कंपनी का शासन [ 1773 से 1858 तक ]

(Historical Background)

Indian Polity In Hindi भारत में ब्रिटिश 1600 ई . में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में , व्यापार करने आए । महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा उन्हें भारत व्यापार करने के विस्तृत अधिकार प्राप्त थे । कंपनी , जिसके कार्य अभी तक सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक ही सीमित थे , ने 1765 में बंगाल , बिहार और उड़ीसा के दीवानी ( अर्थात राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार ) अधिकार प्राप्त कर लिए । इसके तहत भारत में उसके क्षेत्रीय शक्ति बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई । 1858 में , ‘ सिपाही विद्रोह ‘ के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ताज ( Crown ) ने भारत के शासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः अपने हाथों में ले लिया । यह शासन 15 अगस्त , 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अनवरत रूप  से जारी रहा ।

स्वतंत्रता मिलने के साथ ही भारत में एक संविधान की आवश्यकता महसूस हुई ।

  • 1934 में एम.एन , राय ( भारत में साम्यवाद आंदोलन के प्रणेता ) के दिए गए सुझाव को अमल में लाने के उद्देश्य से 1946 में एक संविधान सभा का गठन किया गया और
  • 26 जनवरी , 1950 को संविधान अस्तित्व में आया । यद्यपि संविधान और राजव्यवस्था की अनेक विशेषताएं ब्रिटिश शासन से ग्रहण की गयी थीं तथापि ब्रिटिश शासन में कुछ घटनाएं ऐसी थी , जिनके कारण ब्रिटिश शासित भारत में सरकार और प्रशासन की विधिक रूपरेखा निर्मित की गई ।

इन घटनाओं ने हमारे संविधान और राजतंत्र पर गहरा प्रभाव छोड़ा।

कंपनी का शासन [ 1773 से 1858 तक ]

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधनिक महत्व है , Indian Polity In Hindi

AURJANIYE, AURJANI Indian Polity In Hindi
  • भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था , (
  •  इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली ,
  • एवं इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी ।

अधिनियम की विशेषताएं Indian Polity In Hindi

1. इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को ‘ बंगाल का गवर्नर जनरल ‘ पद नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया । उल्लेखनीय है कि ऐसे पहले गवर्नर लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स थे ।

2. इसके द्वारा मद्रास एवं बंबई के गवर्नर , बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गये , जबकि पहले सभी प्रेसिडेंसियों के गवर्नर एक – दूसरे से अलग थे ।

3. अधिनियम के अंतर्गत कलकत्ता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई , जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे ।

4. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया ।

5. इस अधिनियम के द्वारा , ब्रिटिश सरकार का ‘ कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ‘ ( कंपनी की गवनिंग बॉडी ) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया । इसे भारत में इसके राजस्व , नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया ।

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट रेगुलेटिंग एक्ट

1773 की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक संशोधित अधिनियम 1781 में पारित किया ,

जिसे एक्ट ऑफ़ सैटलमेंट ACT OF SETTELEMENT के नाम से भी जाना जाता है ।

इसके बाद एक अन्य महत्वपूर्ण अधिनिमय पिट्स इंडिया एक्ट , 1784 में अस्तित्व में आया ।

अधिनियम की विशेषताएं

1. इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को पृथक्

2. इसने निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी लेकिन राजनैतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड ( बोर्ड ऑफ कंट्रोल ) नाम से एक नए निकाय का गठन कर दिया ।

इस प्रकार , द्वैध शासन की व्यवस्था का शुभारंभ किया गया ।

3. नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी कि वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में सभी नागरिक , सैन्य सरकार व राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण एवं नियंत्रण करें । 8

विकास

इस प्रकार , यह अधनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था ।

  • पहला , भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ‘ ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र ‘ कहा गया ; 
  • दूसरा , ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।
Related Posts:-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *