|ऊर्जा के गैर – परंपरागत स्रोत |Conventional Energy Sources|
Urja Ke Gair Paramparagat Strot नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 26 दिसम्बर , 2008 को समेकित कर्जा नीति को मंजूरी दी गयी जिसमें आगामी 25 वर्षों में ऊर्जा क्षेत्रों में 9 % विकास दर का लक्ष्य रखा गया है । इसके अन्तर्गत ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में टिकाऊ विकास हेतु एक रोड मैप तैयार किया गया , जिसमें ऊर्जा बाजार को प्रतिस्पर्धी बनाने , उचित ऊर्जा मूल्य निधारण , लक्षित सब्सिडी , सार्वजनिक क्षेत्रों की ऊर्जा कम्पनियों को स्वायत्तता व पूर्ण उत्तरदायित्व प्रदान करना , ऊर्जा की नवीन संसाधनों की खोज के प्रयास आदि लक्ष्य शामिल किए गए हैं ।
ऊर्जा के गैर – परंपरागत स्रोत में निम्ऩ शामिल हैं-
ऊर्जा के गैर – पारम्परिक स्रोत
Urja Ke Gair Paramparagat Strot
- पवन ऊर्जा ( Wind Energy )
- सौर ऊर्जा ( Solar Energy )
- भू-तापीय ऊर्जा( Wind Energy )
- समुद्री – ताप से ऊर्जा उत्पादन ( Ocean Thermal Energy Conversion : OTEC )
- ज्वारीय ऊर्जा ( Tidal Energy )
- समुद्री तरंग ऊर्जा ( Ocean waves Energy )
- हाइड्रोजन ऊर्जा ( Hydrogen Energy )
- बायोमास ( Bioman )
- बायोगैस ( Biogas )
- बायोडीजल ( Bio Diesel )
- इथेनॉल ( Ethanol )
- प्राक्रतिक गैस
- परमाणु ऊर्जा
Energy Sources And their availability
पवन ऊर्जा ( Wind Energy )
हवा में गतिज ऊर्जा होती है । इस ऊर्जा का उपयोग सिंचाई । करने तथा बिजली बनाने में किया जा सकता है । भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त प्रदेश तमिलनाडु , आन्ध्रप्रदेश , गुजरात , कर्नाटक और केरल है। Urja Ke Gair Paramparagat Strot
एशिया का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा केन्द्र गुजरात के कच्छ जिला में मांडवी में स्थापित किया गया है । एशिया का सबसे बड़ा पवन फार्म ( Wind Farm ) तमिलनाडु के मुप्पनडल में स्थापित किया गया है । महाराष्ट्र के सतारा में भी एक पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया है ।
देश में वर्ष 2009 के अंत तक कुल 11000 मेगावाट पवन विद्युत उत्पादन को क्षमता अर्जित की गयी है । भारत में कुल संस्थापित नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा का 70 % भाग पवन ऊर्जा से ही प्राप्त होता है।
पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता में संयुक्त राज्य अमेरिका , जर्मनी , स्पेन व चीन के बाद विश्व में भारत का पांचवां स्थान है ।
राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति , 2015
9 सितम्बर , 2015 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति , 2015 को स्वीकृति प्रदान की गयी । इस नीति के अंतर्गत केन्द्रीय नवीन एवं नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के भीतर अपतटीय क्षेत्रों के प्रयोग हेतु नोडल मंत्रालय के रूप में अधिकृत किया गया है, साथ ही इस नीति के अंतर्गत पवन ऊर्जा संस्थान , चेन्नई को पवन ब्लॉकों के आवंटन के अतिरिक्त सम्बंधित मंत्रालयों एवं एजेंसियों के साथ समन्वय एवं संबद्ध कार्यों के लिए नोडल एजेंसी के रूप में अधिकृत किया गया है।
भू – तापीय ऊर्जा ( Geo – Thermal )
भू – तापीय ऊर्जा से तात्पर्य भूपटल की ऊष्मा से है , जो ज्वालामुखी , गीजर , उष्ण स्रोतों आदि के रूप में मिलते हैं । भारत में 80° – 100°C तापमान वाले 340 गर्म स्रोतों को खोजा जा चुका है । हिमाचल प्रदेश की पार्वती घाटी में बसे मणिकर्ण के गर्म पानी के स्रोत से अत्यधिक मात्रा में बिजली उत्पादित की जा सकती है । यहाँ एक भू – तापीय संयंत्र लगाया गया है । लद्दाख की पूगा घाटी में ग्रीन हाउस के लिए भू – तापीय ऊर्जा केन्द्र की स्थापना की जाएगी । छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में तातापानी में भी भू – तापीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा रहा है ।
भारत का प्रथम भू – तापीय विद्युत संयंत्र वर्ष 2012 में आंध्र प्रदेश के खम्मम में स्थापित किया गया था , जिसकी क्षमता 25 मेगावॉट है । हिमाचल प्रदेश के सतलज – स्पीति , व्यास व पार्वती घाटी , उत्तराखंड में बद्रीनाथ – तपोवन तथा झारखंड में सूरजकुंड घाटा , उत्तर में भी भू – तापीय ऊर्जा उत्पादन की अच्छी संभावनाएं हैं । गर्म पानी के स्रोतो में थर्मल डिस्चार्ज से बिजली उत्पादित की जा सकती है । इसके लिए आवश्यक तकनीक आसानी से उपलब्ध है । हाइडल पावर ( जल विद्युत ) की तुलना में इस तकनीक से उत्पन्न होने वाली बिजली अधिक सस्ती होगी ।
भारत का पहला जियोथर्मल पॉवर प्रोजेक्ट , लद्दाख में स्थापित किया जा रहा है । इस परियोजना की क्षमता 3 मेगावाट होगी । जो इथेनॉल आधारित ईंधन के द्वारा संचालित होगी ।
समुद्री – ताप से ऊर्जा उत्पादन ( Ocean Thermal Energy Conversion : OTEC )
OTEC में समुद्र की ऊपरी सतह से 1,000 मी . को गहराई तक सौर ऊर्जा अवशोषित की जाती है । भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में , जहाँ समुद्री तापमान 25°C तक रहता है , OTEC से ऊर्जा उत्पादन की व्यापक संभावना है ।
लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह OTEC ऊर्जा के लिए सबसे उपयक्त क्षेत्र हैं । भारत में इस तरह का एक प्रयास संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से तमिलनाडु के कुलशेखरपत्तनम् में हो रहा है ।
ज्वारीय ऊर्जा ( Tidal Energy )
समुद्र में आने वाले ज्वार – भाटा की सहायता से भी विद्युत उत्पादन किया जा सकता है । भारत में खम्भात की खाड़ी , कच्छ की खाड़ी और सुन्दरवन में ज्वारीय ऊर्जा के उत्पादन की अच्छी संभावनाएँ है । कच्छ की खाड़ी में ( कांडला ) में एक ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र लगाने का प्रस्ताव है, जो एशिया में इस प्रकार का पहला संयंत्र होगा । सुंदरवन के दर्गावआनी कीक में भी इस दिशा में प्रयास हो रहे हैं । Urja Ke Gair Paramparagat Strot
समुद्री तरंग ऊर्जा ( Ocean waves Energy )
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के व्यापारिक पवन वाले क्षेत्र समुद्री तरंग से ऊर्जा के उत्पादन के लिए आदर्श स्थल हैं ।
भारत का प्रथम समुद्री तरंग विद्युत संयंत्र विझिंगम ( केरल ) में लगाया गया है । निकोबार द्वीपसमूह में मूस प्वाइंट में भी समुद्री तरंग ऊर्जा को अच्छी संभावना है ।
हाइड्रोजन ऊर्जा ( Hydrogen Energy )
यह ऑटोमोबाइल में प्रयुक्त होने वाली जीवाश्म ऊर्जा का एक स्वच्छ सस्ता व प्रदूषण रहित विकल्प हो सकती है हाइड्रोजन ऊर्जा के आधार पर कृषि पंपसेट के विकास के भी दिशा में प्रयास हो रहे हैं ।
हाइड्रोजन ऊर्जा केन्द्र , बनारस के विकास की दिशा में विभिन्न शोध का कर रहा है ।
बायोमास ( Bioman )
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बायोमास ईधन का एक महत्वपर्ण स्रोत है ।
बायोमास के दो प्रमुख स्रोत हैं –
( i ) कृषि के अपशिष्ट व वनोत्पाद
( ii ) नगरपालिका का कूड़ा – कचरा ।
बायोमास विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत इंधन , चारा और वित्त उत्पादन के लिए उच्च कैलोरी क्षमता वाले व तेजी से बढ़नेवाले पौधों के रोपण पर बल दिया जाता है ।
बायोमास से ईथेनॉल और मीथेनॉल जैसे तरल ईंधन भी बनाए जाते हैं जिससे वाहन चलाए जा सकते हैं ।
भारत में बायोमास उत्पादन के लिए निम्नलिखित केन्द्र स्थापित किए गए हैं
- पंजाब के झालखारी में चावल के भूसे से चलने वाला ताप विद्युत संयंत्र ।
- दिल्ली के तिमारपुर में कूड़े – कचरे से विद्युत उत्पादन करने हेतु पायलट संयंत्र ।
- मुम्बई में कूड़े – कचरे से विद्युत उत्पादन करनेवाला संयंत्र ।
- पोर्ट ब्लेयर में गैसीफायर प्रणाली वाला संयंत्र बायोगैस ( Biogas )
यह भी ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है , जो प्रचुरता से उपलब्ध प्राकृतिक कार्बनिक अपशिष्टों से बनाया जाता है । बायोगैस एक प्रकार का गैसीय मिश्रण है , Urja Ke Gair Paramparagat Strot
जिसमें सामान्यत : 60 % मीथेन , 40 % कार्बन डाइऑक्साइड तथा कुछ मात्रा में नाइट्रोजन और हाइड्रोजन सल्फाइड पायी होती है ।
जानवरों व मानव के मलमूत्र तथा कृषि अपशिष्ट व औद्योगिक कचरे के अवायवीय किण्वन ( Anaerobic Fermentation ) द्वारा बायोगैस का निर्माण किया जाता है ।
नवंबर , 2009 में राष्ट्रीय बायोगैस खाद प्रबंधन कार्यक्रम की घोषणा की गयी है ।
बायोडीजल ( Bio Diesel )
पेट्रोलियम कंजर्वेशन रिसर्च एसोसिएशन ( PCRA ) भारत में जैव – ईंधन ( बायोडीजल ) के उत्पादन के लिए प्रयासरत है । जट्रोफा ( रतनजोत ) , करकास व पोन्गोमिया के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है ।
इनसे बायोडीजल बनाया जा सकता है । देश का पहला बायोडीजल संयंत्र आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में लगाया गया है । यह नेचुरल बायो – एनर्जी संयंत्र है , जहाँ प्रतिवर्ष 20 मिलियन गैलन बायोडीजल का उत्पादन किया जायेगा तथा ये अमेरिका व यूरोप को निर्यात किया जाना है ।
इथेनॉल ( Ethanol )
देश की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने के लिए ईथेनॉल राष्टीय मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया है । जीवाश्म ईधनों पर हमारी निर्भरता धीरे – धीरे घटाने और वृहद् रूप में नवीरकणीय वैकल्पिक ईधन का उपयोग बढ़ाने की दिशा में यह एक का उत्पादन किया जाएगा ।
ईथेनॉल गन्ना , राब , मक्का , कन्द जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जाने वाला एक जैविक इंधन है। धनॉल पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि , यह पेट्रोल की दहनशीलता को बढ़ाता है . परिणामस्वरूप , यह हाइड्रोकार्बन का कम उत्सर्जन करता है । नवीनीकरणीय ईधन के साथ – साथ कृषि अवशिष्ट होने के कारण यह किसानों की आय भी बढ़ाएगा । जैव इंधन वर्तमान समय की अनिवार्यता है । अमेरिका , ब्राजील , कनाडा तथा युरोपीय संघ ने अपनी ऊर्जा नीति में जैव इंधन को शामिल किया है ।
भारत सरकार ने भी वर्ष 2002 में जैव ईधन के प्रयोग के लिए एक रोड – मैप तैयार किया था जिसमें ईथेनॉल को पेट्रोल में मिलाना अनिवार्य कर दिया था , परंतु यह योजना ठीक से लागू नहीं हो सकी ।
जेट्रोफा जैसे जैव इधना के बाद इथेनॉल का निर्माण संभव हो पा रहा है , करंज , नीम , आम की गुठली . महुआ . अलसी का तेल आदि भी जैव ईंधन के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं । गन्ना भी इसका एक उपयुक्त विकल्प है । यूरोप में सूरजमुखी और अमेरिका में सोयाबीन से थाइलैंड में ताड़ और फिलापास नारियल से जैव ईधन निर्माण की पर्याप्त सम्भावनाएँ विद्यमान भारत में भी बायोडीजल के अनेक विकल्प है ।
नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 24 दिसम्बर , 2009 को राष्ट्रीय जैव – ईंधन नीति के निर्माण व उसे लागू करने की घोषणा की थी , जिसके बाद इस दिशा में निरंतर प्रयास हो रहे हैं ।
परंतु इसका एक दूसरा पक्ष भी है , जहाँ एक ओर इससे । किसानों की आय में वृद्धि होगी , गाँव में खुशहाली आएगी , वहीं दूसरी ओर , इससे कृषि प्रणाली में बदलाव का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है ।
ऐसी सम्भावना है कि , जैव ईंधन को वैकल्पिक फसल न समझा जाए क्योंकि , इससे अच्छी कमाई होने से किसान अपने खेतों में अन्य फसलों का उत्पादन बन्द कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में भारत की खाद्य सुरक्षा में संकट उत्पन्न हो सकता है , खाद्यान्न महँगे हो सकते हैं और गरीबों के लिए भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
ऐसा यूरोपीय देशों में देखा भी गया है । अत : खाद्यान्न को भोजन व ईधन की फसलों में संतुलन बनाए रखना होगा एवं जैव ईंधन से सम्बंधित फसलों को परती ( खाली पड़ी ) जमीन में ही उपजाने के लिए प्रोत्साहन देना होगा ।
नवीकरणीय ऊर्जा संभावना भारत में लगभग 900 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा की सम्भावना है , जिसका व्यावसायिक स्तर दोहन किया जा सकता है ।
इसके अन्तर्गत
- पवन ऊर्जा ( 102 गीगावॉट )
- लघु जल विद्युत ( 20 गीगावॉट )
- जैव ऊर्जा ( 25 गीगावॉट ) और
- सौर ऊर्जा ( 750 / गीगावॉट ) शामिल है ।
देश में नवीकरणीय ऊर्जा के आँकड़ों को नियमित तौर पर अद्यतन किया जाता है । राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान ( एनआईडब्ल्यूई ) ने भारत की पवन एटलस का निर्माण किया है । इस संस्थान को पहले पवन ऊर्जा प्रौद्योगिक केंद्र के नाम से जाना जाता था ।
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