भारत निर्वाचन आयोग – Election Commission of India
स्वतंत्र चुनाव आयोग क्या है? | What Is Election Commission of India?
निर्वाचन आयोग एक स्थायी व स्वतंत्र निकाय है। इसका गठन भारत के संविधान द्वारा देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के उद्देश्य से किया गया था। संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार संसद राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति व उप-राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के लिए संचालन, निर्देशन व नियंत्रण की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। अत: चुनाव आयोग एक अखिल भारतीय संस्था है क्योंकि यह केंद्र व राज्य सरकारों दोनों के लिए समान है। Election Commission of India
उल्लेखनीय है कि राज्यों में होने वाले पंचायतों व चुनावों से चुनाव आयोग का कोई संबंध नहीं है। इसके लिए भारत के संविधान में अलग राज्य निर्वाचन आयोगों की व्यवस्था की गई है।
संरचना | STRUCTURE OF ELLECTION COMMISION OF INDIA
संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित उपबंध हैं:
1. निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों से मिलकर बना होता है।
2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाए।
3. जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है, तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में काम करेगा।
4. राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सलाह पर प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकता है, जिसे वह निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए आवश्यक समझे।
5. निर्वाचन आयुक्तों व प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा की शर्तें च पदावधि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
1950 से 15 अक्टूबर, 1989 तक निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय निकाय के रूप में कार्य करता था, जिसमें केवल मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता था। मत देने की न्यूनतम आयु 21 से 18 वर्ष करने के बाद 16 अक्तूबर, 1989 को राष्ट्रपति ने आयोग के काम के भार को कम करने के लिए दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त किया। इसके बाद, आयोग बहुसदस्यीय संस्था के रूप में कार्य करने लगा, जिसमें तीन निर्वाचन आयुक्त हैं। हालांकि 1990 में दो निर्वाचन आयुक्तों के पद को समाप्त कर दिया गया और स्थिति एक बार पहले की तरह हो गई। एक बार फिर अक्तूबर 1993 में दो निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त किया गया। इसके बाद से अब तक आयोग बहुसदस्यीय संस्था के तौर पर काम कर रहा है. जिसमें तीन निर्वाचन आयुक्त हैं।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त व दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के पास समान शक्तियां होती हैं तथा उनके वेतन, भत्ते व दूसरे अनुलाभ भी एक समान होते हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होते हैं। ऐसी स्थिति में जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच विचार में मतभेद होता है तो आयोग बहुमत के आधार पर निर्णय करता है।
उनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो पहले हो, तक होता है। वे किसी भी समय त्याग-पत्र दे सकते हैं या उन्हें कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व भी हटाया जा सकता है।
स्वतंत्रता | FREEDOM OF Election Commission of India
1. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को अपनी निर्धारित पदावधि में काम करने की सुरक्षा है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से व उन्हीं आधारों पर ही हटाया जा सकता है, जिस रीति व आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाता है, अन्यथा नहीं। दूसरे शब्दों में, उन्हें दुर्व्यवहार या असक्षमता के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत संकल्प पारित करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। अतः वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर नहीं होता है, हालांकि उन्हें राष्ट्रपति ही नियुक्त करते हैं।
2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए गैर-लाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
3. अन्य निर्वाचन आयुक्त या प्रादेशिक आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
1. सविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्यों की अर्हता (विधिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक या न्यायिक) संविधान में निर्धारित नहीं की गई है।
2. संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों की पदावधि कितनी है। 13. संविधान में सेवानिवृत्ति के बाद निर्वाचन आयुक्तों को सरकार द्वारा अन्य दूसरी नियुक्तियों पर रोक नहीं लगाई गई है।
शक्ति और कार्य | Power of Election Commission of India
चुनाव आयोग के क्या कार्य हैं?
संसद, राज्य के विधानमंडल, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के संदर्भ में चुनाव आयोग की शक्ति व कार्यों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:
विस्तार में शक्ति व कार्य इस प्रकार हैं:
1. संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर समस्त भारत के निर्वाचन क्षेत्रों के भू भाग का निर्धारण करना।
2. समय-समय पर निर्वाचक नामावली तैयार करना और सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करना।
3. निर्वाचन की तिथि और समय सारणी निर्धारित करना एवं नामांकन पत्रों का परीक्षण करना।
4. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना एवं उन्हें निर्वाचन चिन्ह आवंटित करना।
5. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और चुनाव चिन्ह देने के मामले में हुए विवाद के समाधान के लिए न्यायालय की तरह काम करना।
6. निर्वाचन व्यवस्था से संबंधित विवाद की जांच के लिए अधिकारी नियुक्त करना।
7. निर्वाचन के समय दलों व उम्मीदवारों के लिए आचार स निर्मित करना।
8. निर्वाचन के समय राजनीतिक दलों की नीतियों के प्रचार के लिए रेडियो और टी.वी. कार्यक्रम सूची निर्मित करना।
9. समद सदस्यों की निरर्हता से संबंधित मामलों पर राष्ट्रपति को मलाह देना।
10. विधान परिषद के सदस्यों को निरहता से संबंधित संसला पर राज्यपाल को परामर्श देना।
11. रिंगिंग, मतदान केंद्र लूटना, हिसा व अन्य अनियमितता आ के आधार पर निर्वाचन रद्द करना।
12. निर्वाचन कराने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता के बार में राष्ट्रपति या राज्यपाल से आग्रह करना।
13. समस्त भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनावी तंत्र का पर्यवेक्षण करना।
14. राष्ट्रपति को सलाह देना कि राष्ट्रपति शासन वाले राज्य में एक वर्ष समाप्त होने के पश्चात् निर्वाचन कराए जाएं या नहीं।
15. निर्वाचन के मद्देनजर राजनीतिक दलों को पंजीकृत करना तथा निर्वाचन में प्रदर्शनों के आधार पर उसे राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय दल का दर्जा देना
निर्वाचन आयोग की सहायता उप निर्वाचन आयुक्त करते है वं सिविल सेवा से लिए जाते हैं और आयोग द्वारा उन्हें कार्यकाल व्यवस्था के आधार पर लिया जाता है। उन्हें आयोग के सचिवालय में कार्यरत सचिवों, संयुक्त सचिवों, उप-सचिवों व अवर सचिव द्वारा सहायता मिलती है।
राज्य स्तर पर राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग की सहायता मुख्य निर्वाचन अधिकारी करते हैं, जिनकी नियुक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त राज्य सरकारों की सलाह पर करता है। इसके नीचे जिला स्तर पर कलेक्टर, जिला निर्वाचन अधिकारी होता है। वह जिले में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचन अधिकारी व प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए पीठासोन अधिकारी नियुक्त करता है।
दृष्टि, लक्ष्य और सिद्धांत | Aim Of Election Commission of India
दृष्टि: भारत का चुनाव आयोग श्रेष्ठता का एक संस्थान बनना चाहता है। ऐसा वह भारत तथा विश्व में सक्रिय क्रियाशीलता, भागीदारी तथा दुचावी लोकतंत्र को गहराई और मजबूती प्रदान करके कर रहा है।
लक्ष्य: भारत का चुनाव आयोग स्वतंत्रता स्वायतता तथा अखंडता की बनाए रखता है। यह (stakeholders) की उपलब्धता समाहितता तथा नैतिक भागीदारी को सुनिश्चित करता है। यह स्वतंत्र दोषयुक्त तथा पारदर्शी चुनाव को संपन्न कराने के लिए उच्चतम पेशेवर मानदंडों का पालन करता है ताकि सरकार एवं चुनावी लोकतंत्र में विश्वास मजबूत हो।
निवेशक सिद्धांतः आयोग ने इसके लिए निदेशक सिद्धांत बनाए हैं जो सही प्रशासन के लिए जरूरी हैं:
4. चुनाव प्रक्रिया के हित में राजनीतिक दलों तथा (stakeholders) की भागदारी करवाना।
5. निर्वाचन प्रक्रिया के बारे में स्टेकहोल्डरों, जैसे-मतदाता, राजनीतिक दल, चुनाव अधिकारी, उम्मीदवार एवं सामान्य जनता; में जागरूकता का प्रसार करना और देश की चुनाव व्यवस्था में विश्वास और भरोसा बढ़ाना तथा मजबूत करना।
6. चुनावी सेवाओं के प्रभावकारी तथा पेशेवर निष्पादन के लिए मानव संसाधन विकसित करना।
7. चुनावी प्रक्रिया के आसान निर्वाहन के लिए श्रेष्ठ संरचना तैयार करना।
8. चुनावी प्रक्रिया के सभी क्षेत्रों के सुधार के लिए तकनीकी अपनाना।
9. आदर्श तथा लक्ष्य की श्रेष्ठता की पूर्ण प्राप्ति के लिए नवाचारी प्रक्रियाओं को अपनाने का प्रयास करना।
10. देश की चुनावी व्यवस्था में लोगों के विश्वास और भरोसे को बनाए रखने तथा मजबूती प्रदान करने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाना।
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