राजा राममोहन राय के सामाजिक तथा धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए ।

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राजा राममोहन राय के सामाजिक तथा धार्मिक विचार | RAJA RAM MOHAN RAI

राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधारों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए ।

राजा राममोहन राय एक महान् समाज सुधारक थे । क्या आप इस कथन से सहमत ही हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए ।

राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार राजा राममोहन राय के सामाजिक विचारों को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है राजा राममोहन राय के सामाजिक तथा धार्मिक विचार | RAJA RAM MOHAN RAI

  1. जाति पर आधारित भेदभाव का विरोधराजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में जाति पर आधारित भेदभाव को घृणित माना तथा उसका विरोध किया । वे यह सोचते थे कि इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है । वे इसे समाज पर एक कलंक मानते थे । उन्होंने व्यक्ति की श्रेष्ठता का आधार जाति न मानकर गुणों को माना । इसी कारण वे अन्तर्राष्ट्रीय विवाह का समर्थन करते थे ।
  2. स्त्री जाति के सम्मान के समर्थक तथा स्त्री – शोषण के विरोधी राजा राममोहन राय ने सैकड़ों वर्षों से उपेक्षित स्त्री – शोषण का विरोध किया । उनका कहना था कि समाज में स्त्री का सम्मान उसी प्रकार से होना चाहिए जिस प्रकार से उनको वैदिककाल में प्राप्त था । वे यह सोचते थे कि स्त्री को हर स्तर पर अन्याय को सहन करना पड़ता है ।
  3. सती प्रथा का विरोध तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहन -राजा राममोहन राय के समय में पति की मृत्यु के बाद पत्नी ( स्त्री ) को सती होना अर्थात् जीवित ही आग में जलकर मरना पड़ता था । यह प्रथा भारतीय समाज को कलंकित किये हुए थी । राजा राममोहन राय ने इस प्रथा के विरोध में व्यापक आन्दोलन छेड़ा । सन् 1829 में लार्ड विलियम बैंटिंक ने एक आदेश जारी करके सती प्रथा को कानूनन निषिद्ध घोषित किया ।
  4. बहु विवाह का विरोधराजा राममोहन राय ने उच्च कुल के लोगों को एक से अधिक विवाह न करने– अर्थात् बहु विवाह प्रथा को रोकने के लिए आन्दोलन किया । वे चाहते थे कि इस प्रथा के विरोध में एक कानून बनाया जाये कि कोई भी व्यक्ति न्यायालय की आज्ञा के बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता ।
  5. स्त्री – शिक्षा को प्रोत्साहन-  राजा राममोहन राय ने स्त्री शिक्षा पर बहुत और दिया । उनका कहना था कि स्त्रियाँ यदि शिक्षित होगी तो उनको अपने अधिकारों का ज्ञान होगा । उनके भीतर से हीनता की भावना समाप्त होगी ।
  6. स्त्रियों की समानता के समर्थक- राजाराम मोहन राय- स्त्रियों को समान स्तर पर देखना चाहते थे । वे यह बात नहीं मानते थे कि पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होते हैं ।उनको इस बात का दुःख रहता था कि वर्तमान समय में स्त्रियाँ सार्थक भूमिका नहीं निभा रही हैं । उन्होंने भारतीय समाज में गार्गी , लीलावती , भानुमती , मैत्रेयी , सावित्री , सीता आदि प्रतिभावान तथा ज्ञान – विज्ञान से पूर्ण स्त्रियों के उदाहरण प्रस्तुत   प्रिया किये ।
  7. स्त्री – उत्तराधिकार का समर्थनराजा राममोहन राय ने हिन्दू स्त्रियों को सम्पति में समान अधिकार दिये जाने की वकालत की । स्त्रियों के इस अधिकार के लिए उन्होंने कानूनी प्रावधान की माँग की । 1822 में उन्होंने स्त्रियों के लिए एक लेख लिखा , जिसका नाम था ‘ हिन्दू उत्तराधिकार विधि पर आधारित स्त्रियों के प्राचीन अधिकार का आधुनिक अतिक्रमण ‘ । इस लेख में उन्होंने धर्मशास्त्रों , नारद , विष्णु , याज्ञवल्क्य , बृहस्पति आदि के उदाहरण भी दिये ।
  8. अन्धविश्वासों का विरोध – राय ने समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता तथा अन्ध विश्वासों का विरोध किया । वे यह नहीं मानते थे कि समाज में कोई बात पुराने समय से चली आ रही है तो इस समय भी ठीक होगी । वे पश्चिम की अन्धी नकल को भी बुरा समझते थे ।

राजा राममोहन राय के उपरोक्त सामाजिक विचारों के अध्ययनोपरान्त कहा जा सकता है कि वे एक महान् समाज – सुधारक थे

राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार

राजा राममोहन राय ने निम्नलिखित धार्मिक विचार व्यक्त किये थे राजा राममोहन राय के सामाजिक तथा धार्मिक विचार | RAJA RAM MOHAN RAI
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एकेश्वरवादी दृष्टिकोण

राजा राममोहन राय के दर्शन में एकेश्वरवादी दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं । वे अद्वैतवादी ईश्वर के विचार को बहुत महत्व देते थे और यह विचार उन्होंने भारतीय उपनिषदों से लिया था । वे कुरान की ‘ तौहीद ‘ ( ईश्वर की एकता ) की धारणा से प्रभावित थे । वे ईसाइयों के न्यूटेस्टामेण्ट की सरल नैतिक शिक्षाओं से भी प्रभावित थे , परन्तु उन्होंने ईसाइयों के त्रिदेव दर्शन को स्वीकार नहीं किया ।

उन्होंने फारसी भाषा में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ‘ तुहफ्त – उल – मुहिदीन ‘ था । उसमें उन्होंने एकेश्वरवाद का समर्थन किया । वे कहते थे कि आत्मा अमर है । उन्होंने अवतारवाद का भी खण्डन किया ।

मूर्तिपूजा में अविश्वास –

राजा राममोहन राय का मूर्तिपूजा में बिल्कुल विश्वास नहीं था । वे कहते थे कि हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा का प्रचलन मौलिक नहीं है । उनका कहना | था कि मूर्तिपूजा के कारण हिन्दू धर्म में भेदभाव तथा कट्टरता आई है । इससे समाज में एकता को हानि हुई है ।

धर्म के प्रति सहिष्णुता

राय ने किसी धर्म या समुदाय के प्रति पूर्वाग्रहों पर आधारित विचारों को स्वीकार नहीं किया । उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता तथा सहनशीलता पर जोर दिया । उन्होंने अन्य धर्मों के लिए कभी अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया ।

आडम्बरों तथा अन्धविश्वासों का विरोध

राजा राममोहन राय किसी ऐसे धर्म था उसकी बातों को मानने के लिए तैयार नहीं थे जो तर्क के आधार पर असत्य साबित होता हो । उन्होंने कहा कि जिस बात को पिछली पीढ़ियों ने स्वीकार किया है , यह जरूरी नहीं है कि उसे हम भी स्वीकार करें ।
समुद्री यात्रा के विषय में उनके विचार स्पष्ट थे । वे कहते थे कि यह धर्म विरुद्ध नहीं है । इस प्रकार राजा राममोहन ने बाहरी आडम्बरों का विरोध किया तथा समाज को सही दिशा देने की ओर महत्वपूर्ण कार्य किया ।
 

तो दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो हमें कमेंट करके जरुर बतायें , और इसे शेयर भी जरुर करें।

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