महादेव गोविन्द रानाडे के आर्थिक विचार MAHADEV GOVIND RANADE KE ARTHIK VICHAR
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Justice Mahadev Govind Ranade का जन्म 18 जनवरी , 1842 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था । सन् 1884 में इन्हें कोल्हापुर रियासत में न्यायाधीश नियुक्त किया गया । वे एक प्रसिद्ध वकील , समाज – सुधारक , अर्थशास्त्री , राष्ट्रप्रेमी एवं राजनीतिवेत्ता थे ।
Mahadev Govind Ranade In Hindi आपने देश के राजनैतिक आन्दोलन में बढ़ – चढ़कर भाग लिया था तथा भारतीय आर्थिक दशाओं का गहन अध्ययन किया था ।
रानाडे के आर्थिक विचार ( Economic Ideas of Ranade )
अध्ययन प्रणाली –
अर्थशास्त्र : मानव कल्याण का शास्त्र –
भारतीय अर्थशास्त्र के जनक
संरक्षण नीति की अनिवार्यता –
अर्थशास्त्र एवं राजनीति की पृथकता –
रानाडे अर्थशास्त्र एवं राजनीति को एक साथ मिश्रित करने के विरोधी थे । उनका कहना था कि दोनों समस्याएँ पूर्णतः पृथक् हैं तथा राजनैतिक लोगों को अर्थशास्त्र एवं इसके अध्ययन से अलग होना चाहिए । उनसे पूर्व के अर्थशास्त्री आर.सी. दत्त एवं दादाभाई नौरोजी के आर्थिक विचार राजनीति से प्रेरित थे , जिनका रानाडे ने समर्थन नहीं किया ।
आर्थिक विकास की पृथक् अवधारणा –
यद्यपि रानाडे आर्थिक विकास को देश के लिए आवश्यक मानते थे परन्तु उनका मत था कि आर्थिक विकास की अवधारणा पृथक् है एवं आर्थिक विकास एक पेचीदा विषय है एवं वह कई अन्तर्सम्बन्धित कारणों पर निर्भर करता है । आर्थिक विकास देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं उसके विदोहन के स्वरूप पर निर्भर करता है तथा प्रत्येक देश को स्वयं को देखते हुए आर्थिक विकास के मानक तय करने चाहिए । वे नियोजित आर्थिक नीति के समर्थक थे क्योंकि उनके विचारों का मूल आधार मानव का अधिकतम कल्याण था ।
निर्धनता
रानाडे ने भारत में गरीबी देखी थी तथा गरीबी में वृद्धि के लिए वे अंग्रेज सरकार को दोषी मानते थे । उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी नीतियों के कारण भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लघु उद्योग अत्यन्त निम्न दशा को प्राप्त हो गये हैं । उन्होंने कहा कि भारतीय निर्धनता को दूर करने के लिए कृषि , उद्योग एवं वाणिज्य का सन्तुलित विकास किया जाना अत्यन्त आवश्यक है । वे कृषि यन्त्रीकरण को अच्छा मानते थे तथा कृषि क्षेत्र पर कम दबाव दिए जाने के समर्थक थे ।
ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोधी
रानाडे ने ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों की प्रखर आल की तथा विरोध किया । उन्होंने कहा कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों की दयनीय दशा की जिम्मेवार ब्रिटिश हुकूमत है । अपने हितों को साधने के लिए उन्होंने लघु उद्योगों के पतन की साजिश की है ।
भारत में निर्धनता के कारण | REASON OF POVERTY IN INDIA HINDI
रानाडे ने भारत में निर्धनता के निम्नलिखित प्रमुख कारण बताये थे
- रानाडे ने बताया कि भारत उस समय केवल कृषि पर निर्भर था और यह स्थिति ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीति के कारण उत्पन्न हुई थी । साथ ही सिंचाई व्यवस्था शोचनीय हो गयी थी ।
- अंग्रेजों की स्वार्थपूर्ण व्यापार नीति भी मानवीय निर्धनता का प्रमुख कारण रही है । अंग्रेजों ने भारत के हितों की उपेक्षा कर भारत में केवल उन्हीं वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जिनसे ब्रिटेन के उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता रहे जिसके फलस्वरूप भी भारत के उद्योग – धन्धे पनप नहीं सके ।
- भारत के कुटीर उद्योग – धन्धों का पतन भी निर्धनता का प्रमुख कारण था । इन उद्योगों के पतन के लिए अंग्रेजों की नीति एवं विदेशी प्रतियोगिता प्रमुख रूप से उत्तरदायी थीं ।
- रानाडे ने भारत में निर्धनता का एक कारण दोषपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को माना है जिसके परिणामस्वरूप साख का पूर्ण विकास न हो सका और नवीन उद्योगों के लिए पूँजी का समुचित प्रबन्ध नहीं हो पाया जबकि बड़े उद्योगों के लिए पर्याप्त पूँजी का उपलब्ध होना आवश्यक है ।
- पाँचवाँ प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा लगाई गई दोषपूर्ण लगान नीति थी जिसके द्वारा कृषक वर्ग का शोषण किया जाता था ।
रानाडे द्वारा प्रस्तुत निर्धनता को दूर करने के उपाय रानाडे ने कहा था कि भारत की गरीबी को दूर करने के लिए कृषि , उद्योग तथा वाणिज्य में सन्तुलन स्थापित किया जाना आवश्यक है । उन्होंने कृषि के यन्त्रीकरण तथा कृषि में लगी जनसंख्या को कम करने पर बल दिया । उन्होंने कहा कि किसानों को विशुद्ध लाभ का कम से – कम 50 प्रतिशत मिलना चाहिए ।
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