप में सामने आ गए थे, उन्होंने इसके बाद अपने सबसे बड़े दुश्मन नंदा पर आक्रमण करने का निश्चय किया. उन्होंने हिमालय के राजा पर्वत्का के साथ मिल कर धना नंदा पर आक्रमण किया. 321 BC में कुसुमपुर में ये लड़ाई हुई जो कई दिनों तक चली अंत में चन्द्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुई और उत्तर का ये सबसे मजबूत मौर्या साम्राज्य बन गया. इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तर से दक्षिण की ओर अपना रुख किया और बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक राज्य फ़ैलाने में लगे रहे. विन्ध्य को डेक्कन से जोड़ने का सपना Chandragupt Maurya ने सच कर दिखाया, दक्षिण का अधिकतर भाग मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था।

सेल्यूकस से युद्ध

नन्द – वंश के उन्मूलन व स्वयं के मगध के सम्राट के रूप में सिंहासनारोहण के पश्चात् Chandragupt Maurya एक विशाल साम्राज्य का शासक बन गया । विशाल नन्द साम्राज्य के अतिरिक्त भारत के जिन प्रदेशों पर सिकन्दर ने विजय प्राप्त की थी , ये भी चाणक्य की कूटनीति व चन्द्रगुप्त की सनिक क्षमता के कारण उनके साम्राज्य के अंग बन गया इस प्रकार उसका साम्राज्य हिमालय से दक्षिणापथ तथा बंगाल – जीने यमुना नदी तक विस्तृत हो गया था । जिस समय चन्द्रगुप्त मौर्य अपने इस विशाल सामाज्यको साम्राज्य को प्रबल बनाने के प्रयास कर रहा था । उसी समय सिकन्दर का सेनापति सेल्यूकस भी अपने एशियायी यूनानी राज्य के बढ़ा रहा था, वह सिकन्दर के समान ही महत्वाकांक्षी एवं वीर था ।

अपने राज्य में स्थिति मदद करने के पश्चात सिकन्दर द्वारा भारत में जीते गये प्रदेशों को ( जो कि सिकन्दर की मृत्य के पश्चात स्वतन्त्र हो गये । आपने अधीन करने का प्रयास किया । इसी उद्देश्य से सेल्यूकस ने पहले बक्टिया पर आक्रमण किया । जिसमें उसे सफलता मिली ।

इस सफलता से प्रोत्साहित होकर सेल्यूकस ने तत्पश्चात भारत पर आक्रमण किया किन्त भारत की अब यह राजनीतिक स्थिति न थी जो कि सिकन्दर के आक्रमण के समय थी । सिकन्दर का सामना असंगठित व परस्पर देष रखने वाले प्रजातन्त्रों व राजतन्त्रों से हुआ था , जिसके कारण उसे सफलता प्राप्त हुई थी ,

किन्तु सल्यूकस के आक्रमण के समय तक भारत में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हो का था । भारत अब छोटे – छोटे राज्यों में विभक्त न था वरन मौर्य साम्राज्य के रूप में राजनीतिक एकता के सूत्र में बंध चुका था । परिणामस्वरूप सैल्यूकस का सामना छोटे – छोटे राज्यों से नहीं वरन् सार्वभीम सम्राट चन्द्रगुप्त की सुसंगठित एवं ससज्जित सेना से हुआ । अतः भारतीय प्रदेशों पर अधिकार करने के स्थान पर सैल्यूकस को ही अपने राज्य के अनेक प्रदेश चन्द्रगुप्त को सौंपने पड़े ।

Chandragupt Maurya  सैल्यूकस से सन्धि की शर्ते व महत्व – स्ट्रैवो के वर्णन से ज्ञात होता है कि सेल्यूकस व चन्द्रगुप्त के मध्य हुई सन्धि की निम्नलिखित प्रमुख धाराएँ थीं :

  • सैल्युकस ने एरियाना प्रदेशका विस्तुत भु – भाग चन्द्रगुप्त को दे दिया । इस प्रकार चन्द्रगत का साम्राज्य जो सैल्यूकस की पराजय से पूर्व सिन्धु नदी तक सीमित था,
  • इस सन्धि के परिणामस्वरूप हिन्दकश तक विस्तृत हो गया । इस सम्बन्ध में डॉ . स्मिथ का कथन उल्लेखनीय है , ” दो हजार वर्ष से भा पूर्व भारत के प्रथम सम्राट ने उस वैज्ञानिक सीमा को प्राप्त कर लिया था जिसके लिए उसके । ब्रिटिश उत्तराधिकारी व्यर्थ ही आहे भरते रहे तथा जिसे सोलहवीं व सत्रहवीं शताब्दियों के मुगल सम्राट भी कभी पूर्णरूप से प्राप्त नहीं कर सके । 
  • चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में देकर सेल्यूकस से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये ।
  • सैल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किया । उसने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त से किया ।
  •  इस प्रकार सेल्यूकस की पराजय के परिणामस्वरूप , भारत पर कुछ समय के लिए यूनानी आक्रमण का भय न रहा ।
  •  इसी कारण मुद्राराक्षस में कहा गया है कि म्लेच्छों से पीड़ित पृथ्वी ने महाराजा चन्द्रगुप्त की युगल भुजाओं में आश्रय लिया था ।
  •  इस प्रकार अपने राज्य की उत्तर – पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने पश्चिमी व दक्षिणी भारत की ओर सफल अभियान किये ।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने चारों तरफ मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया था, बस कलिंगा (अब उड़ीसा) और तमिल इस सामराज्य का हिस्सा नहीं था. इन हिस्सों को बाद में उनके पोते अशोका ने अपने साम्राज्य में जोड़ दिया था.


चन्द्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव व म्रत्यु –

चन्द्रगुप्त मौर्य जब 50 साल के थे, तब उनका झुकाव जैन धर्म की तरफ हुआ, उनके गुरु भी जैन धर्म के थे जिनका नाम भद्रबाहु था. 298 BCE में उन्होंने अपना साम्राज्य बेटे बिंदुसरा को देकर कर्नाटक चले गए, जहाँ उन्होंने 5 हफ़्तों तक बिना खाए पिए ध्यान किया, जिसे संथारा कहते है, ये तब तक करते है जब तक आप मर ना जाओ, यही चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने प्राण त्याग दिए।

चन्द्रगुप्त मौर्य के जाने के बाद उनके बेटे ने साम्राज्य आगे बढाया, जिनका साथ चाणक्य ने दिया. चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य ने मिल कर अपनी सूझबूझ से इतना बड़ा एम्पायर खड़ा किया था, वे कई बार हारे भी, लेकिन वे अपनी हार से भी कुछ सीखकर आगे बढ़ते थे. चाणक्य कूटनीति के चलते ही चन्द्रगुप्त मौर्य ने इतना बड़ा एम्पायर खड़ा किया था, जिसे आगे जाकर उनके पोते अशोका ने एक नए मुकाम पर पहुँचाया था. चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे महान शासक योद्धा से आज के नौजवान बहुत सी बातें सीखते है, इनपर बहुत सी पुस्तकें भी लिखी गई है।

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