वित्त आयोग | FINANCE COMMISSION OF INDIA IN HINDI
अनुच्छेद 280 अर्द्ध – न्यायिक निकाय के रूप में वित्त आयोग की व्यवस्था करता है । इसका गठन हर पांच वर्ष में राष्ट्रपति द्वारा स्थापित किया जाता है । यह निम्नलिखित मामलों पर राष्ट्रपति को सिफारिश करता है :
- केंद्र एवं राज्यों के बीच कराधान व्यवस्था का निर्धारण और ऐसी प्राप्तियों का राज्यों के बीच हिस्सेदारी का निर्धारण
- वे सिद्धांत , जिनके तहत राज्य केंद्र ( भारत की संचित निधि से ) से आर्थिक अनुदान लेकर कार्य करता है ।
- राज्य वित्त आयोग की संस्तुति के आधार पर राज्य पंचायतों और नगरपालिकों के स्रोतों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले उपाए ।
- राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय मामलों के संबंध में सौंपा गया कोई अन्य कार्य ।
15th finance commission in hindi 1960 तक आयोग असम , बिहार , ओडिशा एवं प . बंगाल के लिये जूट एवं जूट उत्पादों के निर्यात शुल्क के ऐवज में प्रतिवर्ष प्रदान किये जाने वाले अनुदान के संबंध में सरकार को सुझाव देता था ।
संविधान वित्त आयोग को देश में वित्तीय संघात्मकता के संतुलन चक्र के रूप में परिकल्पित करता है । यद्यपि गैर – संवैधानिक , गैर – विधायी निकाय योजना आयोग के उद्भव के उपरांत केन्द्र – राज्य संबंधों के संदर्भ में वित्त आयोग की भूमिका संकुचित हुयी है ।
राज्यों के हितों का संरक्षण वित्तीय मामलों पर राज्य हितों की रक्षा के लिए संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि संसद सिर्फ राष्ट्रपति की सिफारिश पर निम्नलिखित विधेयकों को संसद में प्रस्तुत करे :
- ऐसा विधेयक जिसमें राज्यों का हित हो और वह किसी कर या शुल्क को अध्यारोपित करे ।
- ऐसा विधेयक जो भारतीय आयकर को लागू करने संबंधी प्रयोजनों हेतु परिभाषित अभिव्यक्ति कृषि आय के अर्थ में परिवर्तन करे ।
- ऐसा विधेयक जो राज्यों में वितरित या वितरण की जाने वाली राशियों के नियम को प्रभावित करे ।
- ऐसा विधेयक जो राज्य के प्रयोजन हेतु किसी विशिष्ट कर या शुल्प पर अधिभार अध्यारोपित करे ।
कर या शुल्क जिसमें राज्य का हित हो अभिव्यक्ति का अर्थ है- finance commission upsc in hindi
( क ) कर या शुल्क जिसकी कुल प्राप्तियों का पूर्ण या कोई भाग किसी राज्य को सौंपा जाता है , या
( ख ) शुल्क जहां कुल प्राप्तियों के संदर्भ में फिलहाल इस राशि को भारत की संचित निधि से प्रदान किया जाता है ।
कुल प्राप्तियां अभिव्यक्ति का अर्थ है – संग्रहण की लागत को घटाकर प्राप्त हुई कर या शुल्क प्राप्तियां , किसी क्षेत्र में कर या शुल्क की कुल प्राप्तियों का निर्धारण और प्रमाणन भारत के नियंत्रक और महालेख परीक्षक द्वारा किया जाता है । state finance commission in hindi
केंद्र एवं राज्यों द्वारा ऋण
संविधान केंद्र एवं राज्यों के कर्ज लेने की शक्ति पर निम्नलिखित प्रावधान तय करता है :
- केंद्र सरकार या तो भारत में या इसके बाहर से भारत की संचित निधि की प्रतिभू या गारंटी देकर ऋण ले सकती है । लेकिन दोनों ही मामलों में सीमा निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा । संसद द्वारा इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है ।
- इसी तरह , एक राज्य सरकार भारत में ( बाहर नहीं ) राज्य की संचित निधि की प्रतिभू या गारंटी देकर ऋण ले सकता है , लेकिन सीमा निर्धारण राज्य विधानमंडल द्वारा किया जाएगा ।
- केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार को ऋण दे सकती है या किसी राज्य द्वारा लेने पर पर गारंटी दे सकती है ऋण के ऐसे प्रयोजन हेतु आवश्यक धनराशि भारत की संचित निधि पर भारित होगी ।
- राज्य केन्द्र की अनुमति के बिना ऋण नहीं ले सकता , यदि केन्द्र द्वारा दिए गए ऋण का कोई भाग बकाया हो या जिसके संबंध में केन्द्र ने गारंटी दी हो । finance commission in indian constitution
अंतर – सरकारी कर उन्मुक्ति
अन्य संघीय संविधानों के समान भारतीय संविधान में भी ‘ पारस्परिक कराधान से उन्मुक्तियों के नियम हैं । इस संबंध में निम्न प्रावधान किये गये हैं :
Master Native English Speaking Skills, Grammar, and More-
केन्द्र की परिसंपत्तियों को राज्य के कर से छूट
केन्द्र की सभी परिसंपत्तियों को राज्य या उसके विभिन्न निकायों , यथा – नगरपालिकाओं , जिला बोडौं , पंचायतों इत्यादि को सभी प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है । यद्यपि संसद को यह अधिकार है कि वह इस प्रतिबंध को समाप्त कर सकती है । ‘ संपत्ति ‘ शब्द से अभिप्राय भूमि , भवन , चल संपत्ति , शेयर , जमा इत्यादि उन सभी चीजों से है , जिनका कोई मूल्य होता है । संपत्ति में चल एवं अचल दोनों प्रकार की संपत्तियां सम्मिलित हैं । संपत्ति का उपयोग संप्रभु ( जैसे सशस्त्र सेनायें ) या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है ।
- finance commission define in hindi
केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित निगमों या कंपनियों को राज्य कराधान या स्थानीय कराधान से उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है । इसका कारण यह है कि निगम या कंपनी एक पृथक् विधिक अस्तित्व है ।
राज्य की परिसंपत्तियों या आय को केन्द्रीय कर से छूट
राज्यों की परिसंपत्तियां एवं आय को भी केन्द्रीय कर से छूट प्राप्त होती है । यह आय संप्रभु कार्यों या वाणिज्यिक कार्यों से हो सकती है । किंतु यदि संसद अनुमति दे तो केन्द्र वाणिज्यिक आय पर कर लगा सकता है । यद्यपि केन्द्र चाहे तो वह किसी कार्य या व्यवसाय विशेष को इस कर से छूट भी दे सकता है ।
उल्लेखनीय है कि राज्य में स्थित स्थानीय संस्थायें केन्द्रीय कर ले गुक्त नहीं होती है । इसी तरह निगमों एवं राज्य की स्वामित्व वाली कंपनियों की परिसंपत्तियां एवं आय पर केंद्र कर लगा सकती है । 1963 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक सलाहकारी निर्णय में यह सलाह दी थी कि केन्द्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली छूट ऐसी होनी चाहिये , जिससे सीमा और उत्पाद शुल्क पर कोई प्रभाव न पड़े । दूसरे शब्दों में , केंद्र , राज्य द्वारा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर कर लगा सकती है या वह राज्य में उत्पादित या विर्निमित सामान पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है ।
आपातकाल के प्रभाव
केंद्र – राज्य के बीच संबंध आपातकाल के दौरान बदल जाते हैं । ये निम्नलिखित हैं :
finance commission details in hindi
राष्ट्रीय आपातकाल
जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो ( अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत ) राष्ट्रपति केंद्र व राज्यों के बीच संवैधानिक राजस्व वितरण को परिवर्तित कर सकता है । इसका तात्पर्य है- राष्ट्रपति या तो वित्तीय अंतरण को कम कर सकता है या रोक सकता है । ऐसे परिवर्तन जिस वर्ष आपातकाल की घोषणा की गई हो उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रभावी रहते हो
वित्तीय आपातकाल
केंद्र जब वित्तीय आपातकाल ( अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत ) लागू हो केन्द्र राज्यों को निर्देश दे सकता है-
- वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों का पालन ,
- राज्य की सेवा में लगे सभी वर्गों के लोगों के वेतन एवं भत्ते कम करे , और (
- सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयको को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखे ।
औरजानिये। Aurjaniye
तो दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो हमें कमेंट करके जरुर बतायें , और इसे शेयर भी जरुर करें।
औरजानिये। Aurjaniye
For More Information please follow Aurjaniy.com and also follow us on Facebook Aurjaniye | Instagram Aurjaniye and Youtube Aurjaniye with rd
Related Posts:-
CHANDRAGUPTA MAURYA FIRST EMPEROR OF INDIA HINDI
SIKANDAR KE BHARAT VIJAY ABHIYAN
SOURCES OF ANCIENT INDIAN HISTORY
WHAT IS NON-ALIGNMENT IN HINDI
what is economic reforms in hindi