हर्यंक वंश ( HARYANK DYNESTY ) | THE RISE OF THE MAGADHA EMPIRE
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष | THE RISE OF THE MAGADHA EMPIRE | उत्कर्ष के कारण ( CAUSES OF THE RISE OF MAGADHA EMPIRE ) प्राचीन भारतीय इतिहास में मगध का विशेष स्थान है । प्राचीन काल में भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों की सत्ता थी ।
मगध के प्रतापी राजाओं ने इन राज्यों पर विजय प्राप्त कर भारत के एक बड़े भाग पर विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और इस प्रकार मगध के शासकों ने सर्वप्रथम अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को प्रदर्शित किया ।
मगध में मौर्य वंश की स्थापना से पूर्व भी अनेक शासकों ने अपने बाहुबल व वीरता से मगध साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया था ।
जिनमें-
- बृहद्रथ वंश ( BRIHDRATH DYNESTY )
- हर्यंक वंश ( HARYANK DYNESTY )
- शिशुनाग वंश (SHISHUNAG DYNASTY )
- नन्द वंश ( NANDA DYNASTY )
- मॉर्य वंश (MAURYA DYNASTY)
और आज हम बात करेंगे हर्यंक वंश ( HARYANK DYNESTY ) के बारे में
हर्यंक वंश ( HARYANK DYNESTY )
बिम्बिसार (544-492) BIMBISARA
बिम्बिसार के मगध – सिंहासन पर आरूढ़ होने के पश्चात् ही वास्तविक अर्थों में मगध साम्राज्य का उत्कर्ष प्रारम्भ हुआ ।
मगध राज बिम्बिसार एक सुयोग्य और शक्तिशाली शासक था । उसका सैन्यबल अमिट था और इसी कारण वह ‘ सुमंगल विलासिनी ‘ के अनुसार ‘ सैणिय ‘ ( श्रेणिक महती सेना वाला ) नाम से प्रसिद्ध हुआ । वह ‘ चक्रवर्ती ‘ के आदर्श से प्रेरित था । उसकी महत्वाकांक्षा अन्ततः सार्वभौम साम्राज्य की प्रतिस्थापना थी ।
अपने अभीष्ट की पूर्ति के लिए उसने नीति और शक्ति दोनों से काम लिया और मगध को साम्राज्य निर्माण के पथ पर अग्रसर कर दिया , जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्ततः मौर्यों के समय में मगध साम्राज्य ने लगभग सम्पूर्ण भारत के राष्ट्रीय राज्य का स्वरूप धारण कर लिया ।
बिम्बिसार का वंश | HARYANK DYANASTY IN HINDI
बिम्बिसार किस वंश से सम्बन्धित था , इस विषय में विद्वानों में मतभेद है । उसके वंश से सम्बन्धित दो प्रमुख मत हैं :
( i ) बिम्बिसार शिशुनाग वंश का था । इस मत को मानने वाले विद्वान अपने मत के समर्थन में पुराणों का उल्लेख करते हैं
( ii ) बिम्बिसार हर्यक कुल ( Haryanaka Dynasty ) का था । इस मत की पुष्टि बौद्ध साहित्य से होती है । अधिकांश विद्वान बिम्बिसार को हर्यक कुल का ही मानते हैं । तिथि– बिम्बिसार की तिथि के विषय में विद्वानों में मतभेद है । बौद्ध ग्रन्थ महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया था , किन्तु पुराण उसका शासनकाल 28 वर्षों तक का बताते हैं ।
डॉ . राधा कुमुद मुकर्जी ने बिम्बिसार की तिथि 544 ई . पू . से 492 ई . पू . निर्धारित की है जो कि सबसे तर्कसंगत प्रतीत होती है ।
डॉ . हेमचन्द्रराय चौधरी भी बिम्बिसार की तिथि 544 ई . पू . से 492 ई . पू . ही मानते हैं ।
वैवाहिक सम्बन्ध – बिम्बिसार 544 ई . पू . में जब मगध की राजगद्दी पर आसीन हुआ , तब उत्तर भारत में तीन अन्य शक्तिशाली वंश
- कोशल
- वत्स व
- अवन्ति में शासन कर रहे थे ।
अतः अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने तथा साम्राज्य विस्तार करने के लिए बिम्बिसार के लिए यह आवश्यक था कि वह कूटनीति का सहारा लेकर अपनी आकांक्षाओं को पूर्ण करे । अतः सर्वप्रथम उसने शक्तिशाली राजवंशों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया । उल्लेखनीय है कि लगभग एक हजार वर्षों के पश्चात् गुप्तवंशीय शासकों ने भी इसी नीति ( वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी स्थिति को प्रवल बनाना ) का प्रयोग किया था ।
- सर्वप्रथम बिम्बिसार ने कौशल के शक्तिशाली इक्ष्वाकुवंशीय शासक महाकोशल की पुत्री प्रसेनजित की वहिन कोशल देवी से विवाह किया । इस विवाह से जहाँ एक ओर विम्बिसार के शक्तिशाली कोशल राज्य के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित हुए , वहीं दहेज के रूप में उसे काशीग्राम भी प्राप्त हुआ ।
- बिम्बिसार ने तत्पश्चात् वैशाली के लिच्छवि राजा चेटक की पुत्री छलना ( चेल्लना ) से विवाह किया । यह लिच्छवियों का शक्तिशाली गणराज्य था । इस विवाह से उसे लिच्छवियों का समर्थन प्राप्त हो गया ।
- बिम्बिसार ने तीसरा विवाह मद्र देश ( पंजाब ) की राजकुमारी क्षेमा से किया । डॉ . आर . एस . त्रिपाठी ने बिम्बिसार के वैवाहिक सम्बन्धों के सामरिक महत्व पर टिप्पणी करते हुए लिखा है , ” इन विवाहों से न केवल बिम्बिसार का समकालीन राजकुलों पर प्रभाव विदित होता है वरन् यह भी सत्य है कि इन्हीं की पृष्ठभूमि पर मगध के प्रसार की अट्टालिका खड़ी हुई । ‘
अवन्ति से मधुर सम्बन्ध स्थापित
बिम्बिसार के शासनकाल के समय कोशल के समान अवन्ति भी शक्तिशाली राज्य था । कोशल से तो बिम्बिसार ने वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर मधुर सम्बन्ध बना लिए थे , किन्तु मगध के उत्कर्ष के लिए अवन्ति से भी मित्रता रखना बिम्बिसार के लिए आवश्यक था । बौद्ध स्रोतों से ज्ञात होता है कि बिम्बिसार का समकालीन अवन्ति शासक प्रद्योत अत्यन्त प्रचण्ड व क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति था । प्रद्योत भी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था । बिम्बिसार उसकी शक्ति को जानता था , अतः उसने मगध की सुरक्षा व साम्राज्य विस्तार को ध्यान में रखते हुए प्रद्योत से आजीवन मित्रता रखी ।
अंग विजय –
इस प्रकार मगध राज्य को सुरक्षित करने के पश्चात् बिम्बिसार ने साम्राज्य विस्तार की ओर ध्यान दिया । इसी उद्देश्य से उसने अंग राज्य पर आक्रमण किया । अंग मगध के पूर्व में चम्पा नदी के दूसरे तट पर स्थित था । चम्पेय जातक से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में अंग और मगध में शक्ति के लिए । निरन्तर संघर्ष होता था , जिसमें विजयलक्ष्मी कभी एक का वरण करती तो कभी दूसरे का ।
दीपवंश से ज्ञात होता है कि बिम्बिसार के पिता ने अंग को अधीन करने का प्रयत्न किया , लेकिन वह अंग – शासक ब्रह्मदत्त से पराजित हो गया । अन्ततः बिम्बिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत्त को पराजित करके अंग को मगध साम्राज्य में विलीन कर दिया ।
साम्राज्य विस्तार | HARYANK DYANASTY IN HINDI
विम्बिसार ने एक ओर वैवाहिक सम्बन्ध के द्वारा काशी को और दूसरी ओर विजय द्वारा अंग को मगध में विलीन कर , मगध को साम्राज्य निर्माण के पथ पर अग्रसर कर दिया । डॉ . आर . एस . त्रिपाठी का मानना है कि अनेक अन्य प्रदेश भी बिम्बिसार के शासनकाल में ही मगध साम्राज्य के अधीन हुए । बिम्बिसार के विशाल साम्राज्य की राजधानी गिरिब्रज थी ।
ह्वेनसांग ने लिखा है कि गिरिव्रज में बहुधा अग्निकांड की घटनाएँ होती रहती थीं, अतः बिम्बिसार ने एक नवीन नगर की स्थापना की जिसे राजगृह कहा गया ।
विपरीत फाह्यान राजगृह की स्थापना का श्रेय अजातशत्रु को देता है ।
शासन प्रबन्ध
बिम्बिसार एक पराक्रमी योद्धा ही नहीं वरन् एक कुशल प्रशासक भी था । बिम्बिसार ने ही सर्वप्रथम एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना करने पर जोर दिया था । डॉ . रायचौधरी ने लिखा है कि बिम्बिसार की सफलता का एक प्रमुख कारण राज्य के प्रशासन का कुशल एवं सशक्त होना था । बिम्बिसार अपने अधिकारियों के प्रति अत्यन्त सख्त व्यवहार करता था । गलत परामर्श देने वाले अधिकारियों को दण्डित किया जाता था व जिस अधिकारी की सलाह उसे पसन्द आ जाती उसे पुरस्कृत किया जाता था । बिम्बिसार की इसी नीति के कारण वस्सकार व सुनीथ जैसे अधिकारियों को उच्च स्थान प्राप्त हो सका था । राज्य के उच्च अधिकारी अनेक वर्गों में विभाजित थे मगध साम्राज्य का उत्कर्ष
- सब्बत्थक ( सामान्य मामलों की देखभाल करने वाले ) ,
- सेनानायक महामत्त व वोहारिक महामत्त ( न्यायाधीश ) ।
- अपराधियों को कठोर दण्ड देने का प्रावधान था ।
बिम्बिसार ने यातायात व संचार व्यवस्था को भी विकसित करने का प्रयत्न किया था ।
- बिम्बिसार विद्वानों का आश्रयदाता भी था ।
- उसके राजदरबार में जीवक जैसे राजवैद्य का होना यह प्रमाणित करता है कि उसके राज्य में औषधि विज्ञान की उपेक्षा नहीं की जाती थी ।
- धर्म सहिष्णुता बिम्बिसार एक धर्म सहिष्णु शासक था ।
- यद्यपि वह स्वयं महात्मा बुद्ध का अनुयायी था किन्तु अन्य धर्मों के प्रति भी वह उदार था ।
- उसने कूटदन्त नामक ब्राह्मण को खानमुक्त गाँव व ब्राह्मण सोनदण्ड को चम्पा नगर की आय दान के रूप में दी थी ।
- जैन स्रोतों से ज्ञात होता है कि वह स्वामी महावीर से मिलने के लिए अपनी रानियों व स्वजनों के साथ गया था । अतः स्पष्ट है कि वह धर्म सहिष्णु शासक था ।
मृत्यु –
- जैन ग्रन्थों के अनुसार राज्य प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा के कारण उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे कारागार में डाल दिया , किन्तु बाद में अपनी माता छलना द्वारा समझाये जाने पर वह बिम्बिसार को मुक्त करने कारागार पहुंचा । बिम्बिसार ने यह समझते हुए कि अजातशत्रु उसे कष्ट पहुंचाने आ रहा है , आत्महत्या करली । इस प्रकार जैन ग्रन्थों के अनुसार बिम्बिसार ने आत्महत्या की थी ।
- इसके विपरीत बौद्ध ग्रन्थों में अजातशत्रु को ‘ पितृहन्ता ‘ कहा गया है । बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक के अनुसार महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त के द्वारा भड़काये जाने पर अजातशत्रु ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया व बन्दीगृह में भूख – प्यास से तड़प – तड़पकर बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी । इस प्रकार 492 ई . पू . में बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी, किन्तु मृत्यु से पूर्व वह मगध साम्राज्य को विकास की राह पर अग्रसर करने में सफल रहा था ।
यही कारण है कि उसे मगध साम्राज्य के उत्कर्ष का वास्तविक संस्थापक माना जाता है ।
अजातशत्रु ( 492 ई . पू . से 462 ई. पू . ) ( AJATASATRU )
साम्राज्य विस्तार-
- कोशल से युद्ध – अजातशत्रु के कोशल राज्य से युद्ध के विषय में बौद्ध ग्रन्थों से प्रकाश पड़ता है कोशल – नरेश ने अपनी पुत्री कोशल देवी का विम्बिसार से विवाह किया था तथा दहेज के रूप में काशीग्राम बिम्बिसार को दे दिया था । अजातशत्रु द्वारा बिम्बिसार की हत्या करने के पश्चात् दुःखी होकर कुछ समय पश्चात् ही कोशल देवी की भी मृत्यु हो गयी । उस समय कोशल में प्रसेनजित शासन कर रहा था जो कोशल देवी का भाई था । बहिन व बहनोई की मृत्यु से क्षुब्ध होकर प्रसेनजित ने काशीग्राम को पुनः अपने अधिकार में कर लिया । अतः अजातशत्रु ने कोशल राज्य पर आक्रमण कर दिया । दोनों राज्यों के मध्य दीर्घकाल तक युद्ध चला । प्रारम्भ में अजातशत्रु को ही सफलता मिली , किन्तु अन्त में प्रसेनजित ने अजातशत्रु को पराजित कर बन्दी बना लिया । प्रसेनजित ने अपने भांजे अजातशत्रु को पराजित करने के बाद उसकी हत्या नहीं की तथा सन्धि करके अपनी पुत्री बांजिरा का विवाह उससे कर दिया । प्रसेनजित ने काशीग्राम पुनः अजातशत्रु को ही दे दिया । इस प्रकार प्रसेनजित के प्रयास से कोशल एवं मगध राज्यों के सम्बन्ध पुनः पूर्ववत मधुर हो गये ।
- लिच्छवियों पर विजय – कोशल राज्य से मित्रता स्थापित करने के पश्चात् अजातशत्रु ने उत्तर में वैशाली के शक्तिशाली वज्जिसंघ से युद्ध किया । वैशाली में उस समय लिच्छवि वंश शासन कर रहा था जो कि शक्तिशाली राजवंश था । अजातशत्रु द्वारा वैशाली पर आक्रमण किये जाने के लिए जैन साहित्य व बौद्ध साहित्य अलग – अलग कारण बताते हैं । जैन साहित्य के अनुसार बिम्बिसार ने अपनी पत्नी छलना ( वैशाली ) की राजकुमारी ) से उत्पन्न अपने दो पुत्रों हल्ल और बेहल्ल को सेचनक नामक हाथी व 18 लड़ियों की एक बहुमूल्य माला उपहार में दी थी । शासक बनने के बाद अजातशत्रु ने अपनी पत्नी पद्मावती के द्वारा प्रेरित किये जाने पर हल्ल और बेहल्ल से उन उपहारों को वापस माँगा । हल्ल और बेहल्ल उपहारों सहित भागकर अपने नाना चेटक के पास वैशाली पहुंच गये । अजातशत्रु ने चेटक से हल्ल और बेहल्ल को लौटाने का अनुरोध किया , किन्तु चेटक ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया , अतः अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया । बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार वैशाली और अजातशत्रु के मध्य युद्ध का कारण दोनों राज्यों के मध्य वहने वाली गंगा के किनारे स्थित रत्नों की खान था । इस खान पर दोनों ही राज्यों का अधिकार था , किन्तु कुछ वर्षों से वैशाली राज्य ही इस खान का प्रयोग कर रहा था । अतः अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण की घोषणा कर दी । अजातशत्रु द्वारा वैशाली पर आक्रमण का तात्कालिक कारण कुछ भी रहा हो , किन्तु बौद्ध साहित्य से यह स्पष्ट है कि इसका वास्तविक उद्देश्य मगध साम्राज्य का विस्तार करना था । वैशाली गणराज्य अत्यधिक शक्तिशाली था । उसको पराजित करना आसान न था । अतः अजातशत्रु ने अपने योग्य मन्त्रियों सुनीध व वस्सकार को फूट डालने के लिए भेजा । तब अजातशत्रु ने घोषणा की , “ मैं इस वज्जि – संघ ( वैशाली गणराज्य ) को समूल नष्ट कर दूंगा , चाहे वे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों मैं उनका सर्वनाश करूँगा । 2 अजातशत्रु व वैशाली के मध्य भीषण युद्ध हुआ । जैन गाथाओं से पता चलता है कि यह युद्ध 16 वर्षों तक चला था , किन्तु अन्त में अजातशत्रु को विजय प्राप्त हुई । अजातशत्रु ने वैशाली के विरुद्ध इस युद्ध में दो नवीन युद्धास्त्रों का प्रयोग किया था । ‘ रथमूसल ‘ रथ के ने समान एक यन्त्र होता था जो चलते समय अपने मूसलों से शत्रुओं का संहार करता था । प्रो . हेमचन्द्र राय रथमूसल की तुलना आधुनिक टैंकों से की है । ‘ ‘ महाशिलाकण्टक ‘ अजातशत्रु द्वारा प्रयोग किया गया दूसरा यन्त्र था । इससे शत्रु सेना पर बड़े – बड़े पत्थर फेंके जाते थे ।
- अवन्ति से सम्बन्ध – अजातशत्रु की इस सफलता को अवन्ति का शासक प्रद्योत सहन न कर सका । प्रद्योत स्वयं भी एक योग्य एवं महत्वाकांक्षी शासक था । अतः प्रद्योत अजातशत्रु पर आक्रमण करने के लिए प्रयत्नशील हो उठा । मज्झिमनिकाय से ज्ञात होता है कि अजातशत्रु ने अवन्ति के राजा प्रद्योत के आक्रमण की आशंका से अपनी राजधानी की किलेबन्दी करवायी थी , किन्तु किसी भी स्रोत से यह जानकारी नहीं मिलती कि प्रद्योत ने मगध पर आक्रमण किया था अथवा नहीं । ऐसा प्रतीत होता है कि अजातशत्रु की शक्ति को देखकर अवन्तिराज प्रद्योत मगध पर आक्रमण करने का साहस न कर सका । इस प्रकार अजातशत्रु ने अपनी साम्राज्यवादी नीति के द्वारा मगध साम्राज्य का विस्तार किया । उसने की स्थापना के स्वप्न को साकार करने का प्रयास किया । अपने शासनकाल में मगध को वास्तविक शक्ति प्रदान की तथा अपने पिता विम्बिसार के विशाल मगध साम्राज्य क्योंकि है कि
अजातशत्रु का धर्म – Ajatshatru’s Religion
अजातशत्रु के उत्तराधिकारी ( 462 ई . पू . से 414 ई . पू . ) ( SUCCESSORS OF AJATSATRU )
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष
महत्वपूर्ण प्रश्न | Important Question related to Haryank Dynasty
- मौर्यों से पूर्व मगध साम्राज्य के उत्कर्ष का वर्णन कीजिए ।
- बिम्बिसार व अजातशत्रु के शासनकाल में मगध साम्राज्य के विकास का वर्णन कीजिए ।
- अजातशत्रु की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए ।
- HARYANK DYANASTY IN HINDI
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