भारत में यूरोपीय शक्तियों का क्रमबद्ध Bharat main Europe shaktiyo ka Aagman
स्वागत है दोस्तों आपका हमारी और आपकी अपनी वेबसाइट www.aurjaniy.com पर यहाँ हम आपको देते हैं सबसे अच्छा सिविल सर्विस सामान्य अध्ययन मटेरियल हिंदी में सबसे अच्छी किताबों और स्त्रोतों से और आजके इस ब्लॉग में हम जानेंगे
औरजानिये। Aurjaniye
तो दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो हमें कमेंट करके जरुर बतायें , और इसे शेयर भी जरुर करें।
औरजानिये। Aurjaniye
For More Information please follow Aurjaniy.comand also follow us on Facebook Aurjaniye | Instagram Aurjaniye and Youtube Aurjaniye with rd
भारत में यूरोपीय शक्तियों का आगमन
भारत में अनेक यूरोपीय शक्तियों का आगमन शुरू हुआ जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
पुर्तगीज – Portugees
1498 ई . में वास्कोडिगामा के भारत आगमन से पुर्तगालियों एवं भारत के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू हुआ । इसके बाद पुर्तगालियों का भारत आने का क्रम जारी हो गया । 9 मार्च , 1500 ई . को 13 जहाजों के एक बेड़े के साथ पेंड्रोम अल्बरेज केबल जल मार्ग द्वारा लिस्बन से भारत के लिए रवाना हुआ जिसने कालीकट के निकट अपना डेरा डाला ।
पुर्तगालियों ने भारत में अपनी व्यापारिक कोठियाँ
- गोवा
- कालीकट दमन
- द्वीव एवं हुगली में
स्थापित की तथा यहीं से अपनी गतिविधियों का संचालन किया । 1505 ई . में फ्रांसिस्को द अल्मीडा भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनकर भारत आया । उसने सामुद्रिक नीति को अधिक महत्व देते हुए हिन्द महासागर में पुर्तगालियों की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया । अल्मीडा 1509 ई . तक भारत में रहा । अल्मीडा के बाद अल्फांसो द अल्बुकर्क 1509 ई . में पुर्तगालियों का वासयराय बनकर भारत आया । उसने 1510 ई . में बीजापुर के शासक युसुफ आदिलशाह से गोवा को छीनकर उस पर अपना अधिकार स्थापित किया । Europ invasion to india
जैसे – जैसे पुर्तगालियों की आबादी बढ़ती गई पुर्तगालियों ने भारतीय स्त्रियों से विवाह करने शुरू कर दिये । 1518 ई . में पुर्तगालियों ने कोलम्बो एवं मलक्का में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किये । इसके साथ ही गोवा में पुर्तगालियों ने अपनी सत्ता एवं संस्कृति का महत्वपूर्ण केन्द्र स्थापित किया ।
अपनी शक्ति के विस्तार के साथ ही पुर्तगालियों ने भारतीय राजनीति में भी अपना हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आने वाला पुर्तगाली गवर्नर निनोडी कूल्हा जो नवम्बर , 1529 ई . में आया था , उसने मुगल सम्राट् हुमायूँ का गुजरात के शासक बहादुरशाह से संघर्ष होने पर बहादुरशाह को सैनिक सहायता प्रदान की थी । इसके बदले में उसने 1534 ई . में बसई का द्वीप तथा उसके अधीन प्रदेश एवं राजस्व को अपने हवाले किया । कूल्हा के शासनकाल में पुर्तगालियों ने बंगाल में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयत्न किया । इसके साथ ही पुर्तगालियों ने हुगली को अपना मुख्यालय बनाया और वहीं पर बस गये ।
उसके बाद गार्विया डी नौरोन्हा पुर्तगाली उपनिवेशों का गवर्नर बनकर भारत आया । उसने तुर्की के विरुद्ध भारत पर किये गये आक्रमण में अपनी सहायता प्रदान कर भारतीय शासकों की रक्षा की इसके बदले में उसने 1539 ई . में एक सन्धि के तहत दीव को अपने अधिकार में कर लिया इन राजनीतिक हस्तक्षेपों का एक स्वाभविक परिणाम यह भी हुआ कि वे कालीकट के राजा से , जिसकी समृद्धि सौदागरों पर काफी निर्भर थी , शत्रुता करने लगे । वे कालीकट के राजा के शत्रुओं से , जिसमें कोचीन का राजा भी शामिल था , सन्धियाँ एवं समझौता इत्यादि करने लगे धीरे – धीरे पुर्तगालियों ने भारत में अन्य अनेक महत्वपूर्ण उपनिवेश स्थापित कर लिये , जैसे दमन , सालसट , चौल , बम्बई , मद्रास तथा उसके निकट सैण्ट टोम ( मेलापुर ) तथा बंगाल में हुगली आदि । उन्होंने श्रीलंका के एक बड़े भाग पर भी अधिकार कर लिया ।
डच Dutch
डचों के भारत आने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य दक्षिण – पूर्व एशिया के मसाला बाजारों में सीधा प्रवेश करना था । डच लोग मूल रूप से हालैण्ड के मूल निवासी थे
भारत में ‘ डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की स्थापना 1602 ई . में की गयी थी । भारत में इससे पूर्व आने वाला सबसे पहला डच नागरिक कारनेलिस डेहस्तमान था ।
डचों ने पुर्तगालियों से संघर्ष करते – करते भारत के सभी महत्वपूर्ण मसाला उत्पादन के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया । 1605 ई . में पुर्तगालियों से डचों ने अंवायना अपने अधिकार में कर लिया तथा मसाला द्वीप ( इण्डोनेशिया ) में उन्हीं को हराकर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया । जकार्ता को जीतकर भी उन्होंने 1619 ई . में वहाँ के खण्डहरों पर वैटेविया नामक नगर बसाया । 1639 ई . में उन्होंने गोवा पर घेरा डाला और 1641 ई . में मलक्का पर अपना अधिकार कर लिया ।
इसके साथ ही 1658 ई . में सीलोन पर भी अधिकार कर लिया । डचों ने गुजरात में कोरोमण्डल समुद्र तट , बंगाल , बिहार , उड़ीसा में भी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित की ।
डचों ने अपनी महत्वपूर्ण कोठियाँ
- मुसलीपट्टम
- पुलीकट
- सूरत
- विमलीपट्टम
- चिनसुरा
- कासिम बाजार
- कड़ा बाजार
- पटना
- बालासोर
- नागपट्टम आदि स्थानों पर स्थापित की थीं ।
डच लोग अपना व्यापार मसालों , नील , कच्चे रेशम , शीशा , चावल एवं अफीम से करते थे ।
डचों का भारत में अन्तिम रूप से पतन 1759 में अंग्रेजों एवं डचों के मध्य हुए ‘ वेदरा के युद्ध ‘ से हुआ ।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी East India Company
16 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में इंग्लैण्ड की सामुद्रिक शक्ति का उत्कर्ष आरम्भ हुआ ।1580 ई . में फ्रांसिस ड्रेक नामक नाविक ने सामुद्रिक यात्रा की और दुनिया का चक्कर लगाया ।1588 ई . में इंग्लैण्ड के नाविकों ने स्पेन के प्रसिद्ध जंगी बेड़े आर्मेडा को नष्ट – भ्रष्ट कर दिया तथा इसी प्रकार की अन्य घटनाओं ने इंग्लैण्ड के व्यापारियों को पूर्व के साथ व्यापार के लिए एक कम्पनी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया ।
फ्रांसीसी French in India
इसका परिणाम यह हुआ कि गोलकुण्डा के सुल्तान और डचों ने फ्रांसीसियों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बना लिया , तब फ्रेंच कम्पनी को सेण्ट टीम डचों के हवाले करना पड़ा और डचों ने उसे गोलकुण्डा के सुल्तान के सुपुर्द कर दिया ।
1673 ई . में मछलीपट्टम की फ्रांसीसी कोठी के निदेशक फ्रांक्वा मार्टिन ने वलीकोडापुरम् के शासक शेर खाँ लोदी से एक कोठी के लिए भूमि प्राप्त कर ली । इस प्रकार पाण्डिचेरी की नींव पड़ी । फ्रांक्वा मार्टिन ने पाण्डिचेरी का तेजी से विकास किया ।
बंगाल में फ्रांसीसियों ने 1674 ई . में तत्कालीन मुगल सूबेदार शाइस्ता खाँ से कुछ भूमि प्राप्त कर ली और अच्छी प्रसिद्ध बस्ती चन्द्रनगर की नींव डाली । यूरोप में फ्रांस तथा हॉलैण्ड के बीच युद्ध छिड़ गया जिसमें इंग्लैण्ड ने हॉलैण्ड का साथ दिया । इससे भारत में फ्रांसीसियों की स्थिति को आघात पहुँचा । 1693 ई . में डचों ने पाण्डिचेरी पर अधिकार कर लिया । 1697 ई . में उन्होंने उसे फ्रांसीसियों को वापस लौटा दिया । फ्रांक्वा मार्टिन के नेतृत्व में पाण्डिचेरी ने उन्नति की और भारत में फ्रांसीसियों की सबसे महत्वपूर्ण बस्ती बन गयी । इसके बावजूद फ्रांसीसियों के व्यापार में गिरावट आती रही और अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में उन्हें अपनी बंटम , सूरत और मछलीपट्टम की कोठियाँ छोड़नी पड़ी । दिसम्बर 1706 ई . में फ्रांक्वा मार्टिन का देहान्त हो गया जिसके फलस्वरूप भारत में फ्रांस की शक्ति का और भी अधिक ह्रास हुआ ।
1720 ई . के बाद फ्रांसीसी कम्पनी की स्थिति में सुधार होने लगा । फ्रांसीसियों ने 1721 ई . में मॉरीशस पर अधिकार कर लिया और अगले दो वर्षों में मछलीपट्टम , कालीकट , माही और यमन भी उनके अधिकार में आ गये । 1739 ई . में उन्होंने कारीकल हस्तगत कर लिया । प्रारम्भ में फ्रांसीसियों का उद्देश्य केवल व्यापारिक था , किन्तु 1740 ई . के बाद उनके मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ जाग्रत होने लगीं । उनके गवर्नर डूप्ले ने भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की योजना बनाई ।
अंग्रेजों ने उसका विरोध किया , फलस्वरूप दोनों के बीच संघर्ष अनिवार्य हो गया ।
Related Posts:-