Sikandar ke Bharat Vijay Abhiyan
विभक्त था तथा आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टि से भारत का यह क्षेत्र अति महत्वपूर्ण था , अतः किसी भी शक्तिशाली एवं साम्राज्यवादी शासक के लिए वह आकर्षण का केन्द्र था ।
यूनानी आक्रमण ( GREEK INVASION )
भारत और यनानका सम्बन्ध भारतीय सेनाओं के माध्यम से यूनान पर इरानी आक्रमण के समय हुआ । क्षयार्ष ( 486 ई . पू . – 465 ई . पू . ) के नेतृत्व में भारतीय सेनाओं ने थर्मोपली के युद्ध में भाग लिया था।
यूनानी भारतीयों के सुती वस्त्र और बेंत के लोहे की नोंक वाले लम्बे तीरों को देखकर चकित थे । इस घटना के पश्चात भारत व यनान के मध्य एक दार्शनिक सम्बन्ध का भी पता चलता है । एक भारतीय दार्शनिक ने 400 –
399 ई . पू . में एथेन्स में सुकरात से भेंट की थी व उससे दार्शनिक विचार – विमर्श किया था । यह प्रसंग प्रामाणिक है क्योंकि यूनानी ग्रन्थों में 400 ई . पू . से पहले ही भारत का उल्लेख होने लगा था ।
किन्तु भारत व यूनान का वास्तविक सम्पर्क ई . पू . चतुर्थ शताब्दी में सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय ही हुआ ।
उत्तर मकदनिया में एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ । इस साम्राज्य का शासक फिलिप था , जो अत्यन्त शक्तिशाली होने के साथ – साथ साम्राज्यवादी था । अतः शीघ्र ही उसने अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त कर शक्तिशाली मकदूनिया साम्राज्य की स्थापना की । सिकन्दर ( Alexander ) इसी शक्तिशाली शासक फिलिप का पुत्र था । वह भी अपने पिता के समान महत्वाकांक्षी युवक था । ई . पू . 336 में वह राजसिंहासन पर आसीन हुआ । उस समय उसकी आयु मात्र उन्नीस वर्ष की थी । सिकन्दर के पिता ने लगभग सम्पूर्ण यूनान पर पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी ,
Alexender the Great |
भारतीय अभियान से पूर्व सिकन्दर की विजयें KALEXANDER ‘ S CONQUESTS BEFORE THE INDIAN INVASION )
सिकन्दर एक महान सेनानायक तथा अदम्य साहयी युवक था । उसे यूनान का अधिक विस्तार करने में उसे विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा तथा शीघ्र ही उसने सम्पूर्ण समर्ण यनान पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त अपनी सफलताओं से प्रोत्साहित होकर सिकन्दर विश्व विजय सपने देखने लगा ।
नगर की भी स्थापना की । तत्पश्चात 330ई . पू . में सिकन्दर ने ईरान के हखमनी साम्राज्य पर आक्रमण किया तथा वहाँ के शासक डरिवस तृतीय को बल्ख भागने पर विवश किया । उसने वहाँ अत्यन्त सूटपाट की तथा ईरानी राजधानी पीपोलिस को भस्म कर दिया ।
भारत में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से उसने बैक्ट्रिया से आगे बढ़ते हए हिन्दकश को पार किया तथा निकाया ( काबुल ) पहुंचा । यहां तक्षशिला का देशद्रोही राजा आम्भी सिकन्दर में मिलने पहुंचा था ।
सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति
( POLITICAL CONDITION OF INDIA ON THE EVE OF ALEXANDER ‘ S INVASION )
सिकन्दर जिस समय भारत पर आक्रमण की योजना बना रहा था . उस समय भारत की राजनीतिक
स्थिति अत्यन्त खराब थी । यद्यपि मगध साम्राज्य भारत में राजनीतिक एकता स्थापित करने का प्रयास कर रहा था, किन्त तब तक उत्तर – पूर्वी भारत ही मगध साम्राज्य का अंग बन पाया था। पश्चिमोत्तर भारतका स्थिति विशेष रूप से शोचनीय थी, सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर भारत छोटे – छोटे राज्यों में विभक्त था ।
भारतीय अभियान के उद्देश्य ( OBJECTIVES OF THE INDIAN INVASION )
सिकन्दर के भारतीय अभियान का प्रमुख उद्देश्य साम्राज्य विस्तार व अपने विश्व विजय के
स्वप्न को साकार करना था । भारत की धनसम्पदा ने भी उसे अपनी ओर आकर्षित किया था ।
1 . अस्सप विजय –
सिकन्दर ने अपना भारतीय अभियान अस्सप जाति पर आक्रमण से प्रारम्भ कि असपों की लड़ाई सर्व तीखी हुई . केवल इसलिए नहीं कि भूमि पहाड़ी थी ,वरन् इस कारण कि इस भू – भाग में भारतीय सबसे महान योद्धा थे ” किन्तु अन्त में सिकन्दर की विजय हुॆई तथा उसने अस्सप राज्य के चालीस हजार पुरुषों को बन्दी बनाया तथा उनके दो लाख जानवर भी अपने अधिकार में ले लिये ।
2 . नीसा विजय –
अस्सपों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् सिकन्दर ने एक अन्य पहाडी राज्य नीसा पर आक्रमण किया । नीसा के लोगों न सिकन्दर के सम्मुख न केवल आत्मसमर्पण किया वरन भेंट के रूप । में उसे 300 घुड़सवार भी दिये ।
3 . अश्वकायनों पर विजय
नीसा में कुछ दिनों के विश्राम के पश्चात् सिकन्दर ने आगे बढ़ते अश्वकायनों ( अस्सीकोनोस ) पर आक्रमण किया । अश्वकायनों की राजधानी मस्सग ( Massaga ) थी तथा सिकन्दर का समकालीन राजा अस्सकेनस ( Assakenos ) था । अश्वकायन एक शक्तिशाली राज्य था । इस अभेद्य दुर्ग पर विजय प्राप्त करना सम्भवतः सिकन्दर के लिए अत्यधिक कठिन होता , किन्तु दुर्भाग्यवश अश्वकायन राजा अस्सकेनत की बाण लगने से मृत्यु हो गयी तथा रानी क्लीओफिस ( Klcophis ) ने सिकन्दर के सम्मुख आत्मसमर्पण का दिया । रानी बलीओफिस द्वारा आत्मसमर्पण किये जाने पर सिकन्दर ने इन योद्धाओं को दुर्ग से जाने की अनुमति दे दी , किनु जैसे ही ये सैनिक दुर्ग से निकले सिकन्दर ने उन पर आक्रमण किया व बड़ी संख्या में उनका वध कर दिया । सिकन्दर द्वारा अपने वचन का उल्लघन होते देख अश्वकायनों ने पुनः सिकन्दर का सामना किया इस युद्ध में औरतों ने भी भाग लिया परन्तु वे सब मारे गये।
इस घटना को सिकन्दर के यश पर काला पन्ना बताया है । सिकन्दर की इस छल नीति की अत्यधिक आलोचना की गयी ।
तक्षशिला एवं अभिसार –
326 ई . पू . के बसन्त के आरम्भ में सिकन्दर सिन्धु नदी को पार कर तक्षशिला पहुंचा जहाँ राजा आम्भि ने सिकन्दर का भव्य स्वागत किया तथा उसे अनेक भेंट व सैनिक सहायता दी । आम्भि द्वारा सिकन्दर की सहायता करने का प्रमुख कारण यह था कि आम्भि की अपने पड़ोसी राजा पोरस । से शत्रुता था , अतः आम्भि सिकन्दर के द्वारा पोरस को नीचा दिखाना चाहता था । इसी कारण आम्भि न सिकन्दर को पाँच हजार सनिक दिये । आम्भि के समान ही अभिसार के शासक व अन्य निकटयती राजाओं ने भी । सिकन्दर के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया ।
पोरस से युद्ध –
झेलम और चिनाब नदी के मध्य के प्रदेश ( कैकय प्रदेश ) पर पोरस का राज्य था । यूनानी स्रोतों से ज्ञात होता है कि पोरस ने सिकन्दर के आधिपत्य को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । सिकन्दर की सेनाओं को रोकने के उद्देश्य से पोरस ने अपनी सेना को झेलम नदी के दूसरे किनारे पर एकत्र कर लिया । उन दिनों बरसात के दिन थे और झेलम में बाढ़ आयी हुई थी । पोरस की सेना तथा नदी में बाढ़ के कारण सिकन्दर का यह साहस न हुआ कि वह उस स्थान से नदी पार करता ।
अतः यह सिकन्दर , जिसने ईरान के साथ हुए आरबेला के युद्ध के समय धोखे से रात को इरानी दल पर आक्रमण करने के परामर्श को ठुकरा दिया था तथा गर्व से कहा था कि वह चोरी से विजय नहीं चाहता , पोरस की शक्ति के समक्ष चोरी से ही नदी पार करने के लिए विवश हुआ ।
इस युद्ध में पोरस के 4 , 000 सनिक व उसका पुत्र मारा गया , किन्तु मरने से पूर्व पोरस के पुत्र ने सिकन्दर के स्कन्ध को हिलाकर तथा उसके प्रिय घोड़े बुकाफेला ( Boukephalan को मारकर उसे भारतीय पौरुष से अवगत करा दिया ।
इस करी ( Karri ) के मैदान में सिकन्दर ने जब पोरस की सेना को देखा , तो उसके मुख से निकला । ” आखिर आज अपने सामने में वह खतरा देख रहा हूं जो मेरे साहस को चुनौती देने वाला है । यह संघर्ष एकदम जंगली जानवरों और असाधारण पौरुष के विरुद्ध है । “ दोनों ओर की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ । पोरस ने अत्यन्त वीरतापूर्वक सिकन्दर का सामना किया । परन्तु वर्षा के कारण पोरस की सेना के रथ कीचड़ में फँस जाने तथा धनुर्धारियों के ठीक से बाण न चला पाने के कारण पोरस पराजित हुआ ‘ पोरस अन्तिम समय तक लड़ता रहा । उसके शरीर पर नौ घातक घाव थे वह स्वयं घायल था फिर भी उसने देशद्रोही आम्भि पर भाला चलाया , किन्तु आम्भि बच गया । पोरस को प्रायः मूच्छित अवस्था में बन्दी बनाया गया व सिकन्दर के सम्मुख प्रस्तुत किया गया । सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय तो पोरस ने गर्व के साथ कहा कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साव करता है ।
इसके अलावा सिकन्दर ने ग्लोगनिकाई, यवन शासन के विरुद्ध विद्रोहों को दबाया गया, गन्दरीस पर विजय प्राप्त की तथा इसके अलावा भी उसने कई प्रदेश जैसे-
अन्य विजयें
- तत्पश्चात् सिकन्दर ने रावी नदी पार करके 326 ई . पू . के वर्षान्त में पिंप्रमा के दर्ग पर अधिकार कर लिया ।
- अद्रेष्ट गणराज्य ने भी सिकन्दर की अधीनता स्वीकार कर ली ।
- इसके बाद सिकन्दर ने कठ गणराज्य पर आक्रमण किया जिसकी राजधानी सांगल या सांकल था । कठ अपने साहस व रणकौशल के लिए प्रसिद्ध थे । सिकन्दर कठों के मध्य भीषण युद्ध हआ . परन्तु सिकन्दर का सफलता हाथ न लगी ।
- विवश होकर सिकन्दर ने पोरस से सहायता मांगी । अन्ततः पोरस की सहायता से सिकन्दर ने कठो को परास्त किया व उनकी राजधानी को उसने ध्वस्त कर दिया ।
- इसके पश्चात् सिकन्दर ने सौभूति राज्य पर आक्रमण किया व उस पर अपना आधिपत्य स्थापित किया । इस प्रकार अपनी विजय पताका फहराता हुआ सिकन्दर व्यास नदी के तट पर पहुंच गया ।
सिकन्दर की सेना द्वारा आगे बढ़ने से इन्कार ( ALEXANDER ‘ S ARMY REFUSE TO MARCH FORWARD )
व्यास नदी के तट पर पहुंचकर सिकन्दर ने जब अपने भारत विजय के स्वप्न को साकार करने हेत आगे बढ़ने का प्रयास किया तो उसकी सेना ने विद्रोह कर दिया तथा आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । सैनिकों द्वारा आगे बढ़ने से इन्कार करने के अनेक कारण थे
- यूनानी सैनिक निरन्तर युद्धों से थक चुके थे तथा काफी समय से अपने देश से बाहर होने के कारण अपने देश लौट जाने के लिए विकल थे ।
- ईरान तथा पंजाब के युद्धों में बहुत – से यूनानी सैनिक हताहत हुए थे अतः बचे हुए सैनिक सिकन्दर की विश्व – विजय को साकार करने के प्रयल में अपनी जान देना नहीं चाहते थे ।
- उन्हें ज्ञात था कि व्यास के आगे भी भारत का विशाल भू – भाग है तथा सिकन्दर की आकांक्षाओं का कोई अन्त नहीं है ।
- इसके अतिरिक्त ठण्डे प्रदेश से आने वाले यूनानियों के लिए पंजाब की जलवायु ( भीषण गर्मी व वर्षा ) असह्य थी ।
- बहुत – से यूनानी सैनिक बीमारियां से ग्रस्त होकर मर गये थे । अतः वे सुरक्षित अपने देश लौटना चाहते थे ।
- इसके अतिरिक्त भारतीयों की वीरता एवं रण – कौशल ने उनको भयभीत कर दिया था ।
- यूनानी लेखक प्लूटार्क के वर्णन से ही इस तथ्य की पुष्टि होती है । प्लटार्क ने लिखा है कि पोरस के विरुद्ध युद्ध के पश्चात् ही यूनानी सेना काफी हतोत्साहित चुकी थी तथा व्यास नदी तक उसने बड़ी अरुचि के साथ सिकन्दर का अनुसरण किया था ।
- सिकन्दर ने हर तरीके से सैनिकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया , किन्तु उन पर असर न हुआ । सिकन्दर ने अकेले ही आगे बढ़ने की धमकी दी तथा अपने सैनिकों से कहा , ” डाल दो मुझे गरजती नदियों के खतरे में , छोड़ दो मुझे क्रुद्ध गजों की दया पर और उन क्रूरकर्मा जातियों के प्रतिहिंसक औदर्य पर जिनके नाम तुम्हें आतंक से भर रहे हैं । मैं ढूंढ लूंगा ऐसे वीरों को जो मेरा अनुसरण करेंगे । परन्तु उसकी सेना पर । बातों का भी कोई असर न हुआ । अतः सिकन्दर समझ गया कि ऐसी सेना से अब पराक्रम की आशा करना बेकार है।
सिकन्दर की विजय के कारण
- पूर्वी भारत में स्थित विशाल नन्द साम्राज्य के शासक धननन्द ने विदेशी आक्रमण के समय उत्तर – पश्चिमी राज्यों की किसी प्रकार की मदद नहीं की ।
- धननन्द इतना शक्तिशाली सम्राट था कि वह अकेला ही सिकन्दर को परास्त करने के लिए पर्याप्त था , किन्तु उसने उत्तर पश्चिम भारत पर आये इस संकट को दूर करने का कोई प्रयास न किया ।
- जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है कि स्वयं यूनानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के पराक्रम का प्रशंसा की है ।
- व भारतीयों को एशिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धा बताया है ।
- इसके अतिरिक्त सिकन्दर का अपने भारतीय अभियान के दौरान भारत के छोटे – छोटे राज्यों से ही सामना हुआ था तथा उन्हीं राज्यों के साथ युद्धों ने उसकी सेना को इतना भयभीत कर दिया कि वे आगे बढ़ने का साहस ही नहीं कर पाये ।
- भारत की वास्तविक शक्तिशाली सेना तो मगध साम्राज्य की थी , किन्तु मगध साम्राज्य पर आक्रमण करने का साहस यनानियों में न था ।
आकस्मिक कारण
- उदाहरणार्थ , जिस समय सिकन्दर व पोरस के मध्य युद्ध हो रहा था , अचानक हुई अत्यधिक वर्षा ने इस युद्ध के परिणाम को ही बदल दिया ।
- पोरस की सेना की प्रमुख शक्ति रथ – सेना व धनुर्धारी सैनिकों में निहित थी । वर्षा के कारण युद्ध – स्थल पर कीचड़ हो गयी तथा रथों के पहिये उसमें फँस गये तथा भूमि फिसलनी हो जाने से घोड़े रथों को खींच पाने में असमर्थ हो गये ।
- अतः पोरस की रथ – सेना बेकार हो गयी ।