घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक|GHARELOO PRANALIGAT MAHATVAPOORN BANKS

भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) ने

  • भारतीय स्टेट बैंक, 
  • ICICI बैंक औ
  • HDFC बैंक को ‘ घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों

( D – SIBS ) के रूप में बनाए रखा है । प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( SIBS ) – कुछ बैंक

  1. अपने आकार ,
  2. क्रॉस – ज्यूरिडिक्शनल गतिविधियों,
  3. कार्यान्वयन संबंधी जटिलता की कमी,
  4. प्रतिस्थापन और
  5. परस्पर जुड़ाव के कारण प्रणालीगत रूप से काफी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं । –

D-SIBs को बैंकों का ही एक रूप माना जाता है जो इस अवधारणा ‘ टू बिग टू फेल ‘ ( Too Big To Fail – TBTF ) का समर्थन करते हैं ।

ये बैंक अपनी विशेषताओं के परिणामस्वरूप इतने महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं कि आसानी से विफल नहीं हो सकते हैं । TBTF की यह धारणा संकट के समय इन बैंकों के लिये सरकारी सहयोग की उम्मीद उत्पन्न करती है ।

  1. प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( SIBs ) प्रणालीगत जोखिमों और उनके द्वारा उत्पन्न नैतिक जोखिम से निपटने के लिये अतिरिक्त नीतिगत उपायों के अधीन होते हैं यानी संकट की स्थिति में ये बैंक अतिरिक्त नीतिगत उपायों को अपना सकते हैं ।
  2.  प्रणालीगत जोखिम को किसी कंपनी , उद्योग , वित्तीय संस्थान या संपूर्ण अर्थव्यवस्था की विफलता या विफलता से जुड़े जोखिम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
  3. नैतिक जोखिम एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक पक्ष यह मानकर जोखिमपूर्ण घटना में शामिल होता है कि वह जोखिम से सुरक्षित है और जोखिम लागत किसी दूसरे पक्ष द्वारा वहन की जाएगी ।
  4.  इन बैंकों की अव्यवस्थित विफलता के कारण बैंकिंग व्यवस्था द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली आवश्यक सेवाएँ भी बाधित हो सकती हैं जिससे इनकी संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।

 पृष्ठभूमि – BACKGROUND

वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( G – SIBS ) :

वित्तीय स्थिरता बोर्ड ( FSB ) द्वारा बैंकिग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति ( BCBS ) और अन्य राष्ट्रीय प्राधिकरणों से परामर्श के बाद वर्ष 2011 से वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( G – SIBs ) की पहचान की जा रही है ।

  • वित्तीय स्थिरता बोर्ड ( FSB ) एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली के बारे में सिफारिशें करता है । इसकी स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी ।
  • भारत इस अंतर्राष्ट्रीय निकाय का सदस्य है । 
  • बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति ( BCBS ) द्वारा G – SIBS के आकलन और पहचान करने के लिये कार्यप्रणाली अपनाई जाती है ।
  • BCBS वैश्विक स्तर पर बैंकों का विवेकपूर्ण नियमन करती है ।
  • RBI इसका सदस्य है ।

वैश्विक – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्ता ( G – SIIs ) :

  1. वित्तीय स्थिरता बोर्ड ( FSB ) ,
  2. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस सुपरवाइजर्स ( IAIS ) और अन्य राष्ट्रीय प्राधिकरणों के परामर्श से वर्ष 2013 से
  3. वैश्विक – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्ताओं ( G – SIIs ) की पहचान कर रहा है ।
  4. वर्ष 1994 में स्थापित IAIS 200 से अधिक बीमा पर्यवेक्षकों और नियामकों का एक स्वैच्छिक सदस्यता संगठन है ।
  5. भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण ( IRDAI ) तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण ( IFSCRA ) इसके ( IAIS घरेलू – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( D – SIBs ) –
  6. बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति ( BCBS ) ने अक्तूबर 2012 में D – SIBs से संबंधित अपनी रूपरेखा को अंतिम रूप दिया था ।
  7. D – SIBs फ्रेमवर्क इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि बैंकों की विफलता का प्रभाव घरेलू अर्थव्यवस्था पर न पड़े । .
  8. G – SIBS फ्रेमवर्क के विपरीत D – SIBS फ्रेमवर्क राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा किये गए मूल्यांकन पर आधारित होता है । –
  9. RBI ने वर्ष 2014 में D – SIBs से संबंधित रूपरेखा जारी की थी । D – SIBs की रूपरेखा के मुताबिक , रिजर्व बैंक वर्ष 2015 से शुरू होने वाले घरेलू – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( D – SIBs ) के रूप में नामित बैंकों का खुलासा करता है , 
  10. और इन बैंकों को उनके प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण स्कोर ( SISs ) के आधार पर उपयुक्त श्रेणी में रखता है ।
  11. मूल्यांकन के लिये जिन संकेतकों का उपयोग किया जाता है उनमें
  • बैंक का आकार,
  • अंतर्सयोजनात्मकता,
  • प्रतिस्थापन और जटिलता आदि शामिल हैं ।

आरोही क्रम में उनके प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण अंकों के आधार पर बैंकों को 4 विभिन्न समूहों में रखा जाता है ।

घरेलू -प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों ( D – SIBS ) से अपेक्षा की जाती है कि वे ‘ जोखिम भारित संपत्तियों ‘ ( RWAs ) के 0.20 % से 0.80 % के बीच अतिरिक्त . सामान्य इक्विटी टीयर 1 ( CETI ) पूंजी आवश्यकता को बनाए रखें ।

राज्यों CET1 , पूंजी की वह मात्रा होती है , जिसकी उपस्थिति में किसी भी जोखिम का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है । यह एक पूंजीगत उपाय है , जिसे वर्ष 2014 में वैश्विक स्तर पर एक सुरक्षात्मक साधन प्रस्तुत किया गया था ताकि अर्थव्यवस्था को वित्तीय संकट के रूप में से बचाया जा सके । –

यदि भारत में किसी विदेशी बैंक की शाखा एक वैश्विक – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक ( G – SIBs ) के रूप में स्थित है तो उसे भारत में उसके ‘ जोखिम भारित संपत्तियों ‘ ( RWAs ) के अनुपात में G – SIBs के रूप में अतिरिक्त CET1 कैपिटल सरचार्ज को बनाए रखना होगा । 

लागू घरेलू -प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्ता ( D – SII ) . भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण ( IRDAI ) द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये भारतीय जीवन बीमा निगम ( LIC ) , जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को घरेलू – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्ताओं के रूप में पहचाना गया है । –

  • ये बड़े आकार ,
  • बाज़ार महत्त्व और घरेलू तथा वैश्विक परस्पर संबंध वाले ऐसे बीमाकर्ता हैं ,
  • जिनकी विफलता के कारण घरेलू वित्तीय प्रणाली के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है । – I
  • RDAI द्वारा मार्च 2019 में IL & FS संकट , जिसकी विफलता के कारण वित्तीय बाजारों में व्यापक पैमाने पर तरलता संकट पैदा हो जा रही है ।
  • के बाद बीमा कारोबार में ऐसी कंपनियों की पहचान की – इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस सुपरवाइजर्स ( IALS ) ने सभी सदस्य देशों को घरेलू – प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्ताओं से संबंधित एक नियामक ढाँचा तैयार करने को कहा है ।

तो दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो हमें कमेंट करके जरुर बतायें , और इसे शेयर भी जरुर करें।

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