विश्व के मरूस्थल ( worlds Desert in hindi )

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स्थलखंड के शुष्क व अर्द्धशुष्क भाग हैं । ये मुख्यतः उपोष्ण उच्च दाब क्षेत्रों में जहाँ वायु उतरती है व तापीय प्रतिलोमन की स्थिति मिलती है । महाद्वीपीय अवस्थिति या तट से दूरी भी इसकी उत्पत्ति का कारण है , क्योंकि आंतरिक भागों में बढ़ने पर वर्षा की मात्रा में कमी आती है । ठंडी महासागरीय धाराएँ भी इनके निर्माण के उत्तरदायी कारक हैं । कालाहारी , पैटागोनिया व अटाकामा इसके उदाहरण हैं ।

मरूस्थल चट्टानी , पथरीला या रेतीला तीनों प्रकार के हो सकते हैं । सहाय का हमद मरूस्थल , अल्जीरिया के रेग एवं लीबिया व मिस्र के सेरिर मरूस्थल तथा सहारा क्षेत्र के एर्ग मरूल्बल  क्रमशः चट्टानी , पथरीले या रेतीले मरुस्थल के उदाहरण है ।

                                                   प्रमुख मरुस्थल व उनकी स्थिति

नाम स्थिति नाम स्थिति
सहारा ( लीबिया तथा नूबियन मरूस्थल ) उत्तरी अफ्रीका नामीब नामीबिया
बारबर्टन, सिम्पसन, गिब्सन,स्टुअर्ट-स्टोनी ग्रेट विक्टोरिया, ग्रेट सैंडी आस्ट्रेलिया काराकुम तुर्कमेनिस्तान
नाफूद, हमद, रब-अल-खाली सऊदी अरब थार मरूभूमि उ.प. भारत व पाकिस्तान
गोबी मंगोलिया व चीन सोमाली मरूभूमि सोमालिया
अटाकामा उत्तरी चिली कालाहारी बोत्सवाना
काइजिल कुम ज्वेकिस्तान दस्त-ए-लुत पूर्वी ईरान
दस्त-ए-कबीर दक्षिणी ईरान मोजावे या मोहावे सं.रा. अमेरिका
तकला मकान सीक्यांग प्रान्त ( चीन ) सेंचुरा, सिएरा नेवादा पैटांगोनिया अर्जेंटीना
सोनोरान सं.रा.अमेरिका और मेक्सिको

सहारा मरुस्थल(Sahara Desert in Hindi)

सहारा सबसे बड़ा मरुस्थल विश्व का विशालतम गर्म मरुस्‍थल है। सहारा नाम रेगिस्तान के लिए अरबी शब्द सहरा से लिया गया है जिसका अर्थ है मरुस्थल। यह अफ़्रीका के उत्तरी भाग में अटलांटिक महासागर से लाल सागर तक5600 किलोमीटर की लम्बाई तक सूडान के उत्तर तथा एटलस पर्वत के दक्षिण 1300 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। इसमे भूमध्य सागर के कुछ तटीय इलाके भी शामिल हैं।

क्षेत्रफल में यह यूरोप के लगभग बराबर एवं भारत के क्षेत्रफल के दूने से अधिक है। माली, मोरक्को, मुरितानिया, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, नाइजर, चाड, सूडान एवं मिस्र देशों में इस मरुस्थल का विस्तार है। दक्षिण मे इसकी सीमायें सहल से मिलती हैं जो एक अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय सवाना क्षेत्र है।
यह सहारा को बाकी अफ्रीका से अलग करता है।

सहारा एक निम्न मरुस्थलीय पठार है जिसकी औसत ऊँचाई 300 मीटर है। इस उष्णकटिबंधीय मरूभूमि का  इतिहास लगभग 30 लाख वर्ष पुराना है।

हवा के साथ बनते विशाल बालू के टीले एवं खड्ड इसकी सामान्य भू-प्रकृति बनाते हैं।

सहारा मरुस्थल के पश्चिम में विशेष रूप से मरिसिनिया क्षेत्र में बड़े-बड़े बालू के टीले पाये जाते हैं। कुछ रेत के टिब्बों की ऊंचाई 180 मीटर (600 फीट) तक पहुँच सकती है।
सहारा के मरुस्थल में कहीं-कहीं कुआँ, नदी, या झरना द्वारा सिंचाई की सुविधा के कारण हरे-भरे मरुद्यान पाये जाते हैं। कुफारा, टूयाट, वेडेले, टिनेककूक, एलजूफ सहारा के प्रमुख मरु-उद्यान हैं। कहीं-कहीं नदीयों की शुष्क घाटियाँ हैं जिन्हें वाडी कहते हैं। यहाँ खारी पानी की झीलें मिलती हैं।

सहारा मरुस्थल की जलवायु शुष्क एवं विषम है। यहाँ दैनिक तापान्तर तथा वार्षिक तापान्तर दोनों अधिक होते हैं। यहाँ दिन में कड़ी गर्मी तथा रात में कठोर सर्दी पड़ती है।  हाल के एक नए शोध से ज्ञात हुआ है कि अफ्रीका का सहारा क्षेत्र लगातार हरियाली घटते रहने के कारण लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व विश्व के सबसे बड़े मरुस्थल में बदल गया। अफ्रीका के उत्तरी क्षेत्र6000 वर्ष पूर्व हरियाली से भरे हुए थे। इसके अलावा वहां बहुत सी झीलें भी थीं। इस भौतिक बदलाव का विस्तृत ब्यौरा देने वाले अधिकांश प्रमाण भी अब नष्ट हो चुके हैं।

मई तथा सितंबर के महीनों में दोपहर में यहां उत्तरी एवं पूर्वोत्तर सूडान के क्षेत्रों में, खासकर राजधानी खार्तूम के निकटवर्ती क्षेत्रों में धूल भरी आंधियां चलती है। इनके कारण दिखाई देना भी बहुत कम हो जाता है। ये हबूब नाम की हवाएं तड़ित एवं झंझावात के साथ साथ भारी वर्षा लाती हैं।

थार मरुस्थल (Thar Desert in Hindi)

थार मरुस्थल भारत के उत्तरपश्चिम में तथा पाकिस्तान के दक्षिणपूर्व में स्थितहै। यह अधिकांश तो राजस्थान में स्थित है परन्तु कुछ भाग हरियाणा, पंजाब,गुजरात और पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में भी फैला है। अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार मरुस्थल स्थित है। यह मरुस्थल बालू के टिब्बों से ढँका हुआ एक तरंगित मैदान है।

थार मरुस्थल अद्भुत है। गर्मियों में यहां की रेत उबलती है। इस मरुभूमि में 52 डिग्री सेल्शियस तक तापमान रिकार्ड किया गया है। जबकि सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ की बालू रेत जो जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है। गरमियों में मरुस्थल की तेज गर्म हवाएं चलती है जिन्हें “लू” कहते हैं तथा रेत के टीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं और टीलों को नई आकृतियां प्रदान करती हैं। गर्मी ऋतु में यहां पर तेज आंधियां चलती है जो रेत के बड़े-बड़े टीलों को दूसरे स्थानों पर धकेल देती है जिससे यहां मरुस्थलीकरण की समस्या बढ़ती जाती है।

जन-जीवन

जन-जीवन के नाम पर मरुस्थल में मीलों दूर कोई-कोई गांव मिलता है। थार के मरुस्थल में अगर कोई शहर विकसित हुआ है तो वह शहर जोधपुर शहर है यहां हिंदू एवम मुसलमान धर्म के लोग ही निवास करते हैं प्रकृति की मार को सहन करते हुए भी यहां पर कुछ जातियां समृद्धि के चरम को छू रही है उदाहरण के लिए बिश्नोई समाज ।
इस समाज के लोगों ने यहां पर खूब तरक्की की है बिश्नोई समाज के लोग वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करते हुए पाए जाते हैं । थार के मरुस्थल में रहने वाले लोग वीर एवं साहसी होते हैं लोगों में देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी होती है पशुपालन यहां का मुख्य व्यवसाय है पशुओं में गाय बैल भैंस बकरी भेड़ घोड़े गधे इत्यादि जानवरों को पाला जाता है मुख्य रूप से यहाँ ऊंट पाले जाते है

मरू समारोह

लौहयुगीन वैदिक भारत में थार मरुस्थल की स्थिति (नारंगी रंग में)
राजस्थान में मरू समारोह (फरवरी में) – फरवरी में पूर्णमासी के दिन पड़ने वाला एक मनोहर समारोह है। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है।

प्रसिद्ध गैर व अग्नि नर्तक इस समारोह का मुख्य आकर्षण होते है। पगड़ी बांधने व मरू श्री की प्रतियोगिताएं समारोह के उत्साह को दुगना कर देती है। सम बालु के टीलों की यात्रा पर समापन होता है, वहां ऊंट की सवारी का आनंद उठा सकते हैं और पूर्णमासी की चांदनी रात में टीलों की सुरम्य पृष्ठभूमि में लोक कलाकारों का उत्कृष्ट कार्यक्रम होता है।

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