एडम स्मिथ ने मूल्य को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

प्रयोग मूल्य एवं विनिमय मूल्य ( Value – in – use and Value – in – exchange )

एडम स्मिथ के अनुसार कोई व्यक्ति किसी वस्तु का मूल्य इसलिए देता है ताकि वह उसे उपयोगिता प्रदान कर सके । यही उस व्यक्ति को उस वस्तु का प्रयोग मूल्य कहलाएगा । कभी – कभी कुछ अनुपयोगी वस्तुओं का मूल्य बहुत अधिक होता है , जैसे हीरा तथा मानव जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं होता है जैसे पानी । अतः वस्तु में उसकी उपयोगिता के साथ – साथ दुर्लभता का गुण भी होना चाहिए । वस्तु की दुर्लभता ही उसके विनिमय मूल्य की निर्धारक होती है ।

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बाजार मूल्य एवं सामान्य मूल्य ( Market Price and Normal Price ) – 

एडम स्मिथ ने वस्तु के उपयोग एवं विनिमय मूल्य के साथ – साथ वस्तु के बाजार मूल्य तथा सामान्य मूल्य की भी व्याख्या की है । किसी समय विशेष पर बेची जाने वाली वस्तु के मूल्य को स्मिथ ने बाजार मूल्य की संज्ञा प्रदान की है तथा सामान्य मूल्य को उसके प्राकृतिक मूल्य के बराबर माना है अर्थात् वह मूल्य जो सामान्यतः होना चाहिए । एडम स्मिथ के अनुसार सामान्य अथवा प्राकृतिक मूल्य वह केन्द्रीय मूल्य है जिसकी ओर सभी वस्तुओं के मूल्य  निरन्तर आकर्षित होते हैं । 

मूल्य का श्रम सिद्धान्त ( Labour Theory of Value ) 

स्मिथ के अनुसार वस्तु का मूल्य उस वस्तु को बनाने में लगे श्रम के मूल्य द्वारा निर्धारित होता है । अतः श्रम ही किसी वस्तु के विनिमय मूल्य का वास्तविक माप है । स्पष्ट है कि प्रारम्भिक अवस्था में विनिमय का आधार वस्तुओं को प्राप्त करने में लगे श्रम की मात्रा के अनुपात के बराबर होता है । 

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मूल्य का उत्पादन लागत सिद्धान्त ( Cost of Production Theory ) Adam Smith Theory In Hindi

एडम स्मिथ ने अपना विचार प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट किया कि मूल्य का श्रम सिद्धान्त के लागू होने की सीमाएँ हैं एवं वह वहाँ सम्भव है जहाँ भू – स्वामी तथा पूँजीपति की समस्याएँ नहीं हैं तथा वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्य निर्धारित करने में श्रम के गुणात्मक मूल्य का माप करना कठिन था । 

अत : बाद में स्मिथ ने स्वयं ही इस तथ्य को स्पष्ट किया कि वस्तु का मूल्य निर्धारण सामान्यतः केवल श्रम के मूल्य पर निर्भर नहीं होता बल्कि श्रम की मजदूरी का भुगतान करने के पश्चात् भू – स्वामी को भूमि का लगान तथा पूँजीपति को पूँजी का उचित प्रतिफल प्राप्त हो के आधार पर ही निर्धारित होता है । 

इसका सीधा अर्थ यह समझा जा सकता है कि वस्तु का मूल्य सम्पूर्ण उत्पादन लागत वितरण का सिद्धान्त ( ( Theory of Distribution ) हैं । यद्यपि एडम स्मिथ के वितरण सम्बन्धी विचार मौलिक नहीं हैं परन्तु महत्वपूर्ण अवश्य उनके द्वारा प्रस्तुत विचारों में प्रकृतिवादियों की स्पष्ट छाप दिखाई देती है । 

स्मिथ के अनुसार मूल्य लगान , मजदूरी और लाभ ( या ब्याज ) के द्वारा निर्मित होता है , क्योंकि उत्पादन में इन तीनों का ही योग होता है । 

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( 1 ) लगान ( Rent ) – 

लगान के विषय में स्मिथ किसी निश्चित निश्चय पर नहीं पहुँच सका अत : उनके ग्रन्थ में परस्पर विरोधी बातें देखने को मिलती हैं । कहीं पर तो उनके विचार प्रकृतिवादियों के विचारों से मिलते – जुलते हैं जबकि कहीं पर वे आधुनिक अर्थशास्त्रियों के पास पहुँच गये हैं । 

( i ) लगान एकाधिकार का मूल्य ( Rent is monopolistic price ) स्मिथ के अनुसार लागत एक प्रकार का एकाधिकार मूल्य है जो कि भूमि के स्वामी को भूमि के उपयोग के लिये दिया जाता है जिसकी मात्रा भूमि की उर्वरता और स्थिति के अनुसार वदलती रहती है । 

( ii ) लगान प्रकृति का उपहार है ( Rent is a gift of nature ) स्मिथ के मतानुसार लगान भूमि की प्राकृतिक एवं अविनाशी शक्तियों अर्थात् विशेषताओं के कारण उपलब्ध एक प्रकार का उपहार है । निर्माण उद्योग में मनुष्य बिना प्रकृति की सहायता के कार्य करता है इसलिये उनसे मिलने वाला प्रतिफल ठीक उत्पादन लागत के बराबर होता है परन्तु कृषि में मनुष्य को प्रकृति का सहयोग प्राप्त होता है इसलिये भू – स्वामी को लगान एक विशेष आधिक्य के रूप में प्राप्त होता है जो उत्पादन लागत से कहीं अधिक होता है । 

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उपर्युक्त दोनों सिद्धान्तों के देखने से विदित होता है कि स्मिथ वितरण समस्या के लिये उपयुक्त समाधान प्रस्तुत नहीं कर सके हैं । 

( 2 ) मजदूरी ( Wages ) — 

स्मिथ द्वारा मजदूरी निर्धारण सम्बन्धी व्यक्त किये गये विचार भी अस्पष्ट तथा परस्पर विरोधी हैं । उन्होंने अनेक सिद्धान्तों का वर्णन किया है जिनका परिकल्पनाएँ सामने रखीं स्पष्टीकरण आगे आने वाले अर्थशास्त्रियों ने किया है । मजदूरी के निर्धारण के विषय में निम्न 

( i ) जीवन निर्वाह सिद्धान्त ( Subsistance Theory ) – वास्तविक मजदूरी का निर्धारण मजदूर के पालन – पोषण के लिये आवश्यक धन तथा उसके जीवन के लिये आवश्यक भत्ते के बराबर होता है । स्मिथ का विचार था कि यदि जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के योग्य ही मजदूरी की जायेगी तो उनकी पूर्ति यथावत् बनी रहेगी के सिद्धान्त को बाद में रिकार्डो ने पूर्ण किया । 

( ii ) मजदूरी कोष सिद्धान्त ( Wages Fund Theory ) – स्मिथ ने बताया कि श्रमिकों की मजदूरी अतिरिक्त सम्पत्ति के कोष पर निर्भर करती है । यह कोष नियोक्ताओं के जीवन निर्वाह के बाद इनकी शेष आय पर निर्भर करता है । स्मिथ का विचार था कि मजदूरी कोष में वृद्धि होने पर श्रमिकों की मांग भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है । 

( iii ) मजदूरों की माँग व पूर्ति सिद्धान्त ( Demand and supply of labour theory ) – स्मिथ ने बतलाया कि मजदूरी श्रम की माँग व पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है । श्रमिकों की पूर्ति श्रमिकों के जीवन स्तर लागत से सीमित होती है और जीवन स्तर लागत वस्तुओं के प्रचलित मूल्य पर निर्भर है । श्रम की माँग उपलब्ध स्कन्ध की मात्रा तथा राष्ट्रीय पूँजी के स्तर पर निर्भर है । 

( 3 ) लाभ तथा ब्याज ( Profit and Interest ) 

उत्पादन का तीसरा भाग पूँजी का पुरस्कार है । स्मिथ ने व्यवस्था और पूँजी को अलग – अलग साधन नहीं माना , अत : ब्याज और लाभ भी उनके लिये एक ही चीज थे । 

 
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