Sooryagrahan and Chandragrahan in hindi : सूर्यग्रहण (Surya Grahan): सूर्यग्रहण दो प्रकार के होते हैं – पूर्ण सूर्यग्रहण (पूर्ण सूर्यग्रहण) और आंशिक सूर्य ग्रहण (अर्ध सूर्यग्रहण)। पूर्ण सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सूर्य के सामने पूरी तरह से आ जाता है और सूर्य की रोशनी को बंद कर देता है, जबकी आंशिक सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सिर्फ सूर्य की एक हिसा को ढकता है।
चंद्रग्रहण (Chandragrahan): जब पृथ्वी सूर्य के सामने आ जाती है और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है,
चंद्रग्रहण दो प्रकार के होते हैं –
- पूर्ण चंद्रग्रहण (पूर्ण चंद्रग्रहण) और
- आंशिक चंद्रग्रहण (अर्ध चंद्रग्रहण)।
- पूर्ण चंद्र ग्रहण में चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी के छाया में आ जाता है और अपने रंग में परिवर्तन हो सकता है,
- जबकी आंशिक चंद्र ग्रहण में चंद्रमा का सिर्फ कुछ हिस्सा पृथ्वी के छाया में होता है।
ग्रहों को देखना वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है, और इस ग्रह के विशेष गुण और विचार समझने का अवसर मिलता है। Grahon की तिथि और स्थान का पता लगाना ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन के लिए किया जाता है, और Grahon की घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं।
पृथ्वी गति और उससे होने वाले प्रभाव-
1 . घूर्णन ( Rotation ) अथवा दैनिक गति होती
- परिक्रमण ( Revolution ) अथवा वार्षिक गति ।
नक्षत्र दिवस ( sideral Day ) :
एक मध्याहन रेखा के ऊपर बराबर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि को नक्षत्र दिवस कहते हैं । इसकी अवधि 23 घंटे जबकि 56 मिनट की होती है ।
सौर दिवस ( Solar Day ) :
जब सूर्य को गतिहीन मानकर विभिन्न पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की विषुवत जाती है तब सौर दिवस ज्ञात होता है । इसकी अवधि पूरे 24 प्रकाश घंटे की होती है । रेखा परिक्रमण अथवा वार्षिक गति पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ – साथ सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार मार्ग ( Geoid ) पर 365 दिन तथा 6 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है । पृथ्वी के इस अंडाकार मार्ग को भू – कक्षा ( Earth Orbit ) कहते हैं । पृथ्वी की इस गति को परिक्रमण या वार्षिक गति कहते हैं ।
उपसौर ( Perihelion ) : पृथ्वी जब सूर्य के निकटतम दूरी पर होती है तो उपसौर कहलाता है । ऐसी स्थिति 3 जनवरी को होती है ।
अपसौर ( Aphelion ) : पृथ्वी जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो इसे अपसौर कहते हैं । ऐसी स्थिति 4 जुलाई को होती है ।
Solar Eclipse and Lunar Eclipse in Hindi
दिन रात का छोटा व बड़ा होना |
यदि पृथ्वी अपनी धुरी पर झुकी हुई न होती तो सर्वत्र दिन – रात बराबर होते । इसी प्रकार यदि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा न करती तो एक गोलार्द्ध में दिन सदा ही बड़े और रातें छोटी रहती जबकि दूसरे गोलार्द्ध में रातें बड़ी और दिन छोटे होते . विषुवत रेखा पर सदैव दिन – रात बराबर होते हैं , क्योंकि इसे । प्रकाश वृत्त हमेशा दो बराबर भागों में बाँटता है । अत : विषुवत् रेखा का आधा भाग प्रत्येक स्थिति में प्रकाश प्राप्त करता है ।
पृथ्वी पर दिन और रात की स्थिति 21 मार्च से 23 सितम्बर की अवधि में उत्तरी गोलाई सूर्य का प्रकाश 12 घंटे या उससे अधिक समय तक प्राप्त होता है । अतः यहाँ दिन बड़े एवं रातें छोटी होती हैं ।
उत्तरी ध्रुव पर तो दिन की अवधि छः महीने की होती है । 23 सितम्बर से 21 मार्च तक सूर्य का प्रकाश दक्षिणी गोलार्ड में 12 घंटे या उससे अधिक समय तक प्राप्त होता है । जैसे – जैसे दक्षिणी ध्रुव की ओर बढ़ते हैं , दिन की अवधि भी बढ़ती जाती है । दक्षिणी ध्रुव पर इसी कारण छ : महीने तक दिन रहता है । इस प्रकार उत्तरी ध्रव एवं दक्षिणी व दोनों पर ही छ : महीने तक दिन व छ : महीने तक रात रहती है ।
ऋतु परिवर्तन | SEASON CHANGE
पृथ्वी न केवल अपने अक्ष पर घूमती है वरन सर्य की परिक्रमा भी करती है । अत : पृथ्वी की सूर्य से सापेक्ष स्थितियाँ बदलती रहती हैं । पृथ्वी के परिक्रमण में चार मुख्य अवस्थाएँ आती हैं तथा इन अवस्थाओं में परिवर्तन से ऋतु परिवर्तन होते हैं ।
21 जून की स्थिति : 21 JUNE SITUATION
इस समय सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है । इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत ( Summer Solistice ) कहते हैं । 21 जन को उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि सबसे अधिक रहती है । दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय शीत ऋतु होती है । 21 जून के पश्चात् 23 सितम्बर तक सूर्य पुनः विषुवत रेखा की ओर उन्मुख होता है । परिणामस्वरूप धीरे – धीरे उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी कम होने लगती है ।
22 दिसम्बर की स्थिति : 22 DECEMBER SITUATION
इस समय सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है । इस स्थिति को शीत अयनांत ( winter ही कहते हैं । इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लम्बी व रातें छोटी होती हैं ।
21 मार्च को स्थिति को बसंत विषुव ISpring Equinox ) एवं 23 सितम्बर वाली स्थिति को शरद विषुव ( Autumn Equinox ) कहा जाता है ।
ज्वार भाटा ( Tide in hindi ) | Tide Meaning In Hindi
सूर्य व चन्द्रमा को आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार भाटा कहा जाता है । इससे उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंग कहते हैं ।
विभिन्न स्थानों पर ज्वार – भाटा की ऊँचाई में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है . जो सागर की गहराई , सागरीय तट की संरचना तथा सागर के खुले होने या बंद होने पर आधारित होती है । यद्यपि सूर्य चन्द्रमा से बहुत बड़ा है , तथापि सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति का प्रभाव दोगुना है । इसका कारण सूर्य का चन्द्रमा की तुलना में पृथ्वी से दूर होना है ।
24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार भाटा आता है । जाता अब सूर्य , पृथ्वी तथा चन्द्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो इस समय उनकी सम्मिलित आकर्षण बल के परिणामस्वरूप दीर्घ ज्वार का अनुभव किया है ।
यह स्थिति सिजिगी ( Syzygy ) कहलाती है । ऐसा पूर्णमासी व अमावस्या को हात है । इसके विपरीत जब सूर्य , पृथ्वी व चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो चन्द्रमा व सूर्य का आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करता है । फलस्वरूप निम्न ज्वार का अनुभव किया जाता है । ऐसी स्थिति कृष्ण पक्ष एवं शक्ल पक्ष के सप्तमी या अष्टमी को देखा जाता है । लघु ज्वार सामान्य ज्वार से 50 % नीचा व दीर्घ ज्वार सामान्य ज्वार से 20 % ऊँचा होता है ।
पृथ्वी पर चन्द्रमा के सम्मुख स्थित भाग पर चन्द्रमा की आकर्षण बल के कारण ज्वार आता है , किन्तु इसी समय पृथ्वी पर चन्द्राविमुखी भाग पर ज्वार आता है । इसका कारण पृथ्वी के घूर्णन को संतुलित करने के लिए अपकेन्द्रीय बल ( Centrifugal Force ) का शक्तिशाली होना है ।
गरुत्वाकर्षण व अपकेन्द्रीय बलों के कारण उत्पन्न ज्वार – भाटा
गरुत्वाकर्षण व अपकेन्द्रीय बलों के प्रभाव के कारण प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे के बाद ज्वार आना चाहिए किन्तु यह प्रात दिन लगभग 26 मिनट की देरी से आता है । इसका कारण चन्द्रमा का पृथ्वी के सापेक्ष गतिशील होना है।
चन्द्रमा का परिक्रमण और ज्वार – भाटों का अंतराल उत्पन्न कनाडा के न्यू ब्रंसविक तथा नोवास्कोशिया के मध्य स्थित फंडी की खाड़ी में ज्वार की ऊँचाई सर्वाधिक ( 15 से 18 मी . ) होती प्रत्येक है , जबकि भारत के ओखा तट पर मात्र 2 . 7 मी . होती है ।
इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्पटन में प्रतिदिन चार बार ज्वार आते हैं । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये दो बार इंग्लिश चैनल होकर एवं दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अंतरालो पर यहाँ पहुँचते हैं । नदियों को बड़े जलयानों के लिए नौ संचालन योग्य बनाने में ज्वार सहायक होते हैं । जल विद्युत के उत्पादन हेतु भी ज्वारीय ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है । फ्रांस व जापान में ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित कुछ विद्युत केन्द्र स्थापित किए गए हैं । भारत में खंभात की खाड़ी व कच्छ की खाड़ी में इसके विकास की अच्छी संभावना है ।
ज्वार भाटा के उत्पत्ति की संकल्पनाएँ
1 . न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण बल सिद्धान्त ( 1687 ई . )
2 . लाप्लास का गतिक सिद्धान्त ( 1755 ई . )
3 . बैवेल का प्रगामी तरंग सिद्धांत ( 1833 ई . )
4 . एयरी का नहर सिद्धांत ( 1842 ई . )
5 . हैरिस का स्थैतिक तरंग सिद्धान्त
सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण | Lunar Eclips and Solar Eclips in Hindi
पृथ्वी और चन्द्रमा दोनों को प्रकाश सूर्य से मिलता है । पृथ्वी से चन्द्रमा का एक ही भाग दिखायी देता है, क्याकि पृथ्वी और चन्द्रमा की घूर्णन गति समान है । पृथ्वी पर चन्द्रमा का सम्पूर्ण प्रकाशित भाग महीने में केवल एक बार अर्थात् पूर्णिमा ( Full Moon ) को ही दिखाई देता है ।
इसी प्रकार महीने में एक बार चन्द्रमा का सम्पूर्ण अप्रकाशित भाग पृथ्वी के सामने होता है तथा तब चन्द्रमा दिखाई नहीं देता । इसे अमावस्या ( New Moon ) कहते हैं । जब पृथ्वी , सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाता है तो सूर्य की रोशनी चन्द्रमा तक नहीं पहुंच पाती तथा पृथ्वी की छाया के कारण उस पर अंधेरा छा जाता है । इस स्थिति को चन्द्रग्रहण ( Lunar Eclipse ) कहते हैं । चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा की रात को होता है । सूर्यग्रहण की स्थिति तब बनती है , जब सूर्य एवं पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाए तथा पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश न पड़कर चन्द्रमा को परछाईं पड़े । सूर्यग्रहण ( Solar Eclipse ) हमेशा अमावस्या को होता है ।
इससे प्रत्येक अमावस्या को सूर्यग्रहण एवं प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण लगना चाहिए , परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि चन्द्रमा अपने अक्ष पर 50 झुका हुआ है । जब चन्द्रमा और पृथ्वी एक ही बिंदु पर परिक्रमण पथ में पहुँचते हैं तो उस समय चन्द्रमा अपने अक्षीय झुकाव के कारण थोड़ा आगे निकल जाता है ।
इसी कारण प्रत्येक पूर्णिमा और अमावस्या की स्थिति में ग्रहण नहीं लगता । एक वर्ष में अधिकतम सात बार चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है । पूर्ण सूर्यग्रहण देखे जाते हैं , परंतु पूर्ण चन्द्र ग्रहण प्रायः नहीं देखा जाता , क्योंकि सूर्य , चन्द्रमा एवं पृथ्वी के आकार में पर्याप्त अंतर है । सूर्यग्रहण के समय अत्यधिक मात्रा में पराबैंगनी किरणें ( Ultraviolet ) उत्सर्जित होती है ।
इसलिए नंगी आँखों से सूर्य ग्रहण नहीं देखा जा सकता है । पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य के परिधीय क्षेत्रों में हीरक वलय ( Diamond Ring ) की स्थिति बनती है ।
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