पृथ्वी की उत्पत्ति व संकल्पनाएँ | Origin And Concepts Of Earth In Hindi

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Prithvi ki Utpatti ke sidhant



 इस विषय के अन्तर्गत हम इन चीजों को पढ़ेंगे-

पृथ्वी की उत्पत्ति के संबन्ध में समय – समय पर विभिन्न विद्वानों एवं संस्थाओं ने अपने – अपने विचार व्यक्त किए । प्रारंभ में धार्मिक विचारधाराओं का अधिक महत्व रहा । परन्तु 1749 ई . में फ्रांसीसी वैज्ञानिक कास्ते – द – बफन 

( kaste – d-baphan ) के द्वारा प्रथमतः तर्कपूर्ण परिकल्पना की प्रस्तुति के साथ इस संबन्ध में वैज्ञानिक पहल की शुरुआत हुई । वर्तमान समय में पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दो प्रकार के वैज्ञानिक मत प्रचलित हैं

अद्वैतवादी संकल्पना ( Monistic Concept ) 

इस संकल्पना को Parental Hypothesis भी कहा जाता है , क्योंकि इस संकल्पना के अनुसार सौर मंडल ( ग्रहों एवं ) पृथ्वी ) की उत्पत्ति एक ही वस्तु ( तारे ) से हुई मानी जाती है । अद्वैतवादी संकल्पनाओं में कान्ट और लाप्लास की संकल्पनाएँ महत्वपूर्ण हैं 

काण्ट की वायव्य राशि परिकल्पना ( Kant’s Gaseous Hypothesis ) 

जर्मन दार्शनिक काण्ट ने 1755 ई . में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया । इसके अनुसार , केन्द्रापसारित बल ( केन्द्र से बाहर की ओर लगने वाला बल ) के प्रयास से एक तप्त एवं गतिशील निहारिका ( Nebula ) से कई गोल छल्ले अलग हुए , जिनके शीतलन से सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ । पृथ्वी भी इन्हीं छल्लों में से एक है । परंतु इस सिद्धांत में कांट ने गणित के गलत नियमों का अनुप्रयोग किया , क्योंकि यह कोणीय संवेग के संरक्षण के नियम का अनुपालन नहीं करता है । 

लाप्लास की निहारिका परिकल्पना ( Nebular Hypothesis of Laplace ) 

फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने 1796 ई . में कांट के सिद्धांत को संशोधित करते हुए बताया कि एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही छल्ला बाहर निकला तथा बाद में यह नौ छल्लों में विभाजित हो गया जबकि काण्ट के अनुसार , निहारिका से ही नौ छल्ले निकले थे । ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर एक दिशा में घूमने लगे । बाद में इन्हीं के शीतलन से विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ ,

 जिनमें पृथ्वी भी शामिल है इस परिकल्पना के अनुसार सभी ग्रहों के उपग्रहों को अपने पितृ ग्रह की दिशा में घूमना चाहिए । परन्तु , इस तथ्य विपरीत शनि तथा बृहस्पति के उपग्रह अपने पितृ ग्रह के विपरीत दिशा में भ्रमण करते हैं । 

द्वैतवादी संकल्पना ( Dualistic Concept ) 

अद्वैतवादी संकल्पना के विपरीत इस विचाधारा के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति दो तारों के संयोग से मानी जाती है । इसलिए इस संकल्पना को Bi – Parental Hypothesis भी कहते हैं । इसके अन्तर्गत चैम्बरलिन तथा मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना एवं जेम्स जीन्स एवं जेफरीज की ज्वारीय संकल्पना महत्वपूर्ण हैं 

चैम्बरलेन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना ( Planetsimal Hypothesis ) 

यह द्वैतवादी संकल्पना ( Bi – parental Concept ) है , जिसका प्रतिपादन चैम्बरलेन और मोल्टन ने 1905 ई . में किया था । इनके अनुसार ग्रहों का निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से नहीं वरन् ठोस पिंड से हुआ है । प्रारंभ में ब्रह्माण्ड में दो विशाल तारे थे – एक सूर्य एवं दूसरा एक अन्य भ्रमणशील तारा । जब यह अन्य विशाल तारा सूर्य के पास पहुँचा तो उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से असंख्य कण अलग हो गए । 

यही आपस में मिलकर पृथ्वी व अन्य ग्रहों के निर्माण का कारण बने । इस सिद्धांत के द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति , संरचना , वायुमंडल की उत्पत्ति , महासागर व महाद्वीप की उत्पत्ति , पर्वतों का निर्माण आदि की व्याख्या करने का भी प्रयास किया गया है । 

 

जेम्स जीन्स व जेफरीज ( 1919 ई . ) की ज्वारीय परिकल्पना ( Tidal Hyphothesis ) 

पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बंध में यह आधुनिक परिकल्पनाओं में से एक है, जिसे पर्याप्त समर्थन प्राप्त है । इसके अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारे के संयोग से हुआ है । सूर्य के निकट इस तारे के आने से सूर्य का कुछ भाग ज्वारीय उद्भेदन के कारण फिलामेंट के रूप में खिंच गया तथा बाद में टूटकर सूर्य का चक्कर लगाने लगा । यही फिलामेंट सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति का कारण बना , जिनमें पृथ्वी भी शामिल है । यह परिकल्पना ग्रहों और उपग्रहों के क्रम, आकार व संरचना की भी व्याख्या करती है । 

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना ( Binary Star Hypothesis of Russel ) 

यह सिद्धांत जीन्स व जेफरीज की परिकल्पना में ही एक प्रकार से संशोधन है । रसेल ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन सूर्य और ग्रहों की वर्तमान दूरी तथा ग्रहों के वर्तमान कोणीय आवेग ( Angular Momentum ) की अधिकता जैसी समस्याओं का समाधान हेतु किया । यह जीन्स व जेफरीज की ज्वारीय परिकल्पना में प्रमाणित नहीं हो पा रही थी । 

ऑटो – शिमिड की अंतरतारक धूल परिकल्पना ( Inter – Stellar Dust Hypothesis ) 

रूसी वैज्ञानिक ऑटो – शिमिड द्वारा 1943 ई . में दी गई इस परिकल्पना में ग्रहों की उत्पत्ति गैस व धूलकणों से मानी गई है । उनके अनुसार , जब सूर्य आकाशगंगा के करीब से गुजर रहा था तो उसने अपनी आकर्षण शक्ति से कुछ गैस मेघ एवं धूलकणों को अपनी ओर आकर्षित किया , जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे । इन्हीं धूलकणों के संगठित व घनीभूत होने से पृथ्वी व अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ । यह परिकल्पना सूर्य और ग्रहों के बीच कोणीय आवेग में अन्तर , विभिन्न ग्रहों की संरचना में अंतर ( सूर्य के करीब भारी पदार्थ वाले ग्रह तथा दूर हल्के पदार्थ वाले ग्रह ) , ग्रहों की गति में अंतर , सूर्य व ग्रहों की वर्तमान दूरी आदि सभी की वैज्ञानिक व्याख्या करने में समर्थ है । परन्तु यह नहीं बता पाया कि गैस व धूल कण जैसे छोटे अणुओं को सूर्य ने कैसे आकर्षित किया । 

फ्रेड होयल व लिटिलटन की अभिनव तारा परिकल्पना ( Supernova Hypothesis ) 

अपनी पुस्तक Nature of the Universe में 1939 ई . में उन्होंने नाभिकीय भौतिकी से सम्बंधित सिद्धांत देते हुए जीन्स की परिकल्पना में संशोधन किया तथा बताया कि ग्रहों की उत्पत्ति में दो नहीं बल्कि तीन तारों की भूमिका रही है सूर्य , उसका साथी तारा तथा पास आता हुआ एक अन्य तारा । इस सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ । इनका सिद्धांत ग्रहों की आपसी दूरी , सूर्य से उनकी दूरी , ग्रहों में कोणीय संवेग की अधिकता एवं ग्रहों का सूर्य की तुलना में अधिक घनत्व की व्याख्या करने में सर्वाधिक समर्थ है । किन्तु इस परिकल्पना से ग्रहों व उपग्रहों के आविर्भाव का संतोषजनक हल नहीं निकल पाया । 

आधुनिक सिद्धांत 

बिग – बैंग तथा स्फीति सिद्धांत इस सिद्धांत का प्रतिपादन जार्ज लेमेण्टेयर ने ब्रह्माण्ड, आकाशगंगा एवं सौरमण्डल की उत्पत्ति के लिए किया था । बिग – बैंग सिद्धांत के आधार पर बताया गया है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति आज से लगभग 15 बिलियन ( 15 अरब ) वर्ष पहले घने पदार्थों वाले विशाल अग्निपिण्ड के आकस्मिक जोरदार विस्फोट एवं उससे जनित विकिरण से हुई । परन्तु अमेरिकी वैज्ञानिक एलेन गुथ ने बिग – बैंग सिद्धांत को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सम्बंधी समस्या के समाधन में अक्षम पाया और स्फीति सिद्धान्त का प्रवर्तन किया । 

स्फीति सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के अनुसार , ब्रह्माण्ड के दृश्य द्रव्यमान के घनत्व की तुलना में उसका वास्तविक घनत्व काफी अधिक है । इससे स्पष्ट होता है कि ब्रह्माण्ड में अदृश्य काले पदार्थों का अस्तित्व है । इन्हीं हुआ है । काले पदार्थों के समूहन से आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ है।

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