MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI वेद व्यास ने महाभारत में भगवान गणेश को महाभारत का पाठ किया और भगवान गणेश ने इसे लिखा। संजय ने अर्जुन और कृष्ण को भगवद् गीता के बारे में एक दूसरे से बात करते हुए सुना। भगवद गीता, जो महाभारत का एक हिस्सा है, वेद व्यास द्वारा लिखी गई थी। महाभारत जिसमे 100000 श्लोक हैं इस कारण इसे शत् सहस्त्र संहिता भी कहा जाता है गीता, या श्रीमद भगवद गीता के रूप में जाना जाने वाला 700-श्लोक वाला हिंदू पाठ, ऋषि व्यास द्वारा लिखा गया था और महाभारत का एक हिस्सा है। यह दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की है और एक विशिष्ट हिंदू संलयन का प्रतिनिधित्व करती है। इसे हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों (पांचवें वेद के रूप में) में से एक माना जाता है।

Mahabharat Kya Hai? | महाभारत क्या है?

Mahabharat Kisne Likhi Thi ॥ श्रीहरिः ॥ महाभारत संस्कृत वाङ्मयकी एक अमूल्य निधि है । इसे शास्त्रों में पंचम वेद के नामसे अभिहित किया गया है । यह भारत का सच्चा एवं बृहत् इतिहास तो है ही , जैसा कि इसके नामसे ही व्यक्त होता है , साथ ही इसमें धर्म , ज्ञान , वैराग्य , भक्ति , योग , नीति , सदाचार , अध्यात्म आदि सभी विषयोंका अत्यन्त विशद एवं सारगर्भित विवेचन किया गया है । इसे भारतीय ज्ञानका विश्वकोष कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी । Mahabharat Kisne Likha

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Mahabharat Kisne Likhi Thi? | महाभारत किसने लिखी?

MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजीने ही अपने श्रीमुखसे इसके विषयमें कहा है और भगवान गणेश ने इसे लिखा – ‘ यन्नेहास्ति न कुत्रचित्- जिस विषयकी चर्चा इसमें नहीं की गयी है , उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है । ‘श्रीमद्भगवद्गीता – जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागरकी देन है । परवर्ती अनेकानेक महाकवियोंने इसीको उपजीव्य बनाकर अपने अमर महाकाव्यों तथा नाटकोंकी रचना की है । इस ग्रन्थकी जितनी प्रशंसा की जाय , वह थोड़ी ही है । इसमें कुल मिलाकर एक लाख श्लोक हैं , इसी कारण इसे ‘ शतसाहस्त्री संहिता ‘ के नामसे पुकारा जाता है । Mahabharat Kisne Likhi

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।  
देवीं सरस्वती व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ 

Mahabharat Kisne Likhi अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण उनके सखा नर – रत्न अर्जुन , उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता भगवान् व्यासको नमस्कार करके आसुरी सम्पत्तियोंका नाश करके अन्तःकरणपर विजय प्राप्त करानेवाले महाभारत ग्रन्थका पाठ करना चाहिये ।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ नमः पितामहाय । ॐ नमः प्रजापतिभ्यः । ॐ नमः श्रीकृष्णद्वैपायनाय ।ॐ नमः सर्वविघ्नविनायकेभ्यः । 
MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI | महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी | महाभारत

कौन हैं वेद व्यास? | Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki

वेद व्यास की जीवनी– ऋषि वेद व्यास के महत्व को पहचाने बिना कोई भी हिंदू धर्म की पूरी तरह से सराहना नहीं कर सकता है, जिन्हें हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और प्रभावशाली आध्यात्मिक ग्रंथों को संकलित करने के लिए व्यापक रूप से सम्मानित और श्रेय दिया जाता है Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki

  • वेद,
  • 18 पुराण,
  • और दुनिया की सबसे बड़ी महाकाव्य कविता, महाभारत

Mahabharat Kisne Likhi Hai वेद, जिसका संस्कृत में “ज्ञान” के रूप में अनुवाद किया गया है, दिव्य ईश्वर के बारे में प्रमुख हिंदू शिक्षाओं को प्रस्तुत करने वाले भजनों का एक संग्रह है। ऐसा कहा जाता है कि वेदों का दर्शन व्यास द्वारा पुराणों और महाभारत (जिसमें भगवद गीता भी शामिल है – जिसे “ईश्वर के गीत” के रूप में जाना जाता है) में और विकसित और समझाया गया था।

वेद व्यास के जन्म की कथा | Ved Vyasa Ji Ki Kahani

Mahabharat ke lekhak हिंदू ग्रंथों का कहना है कि व्यास का जन्म उस समय के दौरान हुआ था जिसे द्वापर युग के रूप में जाना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह लगभग 5,000 साल पहले समाप्त हो गया था। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक युग चक्र में विशेष रूप से वेदों को लिखित रूप में संरक्षित करने के उद्देश्य से एक अलग सिद्ध आत्मा का जन्म होता है। इस प्रकार, “वेद व्यास” शीर्षक या स्थिति है – राष्ट्रपति, महापौर, या प्रमुख की तरह – द्वापर युग के अंत में वेदों को संकलित और वर्गीकृत करने के लिए विशेष रूप से दिव्य द्वारा सशक्त विशेष ऋषि को दी गई।

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Mahabharat kisne likha hai  युग के वर्तमान विशेष चक्र के वेद व्यास का जन्म एक मछुआरे की बेटी सत्यवती से हुआ था। किंवदंती कहती है कि कोई साधारण आत्मा नहीं होने के कारण, व्यास उसी दिन पैदा हुए थे, तुरंत परिपक्वता में बढ़ गए, और उन्हें कृष्ण द्वैपायन (“कृष्ण” का अर्थ “अंधेरा” और “द्वैपायन” का अर्थ “द्वीप-जन्म”) दिया गया।

एक तपस्वी का जीवन जीने के लिए दृढ़ संकल्प, व्यास ने घर छोड़ दिया, लेकिन सत्यवती से वादा किया कि अगर उसे कभी उसकी आवश्यकता होगी तो वह वापस आ जाएगा। भविष्य के अनुसार, सत्यवती बाद में दुनिया के सम्राट शांतनु की पत्नी बनीं और उनके साथ दो बेटे थे। दुर्भाग्य से, शांतनु और उनके दो पुत्रों की मृत्यु हो गई, जिससे राज्य को एक राजा की आवश्यकता पड़ी।

सिंहासन के उत्तराधिकारी के बिना, अन्य शत्रुतापूर्ण शासकों ने राज्य और दुनिया की स्थिरता को खतरे में डाल दिया, और इसलिए सत्यवती ने एक समाधान की खोज की।

व्यास के वचन को याद करते हुए, सत्यवती ने अपने पहले बच्चे को बुलाया और उसे अपने मृत पुत्रों की विधवाओं के साथ बच्चे पैदा करने के लिए कहा। व्यास ने सहमति व्यक्त की, और इस प्रकार प्रत्येक विधवा के साथ एक पुत्र की कल्पना की, साथ ही साथ एक दासी के साथ, कुल मिलाकर तीन पुत्र पैदा किए, जो उनकी तपस्या में लौटने से पहले थे।

हिंदुओं ने व्यास के जीवन से कई सबक सीखे हैं, सबसे पहले दूसरों की सेवा और देखभाल करने का उनका दृढ़ संकल्प। जन्म के समय से ही, उन्होंने व्यक्तिगत भौतिक गतिविधियों की कोई इच्छा महसूस नहीं की, और इसके बजाय उन्होंने आध्यात्मिक अनुशासन का एक त्यागी जीवन जीने का विकल्प चुना।

MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI | महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी | महाभारत

भगवद गीता के लेखक वेद व्यास | Mahabharat Kisne Likha

Mahabharat kab hui thi अपनी आध्यात्मिक साधना के प्रति प्रतिबद्ध होने के बावजूद, जब उनकी मां और बाकी दुनिया को उनकी सहायता की आवश्यकता थी, तब उन्होंने अपने व्यक्तिगत दायित्वों को अलग कर दिया। राज्य को स्थिरता प्रदान करने के लिए उत्तराधिकारी बनाना। इसके बाद वे बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना अपनी त्यागमय जीवन शैली में लौट आए।

और करुणावश, जब उन्होंने महसूस किया कि कलियुग शुरू होने वाला है, तो उन्होंने आध्यात्मिक लेखन का एक विशाल संग्रह इकट्ठा किया, जो उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है, जिन्हें कठिनाई की अवधि माना जाता है। हिंदू साहित्य के अनुसार, व्यास चिरंजीवी के रूप में जाने जाने वाले एक अमर प्राणी हैं जो आज भी जीवित हैं और उन्होंने मानवता के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए वर्तमान कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर रहना चुना है। ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यास व्यक्तिगत रूप से कुछ प्रसिद्ध लोगों से मिले और उन्हें शिक्षा दी
आदि शंकराचार्य और माधवाचार्य सहित हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक वंश के संत।

Mahabharat ki rachna kisne ki thi कई लोग वेद व्यास को मूल गुरु मानते हैं, यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा, गुरु के सम्मान का दिन, उनके जन्मदिन पर मनाया जाता है। वेद व्यास ने आध्यात्मिक साहित्य की समृद्धि को संकलित किया जिसका उपयोग अधिकांश प्रमुख हिंदू वंशों द्वारा किया जाता है। हिंदू धर्म वह नहीं होता जो आज वेद व्यास के बिना है, इस तथ्य के बावजूद कि धर्म में विचार के कई स्कूल हैं और विविध दार्शनिक निष्कर्ष हैं। MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI

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महाभारत का इतिहास | Mahabharat Kab Hua Tha

Mahabharat Kisne Likha Tha लोमहर्षणके पुत्र उग्रश्रवा सूतवंशके श्रेष्ठ पौराणिक थे । एक बार जब नैमिषारण्य क्षेत्रमें कुलपति शौनक बारह वर्षका सत्संग – सत्र कर रहे थे , तब उग्रश्रवा बड़ी विनयके साथ सुखसे बैठे हुए व्रतनिष्ठ ब्रह्मर्षियोंके पास आये । जब नैमिषारण्यवासी तपस्वी ऋषियोंने देखा कि उग्रश्रवा हमारे आश्रम में आ गये हैं , तब उनसे चित्र विचित्र कथा सुननेके लिये उन लोगोंने उन्हें घेर लिया । उग्रश्रवाने हाथ जोड़कर सबको प्रणाम किया और सत्कार पाकर उनकी तपस्याके सम्बन्धमें कुशल प्रश्न किये ।

सब ऋषि – मुनि अपने – अपने आसनपर विराजमान हो गये और उनके आज्ञानुसार वे भी अपने आसनपर बैठ गये । जब वे सुखपूर्वक बैठकर विश्राम कर चुके , तब किसी ऋषिने कथाका प्रसंग प्रस्तुत करनेके लिये उनसे यह प्रश्न किया- ‘ सूतनन्दन । आप कहाँसे आ रहे हैं ? आपने अबतकका समय कहाँ व्यतीत किया है ? ‘ उग्रश्रवाने कहा , ‘ मैं परीक्षित् – नन्दन राजर्षि जनमेजयके सर्प – सत्रमें गया हुआ था । MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI

MAHABHARAT KE RACHYITA KAUN HAI | महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी | महाभारत

Mahabharat Ki Rachna Kis Bhasha Mein Hui | महाभारत की रचना किस भाषा में हुई

वहाँ श्रीवैशम्पायनजीके मुखसे मैंने भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायनके द्वारा निर्मित महाभारत ग्रन्थकी अनेकों पवित्र और विचित्र कथाएँ सुनीं । इसके बाद बहुत – से तीर्थों और आश्रमों में घूमकर समन्तपंचक क्षेत्रमें आया , जहाँ पहले कौरव और पाण्डवोंका महान् युद्ध हो चुका है । वहाँसे मैं आपलोगोंका दर्शन करनेके लिये यहाँ आया हूँ । आप सभी चिरायु और ब्रह्मनिष्ठ हैं । आपका ब्रह्मतेज सूर्य और अग्निके समान है । आपलोग स्नान , जप , हवन आदिसे निवृत्त होकर पवित्रता और एकाग्रताके साथ अपने – अपने आसनपर बैठे हुए हैं । अब कृपा करके बतलाइये कि मैं आपलोगोंको कौन सी कथा सुनाऊँ । ‘ ऋषियोंने कहा- सूतनन्दन ! परमर्षि श्रीकृष्ण की कथा।

प्राणियोको सृष्टिको यही परम्परा है । भगवान् व्यास समस्त लोक , भूत – भावष्यत् वर्तमानके रहस्य , कर्म – उपासना – ज्ञानरूप वेद , अभ्यासयुक्त योग , धर्म , अर्थ और काम , सारे शास्त्र तथा लोक व्यवहारको पूर्णरूपसे जानते हैं । उन्होंने इस ग्रन्थमें व्याख्याके साथ सम्पूर्ण इतिहास और सारी श्रुतियोंका तात्पर्य कह दिया है । भगवान् व्यासने इस महान् ज्ञानका कहीं विस्तारसे और कहीं संक्षेपसे वर्णन किया है, क्योंकि विद्वान् लोग ज्ञानको भिन्न – भिन्न प्रकारसे प्रकाशित करते हैं । उन्होंने तपस्या और ब्रह्मचर्यकी शक्तिसे वेदोंका विभाजन करके इस ग्रन्थका निर्माण किया और सोचा कि इसे शिष्योंको किस प्रकार पढ़ाऊँ ?

Mahabharat Ke Lekhak Kaun Hai | महाभारत के लेखक कौन है?

भगवान् व्यास ने तपस्या और ब्रह्मचर्यकी शक्तिसे वेदोंका विभाजन करके इस ग्रन्थका निर्माण किया और सोचा कि इसे शिष्योंको किस प्रकार पढ़ाऊँ ? भगवान् व्यासका यह विचार जानकर स्वयं ब्रह्माजी उनकी प्रसन्नता और लोकहितके लिये उनके पास आये । भगवान् वेदव्यास उन्हें देखकर बहुत ही विस्मित हुए और मुनियोंके साथ उठकर उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा आसनपर बैठाया । स्वागत – सत्कारके बाद ब्रह्माजीकी आज्ञासे वे भी उनके पास ही बैठ गये । तब व्यासजीने बड़ी प्रसन्नतासे मुसकराते हुए कहा , ‘ भगवन् ! मैंने एक श्रेष्ठ काव्यकी रचना की है ।

महाभारत का मह्त्व | Importance Of Mahabharat

इसमें वैदिक और लौकिक सभी विषय हैं । इसमें वेदांगसहित उपनिषद् , वेदोंका क्रिया – विस्तार , इतिहास , पुराण , भूत , भविष्यत् और वर्तमानके वृत्तान्त , बुढ़ापा , मृत्यु , भय , व्याधि आदिके भाव – अभावका निर्णय , आश्रम और वर्णोंका धर्म , पुराणोंका सार , तपस्या , ब्रह्मचर्य , पृथ्वी , चन्द्र , सूर्य , ग्रह , नक्षत्र , तारा और युगोंका वर्णन , उनका परिमाण , ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्वण , अध्यात्म , न्याय , शिक्षा , चिकित्सा , दान , पाशुपतधर्म , देवता और मनुष्योंकी उत्पत्ति , पवित्र तीर्थ , पवित्र देश , नदी , पर्वत , वन , समुद्र , पूर्व कल्प , दिव्य नगर , युद्धकौशल , विविध भाषा , विविध जाति , लोकव्यवहार और सबमें इसको लिख लेनेवाला कोई नहीं मिलता, यही चिन्ताका विषय है ।

‘ ब्रह्माजीने कहा – ‘ महर्षे ! आप तत्त्वज्ञानसम्पन्न हैं । इसलिये मैं तपस्वी और श्रेष्ठ मुनियोंसे भी आपको श्रेष्ठ समझता हूँ । आप जन्मसे ही अपनी वाणीके द्वारा सत्य और वेदार्थका कथन करते हैं । इसलिये आपका अपने ग्रन्थको काव्य कहना सत्य होगा । उसकी प्रसिद्धि काव्यके नामसे ही होगी । आपके काव्यसे श्रेष्ठ काव्यका निर्माण जगत्में कोई नहीं कर सकेगा । आप अपना ग्रन्थ लिखनेके लिये गणेशजीका स्मरण कीजिये । ‘ यह कहकर ब्रह्माजी तो अपने लोकको चले गये और व्यासजीने गणेशजीका स्मरण किया । स्मरण करते ही भक्त वांछाकल्पतरु गणेशजी उपस्थित हुए । व्यासजीने पूजा करके उन्हें बैठाया और प्रार्थना की , ‘ भगवन् ! मैंने मन – ही – मन महाभारतकी रचना की है । मैं बोलता हूँ , आप उसे लिखते जाइये । ‘ गणेशजीने कहा , ‘ यदि मेरी कलम एक क्षणके लिये भी न रुके तो मैं लिखनेका काम कर सकता हूँ । ‘ व्यासजीने कहा , ‘ ठीक है , किन्तु आप बिना समझे न लिखियेगा । ‘ गणेशजीने ‘ तथास्तु ‘ कहा।

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