अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष | WHAT IS IMF IN HINDI | INTERNATIONAL MONETRY FUND IN HINDI | AURJANIYE
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इस विषय के अन्तर्गत हम इन चीजों को पढ़ेंगे-
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की अल्पविकसित देशों के लिए क्या उपयोगिता
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक विश्व स्तरीय मौद्रिक संगठन है । विश्व के विभिन्न देशों द्वारा इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध 1939-45 के बाद अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सन्तुलित विकास एवं विभिन्न मुद्राओं के मध्य परिवर्तनशीलता के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की गयी थी ।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पत्र मुद्रा का प्रचलन प्रारम्भ हुआ । पत्र मुद्रा के कारण विश्व की विभिन्न मुद्राओं के मध्य विनिमय दरों में उतार – चढ़ाव होने लगे । इसके फलस्वरूप अनेक देशों ने विनिमय नियन्त्रण की नीति अपना ली । antarrashtriya mudra kosh
अमेरिका के ब्रिटेनवुड्स नगर में जुलाई , 1944 में एक अधिवेशन बुलाया गया । जिसमें विश्व के 45 देशों ने भाग लिया ।
विश्व के दो आर्थिक संगठनों विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना इसी अधिवेशन में की गयी । वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्यों की संख्या 189 है । 27 दिसम्बर , 1945 को 29 देशों के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आई . एम . एफ . की स्थापना हुई ।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना वाशिंगटन में 27 दिसम्बर , 1945 को हुई । इसने 1 जुलाई , 1947 से कार्य करना प्रारम्भ किया । इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं
अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहन –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रमुख उद्देश्य सहयोग एवं परामर्श हेतु एक स्थायी व्यवस्था कायम करना है जिसके माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग में वृद्धि हो सके ।
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अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सन्तुलित विस्तार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आर्थिक विकास में सहायता करता है । यदि विश्व के विभिन्न देशों के व्यापार में विस्तार जारी रहता है तो उनके साधनों का उत्पादन एवं उपयोग हो सकेगा तथा रोजगार में वृद्धि होगी ।
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विनिमय दरों में स्थिरता-
मुद्रा कोष का एक प्रमुख उद्देश्य विनिमय दरों में स्थिरता लाकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के ठोस विकास का वातावरण बनाना भी है । मुद्रा कोष विनिमय दरों में प्रतियोगात्मक गिरावट को रोकता है । सदस्य देशों द्वारा विनिमय दरों के निर्धारण या इनमें किये जाने वाले परिवर्तनों के सम्बन्ध में मुद्रा कोष पूँजी हस्तान्तरण व ऐसे परिवर्तनों के दूरगामी प्रभावों पर विचार करता है ।
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बहुपक्षी भुगतानों की सुव्यवस्था –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का एक प्रमुख उद्देश्य बहुपक्षीय भुगतानों की व्यवस्था स्थापित करके विनिमय प्रतिबन्धों को समाप्त करना भी है । अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष कुछ समय के लिए मौद्रिक सहायता देकर संकटग्रस्त देशों की सहायता करता है और उन्हें प्रोत्साहित भी करता है ।
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प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन की व्यवस्था –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष सदस्यों के प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को ठीक करने के लिए अल्पकालीन साख ( Credit ) प्रदान करता है । यह साख इस प्रकार प्रदान की जाती है कि सदस्य देश के स्थायी भुगतान सन्तुलन को ठीक करने हेतु मुद्रा कोष कोई दायित्व नहीं लेता । ऐसी स्थिति में मुद्रा कोष सदस्य देश को मुद्रा अवमूल्यन का सुझाव देता है ।
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विनिमय दर सम्बन्धी सदस्य देशों की नीतियों पर दृष्टिपात –
मुद्रा कोष जिन देशों की सहायता करता है प्रायः उन्हें यह राय देता है कि वे विनिमय दर को वास्तविक स्तर तक लायें । मुद्रा कोष इन देशों की अन्य नीतियों में भी परिवर्तन करने हेतु परामर्श देता है जो प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन के लिए उत्तरदायी हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
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देशों की मुद्राओं की मूल्यक्षमता का निर्धारण-
प्रत्येक देश को अपनी मुद्रा का मूल्य स्वर्ण या डॉलर पर घोषित करना पड़ता है । कोई देश चाहे तो अपनी मुद्रा के मूल्य की घोषणा करना अस्वीकार भी कर सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को भी यह अधिकार प्राप्त कि वह किसी देश द्वारा उसकी मुद्रा का प्रस्तावित मूल्य अस्वीकार कर दे । प्रत्येक सदस्य देश का यह दायित्व है कि अपनी मुद्रा के घोषित एवं निर्धारित मूल्य की विनिमय दरों को स्थिर रखे परन्तु इसका यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि विनिमय दरों को कठोर रूप में स्थिर रखा जाय । मुद्रा कोष को यह भी अधिकार है कि वह सदस्य देश की मुद्राओं के समता मूल्यों में एक साथ एक ही अनुपात में परिवर्तन कर दे ।इसके लिए आवश्यक है कि 10 % सदस्य देश इसके लिए सहमत हों । -
विनिमय प्रतिबन्धों को हटाना–
विनिमय प्रतिबन्धों को समाप्त करना मुद्रा कोष के प्रमुख कार्यों में एक है । मुद्रा कोष विविध विनिमय दरों एवं विभिन्न मौद्रिक नीतियों के विरुद्ध भी कार्य करता है । क्योंकि इन नीतियों के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है । अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक स्वतन्त्र बहुमुखी भुगतान प्रणाली की स्थापना हेतु कार्य करता है । मुद्रा कोष के सभी सदस्य इस बात का संकल्प लेते हैं कि वे परिस्थितियों के अनुकूल होते ही सभी प्रकार के विनिमय प्रतिबन्धों को समाप्त कर देंगे तथा इनका पुन : उपयोग केवल उस स्थिति में करेंगे जब ऐसा करना नितान्त आवश्यक हो जाये । -
मुद्रा कोष के वित्तीय कार्य –
इससे सम्बन्धित निम्न कार्य हैं
- मुद्राओं की खरीद व बिक्री- मुद्रा कोष का यह प्रमुख दायित्व है कि सदस्य देशों की मुद्राओं को खरीदे व बेचे ।
- देशों की अन्य मुद्राएँ खरीद क्षमता- किसी भी सदस्य देश की विदेशी मुद्रा खरीदने की क्षमता उसके आवंटित कोटे पर निर्भर करती है । किसी भी एक वर्ष की अवधि में किसी सदस्य देश द्वारा मुद्रा खरीदने पर उसके अभ्यंश के मुद्रानुपात में पचीस प्रतिशत से अधिक वृद्धि न हो । विदेशी मुद्रा की कुल खरीद सदस्य देश के कोटे के दो गुने से अधिक न हो ।
- मुद्रा कोष द्वारा सदस्य देशों का ऋण लेना- मुद्रा कोष द्वारा ऋण प्रदान करने का कार्य मुद्रा विक्रय के रूप में किया जाता है । कोई भी सदस्य देश जिसके पास विदेशी मुद्रा की कमी होती है अपनी स्वयं की मुद्रा देकर कोष से सम्बन्धित विदेशी मुद्रा क्रय कर सकता है । जिस मुद्रा की माँग की जाती है उसका प्रयोग चालू भुगतान के लिए होता है । विगत वर्षों में मुद्रा कोष ने सदस्य देशों की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाएँ प्रारम्भ की हैं ।
- प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन ठीक करने हेतु सहायता – अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अपने सदस्य देशों को अनेक प्रकार से सहायता देकर उनकी भुगतान सन्तुलन की समस्याओं के निदान में सहायक होता है । कोई देश किसी भी समय अपने रिजर्व का शत – प्रतिशत मुद्रा कोष से विदेशी मुद्रा के रूप में ले सकता है । इस धन का प्रयोग भुगतान सन्तुलन के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है । यह विनिमय मुद्रा कोष का होता है । लागू करने का अधिकार दिया गया है—
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मुद्रा कोष की लागत व ब्याज-
मुद्रा कोष को निम्न तीन प्रकार की ब्याज दरें
- सदस्य देश के अभ्यंश के 25 % पर प्रथम तीन माह के लिए कोई ब्याज नहीं अगले वर्ष के लिए आधा प्रतिशत की वृद्धि की जाती है । लिया जाता परन्तु उसके पश्चात् अगले 9 माह के लिए आधा प्रतिशत तथा फिर प्रत्येक ब्याज दर में आधा प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाती है । (
- अभ्यंश के 25 % से अधिक परन्तु 50 % से कम ऋण पर प्रत्येक वर्ष के लिए
- अभ्यंश के प्रत्येक अगले 25 % भाग के लिए प्रथम वर्ष के लिए आधा प्रतिशत अधिक ब्याज लिया जाता है तथा प्रत्येक अगले वर्ष के लिए आधा प्रतिशत वृद्धि कर दी । जाती है ।
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ट्रस्ट कोष –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में 1975-76 में एक ट्रस्ट कोष कार्यकारी संचालकों ने स्थापित किया । इस कोष का प्रयोजन प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन वाले देशों को ऋण देना है । इन ऋणों पर आधा प्रतिशत ब्याज लिया जाता है । -
विनिमय दरों में स्थिरता लाना –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रयासों के फलस्वरूप विश्व की महत्त्वपूर्ण मुद्राओं की विनिमय दरों में माँग और पूर्ति के प्रयोजन के अनुरूप समायोजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई है , वहीं इसने विनिमय दरों में सीमित स्थिरता लाने में भी सहायता की है ।
अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सहयोग –
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष विश्व के सभी अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सम्पर्क रखता है । इसके द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि उन संगठनों की वार्षिक सभाओं में सम्मिलित होते रहते हैं । विश्व में हो रहे आर्थिक परिवर्तनों अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
अवगत रहता है । पिछले कुछ वर्षों से मुद्रा कोष ने अल्पविकसित देशों की सहायतार्थ अधिक ध्यान देना प्रारम्भ किया है । भारत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संस्थापक देशों में से है और अभ्यंश की दृष्टि से आठवें स्थान पर है ।
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